श्रावण के पहले सोमवार को होगा ऐसा रूद्राभिषेक, तो गणेश, धनलक्ष्मी और शक्ति का रहेगा साथ
श्रावण और भाद्रपद मास पूरे वर्ष के हृदय हैं। शंकर श्रावणप्रिय के अनुसार पूरे 12 महीनों में महादेव को श्रावण मास सर्वाधिक प्रिय है। इसी कारण परंपरा में बरसाती सावन मास में आशुतोष भगवान शंकर का पूजन, आराधन और रुद्राभिषेक से विशेष अर्चन होता है। वेद-पुराणों के अनुसार महादेव सारे देवताओं के प्राण हैं। वे पार्वतीनाथ अपने भक्तों पर बहुत शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित फल देने वाले भोले-भंडारी हैं। जलधाराप्रिय: शिव: इस शास्त्र वाक्य के अनुसार भगवान शंकर को निर्मल जल की धारा सबसे प्रिय है। वायुपुराण में स्पष्ट लिखा है कि जो व्यक्ति किसी भी पदार्थ का दान करे या वह सारे धन-धान्य, स्वर्ण और औषधियों से भले युक्त हो पर इन सबके साथ ही यदि वह महादेव को जल चढ़ाता है और सावन मास में श्रद्धायुक्त होकर रुद्राभिषेक करता है तो वह उसी शरीर से भगवान शिव को प्राप्त कर लेता है। इसलिए हरेक व्यक्ति को पूरे सावन मास में प्रतिदिन रुद्राभिषेक करना चाहिए।....
10 जुलाई से होंगे श्रावण शुरू, ऐसी पूजा करने से महादेव हो जाएंगे प्रसन्न, नहीं रहेगी पैसों की कोई कमी
आगामी 10 जुलाई से श्रावण मास शुरू होने को है। देवों के देव महादेव अर्थात शिव की पूजा-अर्चना के लिए श्रावण मास को सर्वाधिक पवित्र माना गया है। इस मास में भक्ति भाव से भगवान शिव की आराधना से समस्त देवता प्रसन्न होते हैं, साथ ही भक्तों को धन, संपदा, संतान, शिक्षा, रोगमुक्ति, सुख, आनंद, निर्मल बुद्धि आदि की प्राप्ति भी होती है। पवित्र गंगा नदी से कांवर में गंगा जल लाकर पैदल यात्रा करते हुए श्रावण मास के किसी भी सोमवार को शिव मंदिर में चढाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए श्रावण मास में अपनी मन्नत की पूर्ति के लिए कांवड लाने की परंपरा है। ....
गुरु पूर्णिमा का ज्योतिष महत्व भी समझें, संवर जाएगा जीवन
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी तिथि गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है। गुरु के प्रति पूर्ण सम्मान, श्रद्धा भक्ति और अटूट विश्वास रखने से जुड़ा यह पर्व ज्ञान अर्जन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि गुरु अपने शिष्यों के आचार-विचारों को निर्मल बनाकर उनका उचित मार्गदर्शन करता है तथा इस नश्वर संसार के मायाजाल, अहंकार, भ्रांति, अज्ञानता, दंभ, भय आदि दुर्गुणों से शिष्य को बचाने का प्रयास करता है।....
वास्तुदोष से घबराएं नहीं भ्रांतियों को पहचाने और करें समाधान, तुरंत मिलेगा आराम
जब से वास्तु का प्रचलन बढ़ा है तब से घर की तोड़-फोड़ ज्यादा होने लगी है। अनावश्यक तोड़-फोड़ से आर्थिक नुकसान तो होता ही है तथा साथ ही वास्तुभंग का दोष भी लगता है। मात्र दिशाओं के अनुसार किया निर्माण कार्य हमेशा शुभ फलदायक हो, यह आवश्यक नहीं है। अशुभ समय में किया गया कार्य कितना ही वास्तु सम्मत क्यों न हो नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में वास्तु से जुड़ी भ्रांतियों को समझने और उनके समाधान से ही उचित रास्ता निकल सकता है। ....
जैन धर्म में क्यों कहा जाता है चातुर्मास को महापर्व?
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव यानि आदिनाथ भगवान से लेकर अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी तक और उनके बाद आज तक वर्षायोग की परंपरा दिगंबर और श्वेतांबर जैन मान्यातों में प्रमुखता से मानी जाती है। यह आध्यात्मिक साधना का अद्भुत पर्व है जो आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी या आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के मंगलकारी दिन से प्रारंभ होता है। चातुर्मास यानि जीवन परिवर्तन की साधना के प्रवेश द्वार का दिवस। यह आत्मसाधक मुनि, आर्यिका, श्रावक-श्राविका का प्रत्येक दृष्टि से तप-त्याग-संयम-समता-समाधि के आनंद-उत्साह, अहिंसा व मधुरता का आस्वादन कराने वाली धन्य घड़ियाँ हैं। ....
अमावस के दिन इन खास मन्त्रों के जाप से से दूर होगी पैसों की कमी, नहीं रहेगी आर्थिक समस्या
जब समस्याएं मनुष्य के नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तब ईशाराधना ही एकमात्र उपाय होता है और ईशाराधना का सर्वश्रेष्ठ साधन मन्त्र जप एवं समर्पण है। यदि आपकी भी निम्नलिखित में से कोई आर्थिक समस्या है, तो उसे संबंधित मन्त्र के जप से दूर किया जा सकता है। ....
मनचाही और सुयोग्य पत्नी पाने के केवल तीन टोटके, 15 दिनों में दिखाते हैं असर
शास्त्रों में कहा गया जाता है कि जोडियां स्वर्ग में बनती है और पति-पत्नी का जन्म -जन्मों का साथ होता है लेकिन कई बार ना चाहते हुए भी विवाह में विलंब हो जाता है। ऐसे में ज्योतिष द्वारा सुझाए कुछ उपाय हो सकते हैं जो कि तुरंत यहां तक कि केवल 15 दिनों में असर दिखाने लगता है। ये खास उपाय शीघ्र विवाह में सहायक सिद्ध होते हैं : ....
जब सारे काम बिगडने लगें, हर चीज में हो नुकसान करें तो करें ये ग्रह दोष उपाय
मानव अपने पूर्वार्जित कर्मफलों के अनुरूप इस जन्म में सुख-दु:ख भोगता है। इन सुख-दु:खों का संकेत जन्मपत्रिका से प्राप्त होता है। जन्मपत्रिका में ग्रह बली एवं शुभ स्थिति में हों, तो व्यक्ति को सुख प्राप्त होता है, वहीं, वे निर्बल एवं अशुभ स्थिति में हों, तो दु:खों की अधिकता रहती है। ग्रहादोषजन्य इन दु:खों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। ज्योतिष, धर्म एवं तन्त्रग्रन्थों में ऐसे कई उपायों का वर्णन है, जिनसे ग्रहदोषजन्य कष्टों को कम किया जा सकता है। ऐसे ही सरल उपायों का यहां वर्णन किया जा रहा है।....
इन आसान उपायों से पढाई और करिअर से जुडी बाधाएं होंगी तुरंत दूर
वर्तमान में प्रत्येक युवा ऐसे कॅरिअर का चुनाव करना चाहता है, जिसमें वह अपने जीवन की जरूरतों और महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण कर सके, लेकिन ऐसा हो, जरूरी नहीं। दरअसल, भाग्य और परिश्रम दोनों का जब संयोग बनता है, तभी सफलता कदम चूमती है। उत्तम शिक्षा प्राप्त हो और उसी के अनुरूप श्रेष्ठ कार्यक्षेत्र भी मिले, इसके लिए ज्योतिष शास्त्र मार्गदर्शक एवं सहयोगी हो सकता है।
जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव वाणी एवं ज्ञान के उपयोग का प्रदाता माना जाता है। इस भाव के श्रेष्ठ होने पर जातक स बन्धित क्षेत्र में जहां अपनी वाणी से सफलता प्राप्त करता है, वहीं स बन्धित ज्ञान का उपयोग भी पूर्ण रूप से कर पाता है। इसी प्रकार तृतीय भाव उसकी रुचि एवं पराक्रम का होता है। इससे जहां जातक की किसी विषय विशेष में रुचि प्रकट होती है, वहीं यह भाव कार्यक्षेत्र के अनुकूल मानसिक दृढ़ता यानी पराक्रम का भी द्योतक है। चतुर्थ भाव प्राथमिक शिक्षा और पंचम भाव उच्च शिक्षा का माना गया है। इन भावों पर शुभ प्रभाव तथा इनके स्वामियों की बली एवं शुभ स्थिति शिक्षा में सफलता दिलाने वाली होती है। इसके अतिरिक्त बुध एवं गुरु तथा शिक्षा के विषय के कारक ग्रह का भी बली एवं शुभ स्थिति में होना आवश्यक है। यदि उक्त भावों में पापग्रह अथवा त्रिकेश स्थित हों तथा इनके स्वामी भी त्रिक भावस्थ हों, नीच या शत्रु राशिस्थ हों अथवा अस्त या वक्री हों, तो शिक्षा में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। यदि शिक्षा प्राप्ति के दौरान राहु, केतु या त्रिकेश की दशा-अन्तर्दशा विद्यमान हो अथवा गोचर में गुरु, शनि, राहु आदि ग्रह अशुभ फलप्रद हों, तो भी शिक्षा में बाधाएं आती हैं।
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विधि-विधान से धारण किया रत्न कर सकता है वारे न्यारे, बिगाड भी सकता है ग्रहों की चाल
रत्न शब्द श्रेष्टता का द्योतक है जो विधिवत प्राण-प्रतिष्टित करके शुभ नक्षत्र और शुभ वार को धारण करने से निर्बल ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर करके जीवन में सुख, शांति, धन, मान-सम्मान, आरोग्य, संतान, विवाह सुख, राज्य लाभ, भूत-प्रेत बाधा मुक्ति आदि लाने में सहायक होते हैं। रत्नों के शुभ प्रभाव की प्राप्ति के लिए रत्न धारण करते समय मन में अश्रद्धा, अपवित्र और दूषित भावना नहीं होनी चाहिए। रत्न धारण करते समय यह सुनिश्चित कर चाहिए कि धारण किये जाने वाला रत्न दोषरहित हो अर्थात उसमें किसी तरह का कोई धब्बा, गड्ढा, छिद्र आदि न हो तथा वह टूटा या चटका हुआ न हो।
अगर रत्न धारण करने के बाद जातक को किसी भी तरह की परेशानी, घबराहट, बेचैनी, दुर्घटना, चोरी, पारिवारिक कलह, व्यापार में घाटा, क्रोध अथवा मानसिक तनाव जैसे प्रतिकूल प्रभाव नजर आने लगें तो तत्काल धारण किये गए रत्न को उतार देना चाहिए। चूंकि रत्न अधिक कीमती होते हैं इसलिए उनकी जगह उप-रत्न भी धारण किये जा सकते हैं। यहाँ हम रत्न धारण करने के सामान्य नियमों की जानकारी सुधी पाठकों को दे रहे हैं।
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दिल से जुडे रोगों का निदान है ज्योतिष में, एक बार आजमाकर देखेंगे तो दंग रह जाएंगे
ज्योतिष शास्त्र के साथ-साथ वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि दोषपूर्ण ग्रह, नक्षत्र और मनुष्य द्वारा पूर्व जन्म में किये गए अशुभ कर्मों के परिणाम स्वरुप इस जन्म में शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। हृदय मनुष्य के शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है जो सदैव गतिशील रहकर समस्त अंग-प्रत्यंगों में रक्त की आपूर्ति करता है। हृदय गति रुक जाने का अर्थ मनुष्य की मृत्यु होने से लगाया जाता है। ....
इन मंत्रों के जाप से नौकरी खिंची चली आएगी, सरकारी नौकरी के बनने लगते हैं योग
समाज का ताना-बाना इस तरह से बुना गया है कि युवा होने के साथ ही नौकरी पाने का तनाव बढने लगता है। कई बार कम उम्र ही नौकरी लग जाती है तो कई बार चाहते हुए भी नौकरी नहीं मिल पाती। कई बार तो दर-दर की ठोकरें खाने के बाद भी ईशकृपा नहीं हो पाती। ऐसे में निराशा व्यक्ति को घेरने लगती है और वह तनाव का शिकार होने लगता है। लेकिन घबराएं नहीं दोस्तो , हमारे वेद, पुराणों और ज्योतिष में इस नैराश्य के भंवर से निकलने के भी रास्ते बताए गए हैं, जिन्हें अपनाकर कुछ ही दिनों में मनचाहा रोजगार पाया जा सकता है। भले ही आपको यकीन ना आए लेकिन यह सच है और कई लोगों द्वारा परखा हुआ भी है। पुराणों के द्वारा कई ऐसे मंत्र बताए गए हैं, जिनके उच्चारण मात्र से रोजगार सजृन होने लगता है यानी कि नौकरी आपकी ओर खिंचने लगती है कई बार तो राजयोग और सरकारी नौकरी के भी योग बनने लगते हैं। आइए जानें कि किस राशि वाले जातक को क्या खास उपाय और मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए- ....
प्रवेश द्वार पर काले घोडे की नाल लक्ष्मी को बुलाती है
पैसों की कमी और बुरी नजर से ज्याेदातर लोगों को परेशान करती है। ऐसे में ज्योातिष में कई उपाय बताए गए हैं लेकिन उनमें सबसे प्रभावी और परखा हुआ उपाय है घोडे की नाल। अपने घर या आफिस को बुरी नजर और दरिद्रता से बचाने के लिए काले घोड़े की नाल का उपयोग करना चाहिए। यह दो प्रकार की होती है। एक तो वह जो अंगूठी के तरह होती है जिसे हाथ में मध्यमा अंगुली में धारण किया जाता है और एक वह जो यू आकृति की होती है, जिसे घर, ऑफिस, दुकान आदि में लगाया जाता है। नाल किस तरह आपके लिए मददगार हो सकती जानें इस खास आलेख में-....
रमल ज्योतिष के बारे में जानते हैं आप? इसके अनुसार करेंगे देवों की आराधना तो तकदीर संवर जाएगी
रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में जातक यानी कि प्रश्नकर्ता रमल ज्योतिष के विद्वान से प्रश्न करें कि किस देवी-देवता कि आराधना करें। जिससे लाभ-शान्ति, पारिवारिक बढत, भौतिक सम्पदा, धन-धान्य में वृद्वि, शान्ति, सन्तान सुख, ख्यातिमय इत्यादि हो। इस वास्ते पासे जिसे अरबी भाषा में कुरा कहते हैं। किसी शुद्व पवित्र स्थान पर डलवाए जाते है। यह सारी प्रक्रिया विद्वान के समक्ष होती है। यदि जातक विद्धान के सम्मुख ना हो तो नवीन शोध विषय के अनुसार प्रश्न-फार्म के माध्यम से भी यह कार्य सम्पादित किया जा सकता है। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में जीवन के सारे के प्रश्नों के जबाव मय समाधान बिना कुण्डली के किए जाते हैं। ....
क्या आप जानते हैं हम नमस्ते क्यों करते है, कई आध्यात्मिक राज छिपे हैं इसमें
हमारे शास्त्रों में पांच प्रकार के पारंम्परिक अभिवादनों के बारे में बताया गया है जिसमें से नमस्कार एक है। इसे साष्टांग प्रणाम के रूप में लिया जाता है परंतु वास्तव में इसका अभिप्राय श्रृद्धा से है जैसा कि हम वर्तमान में करते हैं, जब हम एक दूसरे का नमस्ते के द्वारा अभिवादन करते हैं। ....