कुंडली में हों ऐसे योग तो, राजनीति में बनेगा शानदार करियर
नीतिकारक ग्रह राहु, सत्ता का कारक सूर्य, न्याय-प्रिय ग्रह गुरु, जनता का हितैषी शनि और नेतृत्व का कारक मंगल जब राज्य-सत्ता के कारक दशम भाव, दशम से दशम सप्तम भाव, जनता की सेवा के छठे भाव, लाभ एवं भाग्य स्थान से शुभ संबंध बनाए तो व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ बनता है। व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ बनेगा या नहीं इसका बहुत कुछ उसके जन्मकालिक ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। अन्य व्यवसायों एवं करियर की भांति ही राजनीति में प्रवेश करने वालों की कुंडली में भी ज्योतिषीय योग होते हैं। ....
मन की शांति और सम्पन्नता के लिए केवल एक माला शिव गायत्री मंत्र है पर्याप्त
सृष्टि के पालक और संहारक के रूप में सर्वविदित भगवान शिव साक्षात महाकाल हैं, जिनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना सभी सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा की जाती है। ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश- इन त्रिदेवों में महेश अर्थात शिव शक्ति के आराध्य देव माने गए हैं। शिव सदैव सक्रिय रहते हैं। जहां शिव तत्व होता है, वहां परिवर्तन की प्रक्रिया सतत रूप से चलती है। समस्त विश्व का कल्याण करने वाले शिव समस्त प्राणियों को दीन-दुखियों की सेवा करने की प्रेरणा देते हैं।....
वास्तु के ये चमत्कारी उपाय रोक सकते हैं गृह क्लेशों को, बनी रहेगी शांति
सामाजिक व्यवस्था में घर-परिवार का अपना महत्व है, जहां सभी सदस्य मिल-जुलकर रहते हैं तथा एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाते हैं। परिवार में बने रिश्तों की डोर बड़ी नाजुक होती है, एकता प्रेम और स्नेह भाव बनाए रखने के प्रयास के बावजूद कई बार छोटी-छोटी बातों को लेकर पति-पत्नी, सास-बहू, पिता-पुत्र, भाई-भाई के बीच टकराव और मतभेद हो ही जाता है, जो आपसी कलह का रूप लेने पर परिवार के वातावरण को तनावपूर्ण बना देता है। इस कारण परिवार के सदस्यों के मध्य आपस रिश्ते भी खराब हो जाते हैं। गृह कलह के यूं तो बहुत सारे कारण होते हैं, लेकिन ज्योतिष एवं वास्तु की दृष्टि से गृह कलह ग्रहों के दोषपूर्ण या अशुभ दशा होने अथवा भवन में एक या अनेक वास्तु दोष होने से भी गृह कलह उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है। ....
राशि के अनुसार करें महादेव की पूजा, सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी
देवाधिदेव महादेव को प्रिय सावन (श्रावण) मास 10 जुलाई से प्रारम्भ हो गया है। इस मास में आशुतोष भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रावण में ही समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी इसलिए इस मास में शिव आराधना करने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है। पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होने के कारण यह श्रावण या सावन का महिना कहलाता है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्रमा है। इस मास में सूर्य संक्रांति कर्क राशि में होती है। कर्क का स्वामी भी चंद्रमा है, अतः चंद्रमा के स्वामित्व वाला सोमवार भगवान शंकर को अत्यन्त प्रिय दिन है। श्रवण नक्षत्र के चारों चरण मकर राशि में पडते हैं और मकर राशि का स्वामी ग्रह शनि है। शनि की दशा-अर्न्तदशा और साढ़ेसाती से छुटकारा पाने के लिए श्रावण मास में शिव पूजा अमोघ फलदायी है। इस मास में प्रतिदिन शिवोपासना, पार्थिव शिवपूजा, रुद्राष्टाध्यायी पाठ, महामृत्युंजय जप आदि करने का विशेष महत्व है। शिवार्चन में शिव महिम्न स्तोत्र, शिव ताण्डव स्तोत्र, शिव पंचाक्षर स्तोत्र, शिव मानस पूजा स्तोत्र, रुद्राष्टक, बिल्वाष्टक, लिंगाष्टक, शिवनामावल्याष्टक स्तोत्र, दारिद्रय दहन स्तोत्र आदि के पाठ करने का महत्व है। मंत्र-यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ महामृत्युंजय यंत्र (षिव यंत्र) की साधना सावन मास में करना फलदायी होता है। जप तप आदि के लिए यह मास सर्वश्रेष्ठ है।....
शिवपूजा के हैं कुछ नियम, रखेंगे याद तो हो जाएंगे निहाल
श्रावण सभ्यता और संस्कृति को याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है। आधुनिक सभ्यता में भाषा की शक्ति चुक गई है, शब्द अर्थ खोकर खोखले हो गए हैं, जो बचा है वह मात्र कोलाहल है। भाषा के शब्द-अर्थहीन हो जाने से उसकी विश्वसनीयता ही खत्म होने के कगार पर है। लेकिन क्या मजेदार है यह सावन का महीना जो हर बार अपने उन्हीं घमंडी घनों के साथ ऐसी सनातन गर्जन करता है जो वह सहस्राब्दियों से करता आ रहा है। आज तक न तो उसकी आवाज बदली और न ही गरजने का अंदाज। सावन से ऋषियों ने अपने अध्यात्म को जोड़ा। सनातन सावन के भीतर की गरज के बीच वे आत्मा को जानने-खोजने निकले। वे सावन के बरसने में भी ईश्वर के अंश को ढूंढ़ रहे हैं। कोई पूछे कि कब से? तो इस प्रश्न का उत्तर अनंत काल होगा। तप: पूत ऋषि कहते हैं कि यदि सूर्य, चंद्र और अग्नि तीनों अस्त हैं, भयानक अंधकार है, वाणी स्तब्ध है, कोई सहारा नहीं है तो ऐसे में पुरुष के पास एकमात्र बच निकलने का साधन, एकमात्र सुरक्षा है आत्मा। कहते हैं सावन में कुछ खास नियमों के साथ पूजा की जाए तो भगवान का पूरा आशीर्वाद मिल सकता है।....
केवल 2 मंत्रों के उच्चारण से महादेव भर देंगे झोली, नहीं रहेगी कोई मुराद अधूरी
भारतीय संस्कृति में धार्मिक कृत्यों का अपना महत्व है। विभिन्न धर्म ग्रंथों, वेद, पुराण आदि में अनेक ऐसे मंत्र और अनुष्ठान दिए गए हैं जिनके द्वारा जटिल से जटिल बीमारियोंए कष्टों, समस्याओं का निवारण सम्भव है। यहां तक कि अकाल मृत्यु और दुर्घटना से बचाव के लिये इन मन्त्रों के विधि पूर्वक जाप किया जा सकता है। ऐसा ही एक मंत्र है महामृत्यंजय मंत्र जिसे रुद्र मंत्र, त्रयम्बकम मंत्र, मृतसंजीवनी मंत्र आदि नामों से जाना जाता है। पद्म पुराण में वर्णित इस मंत्र को महर्षि मार्कण्डेय द्वारा तैयार किया गया था। कहा जाता है कि मार्कण्डेय ही एक मात्र ऐसे ऋषि थे जिन्हें इस महामंत्र का ज्ञान था। महर्षि शुक्राचार्य ने भी इस महामंत्र के द्वारा अमृत सिद्धि प्राप्त की थी। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को मृत्यंजय के रूप में समर्पित माना गया है। इस मंत्र के बीज अक्षरों में विशेष शक्ति है। इस मंत्र को ऋग्वेद का ह्रदय भी माना जाता है। मेडिटेशन के लिए इस मंत्र से बेहतर कोई और मंत्र नहीं है। मंत्र की श्रद्धापूर्वक साधना करने से जीवन में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है तथा और दुर्घटना आदि से बचाव होता है।इस मंत्र को शुद्ध रूप में इस प्रकार पढ़ा जाता है- ....
श्रावण के पहले सोमवार को होगा ऐसा रूद्राभिषेक, तो गणेश, धनलक्ष्मी और शक्ति का रहेगा साथ
श्रावण और भाद्रपद मास पूरे वर्ष के हृदय हैं। शंकर श्रावणप्रिय के अनुसार पूरे 12 महीनों में महादेव को श्रावण मास सर्वाधिक प्रिय है। इसी कारण परंपरा में बरसाती सावन मास में आशुतोष भगवान शंकर का पूजन, आराधन और रुद्राभिषेक से विशेष अर्चन होता है। वेद-पुराणों के अनुसार महादेव सारे देवताओं के प्राण हैं। वे पार्वतीनाथ अपने भक्तों पर बहुत शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित फल देने वाले भोले-भंडारी हैं। जलधाराप्रिय: शिव: इस शास्त्र वाक्य के अनुसार भगवान शंकर को निर्मल जल की धारा सबसे प्रिय है। वायुपुराण में स्पष्ट लिखा है कि जो व्यक्ति किसी भी पदार्थ का दान करे या वह सारे धन-धान्य, स्वर्ण और औषधियों से भले युक्त हो पर इन सबके साथ ही यदि वह महादेव को जल चढ़ाता है और सावन मास में श्रद्धायुक्त होकर रुद्राभिषेक करता है तो वह उसी शरीर से भगवान शिव को प्राप्त कर लेता है। इसलिए हरेक व्यक्ति को पूरे सावन मास में प्रतिदिन रुद्राभिषेक करना चाहिए।....
10 जुलाई से होंगे श्रावण शुरू, ऐसी पूजा करने से महादेव हो जाएंगे प्रसन्न, नहीं रहेगी पैसों की कोई कमी
आगामी 10 जुलाई से श्रावण मास शुरू होने को है। देवों के देव महादेव अर्थात शिव की पूजा-अर्चना के लिए श्रावण मास को सर्वाधिक पवित्र माना गया है। इस मास में भक्ति भाव से भगवान शिव की आराधना से समस्त देवता प्रसन्न होते हैं, साथ ही भक्तों को धन, संपदा, संतान, शिक्षा, रोगमुक्ति, सुख, आनंद, निर्मल बुद्धि आदि की प्राप्ति भी होती है। पवित्र गंगा नदी से कांवर में गंगा जल लाकर पैदल यात्रा करते हुए श्रावण मास के किसी भी सोमवार को शिव मंदिर में चढाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए श्रावण मास में अपनी मन्नत की पूर्ति के लिए कांवड लाने की परंपरा है। ....
गुरु पूर्णिमा का ज्योतिष महत्व भी समझें, संवर जाएगा जीवन
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी तिथि गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है। गुरु के प्रति पूर्ण सम्मान, श्रद्धा भक्ति और अटूट विश्वास रखने से जुड़ा यह पर्व ज्ञान अर्जन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि गुरु अपने शिष्यों के आचार-विचारों को निर्मल बनाकर उनका उचित मार्गदर्शन करता है तथा इस नश्वर संसार के मायाजाल, अहंकार, भ्रांति, अज्ञानता, दंभ, भय आदि दुर्गुणों से शिष्य को बचाने का प्रयास करता है।....
वास्तुदोष से घबराएं नहीं भ्रांतियों को पहचाने और करें समाधान, तुरंत मिलेगा आराम
जब से वास्तु का प्रचलन बढ़ा है तब से घर की तोड़-फोड़ ज्यादा होने लगी है। अनावश्यक तोड़-फोड़ से आर्थिक नुकसान तो होता ही है तथा साथ ही वास्तुभंग का दोष भी लगता है। मात्र दिशाओं के अनुसार किया निर्माण कार्य हमेशा शुभ फलदायक हो, यह आवश्यक नहीं है। अशुभ समय में किया गया कार्य कितना ही वास्तु सम्मत क्यों न हो नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में वास्तु से जुड़ी भ्रांतियों को समझने और उनके समाधान से ही उचित रास्ता निकल सकता है। ....
जैन धर्म में क्यों कहा जाता है चातुर्मास को महापर्व?
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव यानि आदिनाथ भगवान से लेकर अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी तक और उनके बाद आज तक वर्षायोग की परंपरा दिगंबर और श्वेतांबर जैन मान्यातों में प्रमुखता से मानी जाती है। यह आध्यात्मिक साधना का अद्भुत पर्व है जो आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी या आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के मंगलकारी दिन से प्रारंभ होता है। चातुर्मास यानि जीवन परिवर्तन की साधना के प्रवेश द्वार का दिवस। यह आत्मसाधक मुनि, आर्यिका, श्रावक-श्राविका का प्रत्येक दृष्टि से तप-त्याग-संयम-समता-समाधि के आनंद-उत्साह, अहिंसा व मधुरता का आस्वादन कराने वाली धन्य घड़ियाँ हैं। ....
अमावस के दिन इन खास मन्त्रों के जाप से से दूर होगी पैसों की कमी, नहीं रहेगी आर्थिक समस्या
जब समस्याएं मनुष्य के नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तब ईशाराधना ही एकमात्र उपाय होता है और ईशाराधना का सर्वश्रेष्ठ साधन मन्त्र जप एवं समर्पण है। यदि आपकी भी निम्नलिखित में से कोई आर्थिक समस्या है, तो उसे संबंधित मन्त्र के जप से दूर किया जा सकता है। ....
मनचाही और सुयोग्य पत्नी पाने के केवल तीन टोटके, 15 दिनों में दिखाते हैं असर
शास्त्रों में कहा गया जाता है कि जोडियां स्वर्ग में बनती है और पति-पत्नी का जन्म -जन्मों का साथ होता है लेकिन कई बार ना चाहते हुए भी विवाह में विलंब हो जाता है। ऐसे में ज्योतिष द्वारा सुझाए कुछ उपाय हो सकते हैं जो कि तुरंत यहां तक कि केवल 15 दिनों में असर दिखाने लगता है। ये खास उपाय शीघ्र विवाह में सहायक सिद्ध होते हैं : ....
जब सारे काम बिगडने लगें, हर चीज में हो नुकसान करें तो करें ये ग्रह दोष उपाय
मानव अपने पूर्वार्जित कर्मफलों के अनुरूप इस जन्म में सुख-दु:ख भोगता है। इन सुख-दु:खों का संकेत जन्मपत्रिका से प्राप्त होता है। जन्मपत्रिका में ग्रह बली एवं शुभ स्थिति में हों, तो व्यक्ति को सुख प्राप्त होता है, वहीं, वे निर्बल एवं अशुभ स्थिति में हों, तो दु:खों की अधिकता रहती है। ग्रहादोषजन्य इन दु:खों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। ज्योतिष, धर्म एवं तन्त्रग्रन्थों में ऐसे कई उपायों का वर्णन है, जिनसे ग्रहदोषजन्य कष्टों को कम किया जा सकता है। ऐसे ही सरल उपायों का यहां वर्णन किया जा रहा है।....
इन आसान उपायों से पढाई और करिअर से जुडी बाधाएं होंगी तुरंत दूर
वर्तमान में प्रत्येक युवा ऐसे कॅरिअर का चुनाव करना चाहता है, जिसमें वह अपने जीवन की जरूरतों और महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण कर सके, लेकिन ऐसा हो, जरूरी नहीं। दरअसल, भाग्य और परिश्रम दोनों का जब संयोग बनता है, तभी सफलता कदम चूमती है। उत्तम शिक्षा प्राप्त हो और उसी के अनुरूप श्रेष्ठ कार्यक्षेत्र भी मिले, इसके लिए ज्योतिष शास्त्र मार्गदर्शक एवं सहयोगी हो सकता है।
जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव वाणी एवं ज्ञान के उपयोग का प्रदाता माना जाता है। इस भाव के श्रेष्ठ होने पर जातक स बन्धित क्षेत्र में जहां अपनी वाणी से सफलता प्राप्त करता है, वहीं स बन्धित ज्ञान का उपयोग भी पूर्ण रूप से कर पाता है। इसी प्रकार तृतीय भाव उसकी रुचि एवं पराक्रम का होता है। इससे जहां जातक की किसी विषय विशेष में रुचि प्रकट होती है, वहीं यह भाव कार्यक्षेत्र के अनुकूल मानसिक दृढ़ता यानी पराक्रम का भी द्योतक है। चतुर्थ भाव प्राथमिक शिक्षा और पंचम भाव उच्च शिक्षा का माना गया है। इन भावों पर शुभ प्रभाव तथा इनके स्वामियों की बली एवं शुभ स्थिति शिक्षा में सफलता दिलाने वाली होती है। इसके अतिरिक्त बुध एवं गुरु तथा शिक्षा के विषय के कारक ग्रह का भी बली एवं शुभ स्थिति में होना आवश्यक है। यदि उक्त भावों में पापग्रह अथवा त्रिकेश स्थित हों तथा इनके स्वामी भी त्रिक भावस्थ हों, नीच या शत्रु राशिस्थ हों अथवा अस्त या वक्री हों, तो शिक्षा में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। यदि शिक्षा प्राप्ति के दौरान राहु, केतु या त्रिकेश की दशा-अन्तर्दशा विद्यमान हो अथवा गोचर में गुरु, शनि, राहु आदि ग्रह अशुभ फलप्रद हों, तो भी शिक्षा में बाधाएं आती हैं।
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