इन शुभ मुहूर्तों में किया काम होता है शर्तिया सफल, एक बार परख लें

ज्योतिष शास्त्र में किसी भी काम शुरुआत से शुभ और अशुभ तिथियां देखना आवश्यक है। किसी भी काम की शुरुआत यदि सही मुहूर्त में हो तो सफलता की संभावना बढ जाती है। आइए जाने शुभ-अशुभ तिथियों और उनके स्वामियों के बारे में-



चंद्रमा की एक कला को तिथि माना गया है। इसका मान सूर्य व चंद्रमा के बीच के अन्तर अंशों से निकाला जाता है। प्रति दिन 12 अंशों का भ्रमण सूर्य व चंद्रमा के भ्रमण में होता है, जिसकी गणना हम पक्षों को लेकर करते है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां शुक्ल पक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियां कृष्ण पक्ष की होती है। हमें तिथियों की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए।
तिथि और उनके स्वामी
प्रतिपदा का स्वामी अग्नि, द्वितीया का ब्रह्मा, तृतीया की गौरी, चतुर्थी का गणेश, पंचमी का शेषनाग, षष्ठी का कार्तिकेय, सप्तमी का सूर्य, अष्टमी का शिव, द्वादशी का विष्णु, त्रयोदशी का कामदेव, चतुर्दशी का शिव पूर्णमासी का चंद्रमा व अमावस्या का पितर स्वामी होता है। इन स्वामियों का विचार करके ही हमें शुभ अशुभ कार्यो का पूरा करना चाहिए। क्रमश: प्रतिपदा के दिन अग्नि से सम्बन्धित काम करना चाहिए। इसी प्रकार ब्रह्मा, गौरी, गणेश, शेषनाग, कार्तिकेय, सूर्य आदि देवों की अराधना क्रमश: तिथियों में करने से विशेष सिद्धिदायक होती है। इसी के साथ नवमी तिथि को दुर्गा देवी की आराधना तंत्र विधा में सफलता देती है। दशमी को प्रतिशोध वाले कार्य और एकादशी को विशेषरूप से दान पुण्य व्रत का बड़ा महत्त्व है। इस तिथि को कोई काम करने से भूख से सम्बंधित दोष पैदा होते हैं। एकादशी को हमेशा दूसरे जीवों का खिलाना चाहिए। द्वादशी को विष्णु भगवान की पूजा का बड़ा महत्त्व है। त्रयोदशी को विवाह मुहुत्र्त नहीं करना चाहिए। इसके स्वामी कामदेव होने की वजह से वधु में कामुकता के विचार ज्यादा आते हैं और इस तिथि की अद्र्धरात्रि में वशीकरण मंत्र जप बडे सिद्विदायक होते है। चर्तुदशी अमावस्या के पहले वाली में पितरों की पूजा का विशेष महत्त्व है। पितरों की पूजा इसी तिथि को करनी चाहिए और पूर्णिमा सभी कार्यो में सफलता देने वाली होती है।

ये हैं शुभ तिथियां, इनमें करें काम की शुरुआत
1, 6, 11 नंदा, 2,7,12 भद्रा 3, 8, 13 जया 4, 9, 14 रिक्ता और 5, 10, 15 पूर्णा तिथियां कहलाती हैं। कई बार इनके साथ वार का शुभ संयोग बैठता है जो बहुत ही बाछित फल प्रदान करने वाला होता है। जैसे मंगलवार को जया, बुधवार को भद्रा, गुरुवार को पूर्णा, शुक्रवार को नन्दा तथा शनिवार को रिक्ता तिथियां कार्य की सिद्विदायक होती है। इसी प्रकार नन्दा तिथि रविवार या मंगलवार को भद्रातिथि सोमवार या शुक्रवार को जया तिथि बुधवार को रिक्ता तिथि गुरुवार को तथा पूर्णा तिथि शनिवार को आये तो मृत्यु योग होता हेइस योग में कार्य करने से असफलता ही मिलती है।
मास शून्य तिथियां
चैत्र मास में दोनों पक्ष की अष्टमी और नवमी वैशाख में दोनों पक्षों की द्वादशी और ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, आषाढ़ में कृष्ण पक्ष की षष्ठमी व शुक्ल पक्ष की सप्तमी, श्रावण मास में दोनों पक्षों की तृतीया व द्वितीया आश्विन में दोनों पक्षों की दशमी व एकादशी कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी मृगशिर मास में दोनों पक्षों की सप्तमी व अष्टमी पौष मास में दोनो पक्षों की चतुर्थी व पंचमी माघ मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी व शुक्ल पक्ष की षष्ठी फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी व शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि मास शून्य तिथियां होती हैं। इन तिथियों के अंदर कोई शुभ काम नही करना चाहिए।
राहूकाल का रखें ध्यान
हमें रोजाना राहुकाल वेला को भी ध्यान में रखना चाहिए, जो साधारणतया स्थानीय समयानुसार सोमवार को सुबह 7:30 से 9:00 तक मंगलवार को 15:00 से 16:30 तक बुधवार को 12 से 13:30 तक गुरूवार को 13:30 से 15:00 तक शुक्रवार को 10:30 से 12:00 तक शनिवार को 9: 00 से 10:30 तक व रविवार को सायं 16:30 से 18:30 बजे के काल में रहता है। हमें दैनिक जीवन में करने वाले कार्यों को यदि उपरोक्त सुयोगों व कुयोगों को देखकर करे तो हर सम्भव सफलता हासिल कर सकते हैं।
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