नवरात्र में इस काम के बिना अधूरी रहेगी पूजा, इसे जरूर करें
Astrology Articles I Posted on 16-10-2023 ,06:29:33 I by:
आज 15 अक्टूबर रविवार से शारदीय नवरात्र की शुरूआत हो चुकी है। इस बार नवरात्र पूरे नौ दिन तक चलेंगे। नवरात्रि के 9 दिन माता दुर्गा को समर्पित हैं। इन नौ दिनों में भक्तों द्वारा माता दुर्गा की पूजा पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ आराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना कर माता की पूजा करने से जीवन की सभी मुश्किलें समाप्त हो जाती हैं और समृद्धि का आगमन होता है। ऐसा भी कहा व माना जाता है कि नवरात्रि के पहले दिन दुर्गा चालीसा का पाठ करना पुण्यदायक होता है। वहीं, दूसरी ओर पूजा का समापन आरती के बिना अधूरा माना जाता है। इसलिए नवरात्र के पहले दिन दुर्गा चालीसा जरूर पढ़ना चाहिए और पूजा अर्चना की समाप्ति पर माता रानी की आरती को भी जरूर करना चाहिए।
पढ़ें दुर्गा चालीसा…
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥ तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥ रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥ रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥ लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥ क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥ हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥ मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥ केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥ कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥ सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत॥ शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तन बीज शंखन संहारे॥ महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥ आभा पुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥ ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥ प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥ जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥ शंकर आचारज तप कीनो।
काम क्रोध जीति सब लीनो॥ निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥ शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥ भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु मुरख मोही डरपावे॥ शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥ करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।। जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥ श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥ देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥ ॥इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण॥ जय माता दी
मां दुर्गा की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
जय अम्बे गौरी कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
जय अम्बे गौरी भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
जय अम्बे गौरी