घर में पैसों का लगातार हो रहा हैं नुकसान तो करें ये खास उपाय

यदि आपके घर में पैसों का लगातार नुकसान हो रहा हो, घर में पैसा नहीं रुक रहा हो या फिर दरिद्रता बढ रही हो, व्यावसाय में लगातार हानि हो रही हो तो हिम्मत ना हारें। धार्मिक ग्रंथों में ऐसे कई उपाय सुझाए गए हैं जिन्हें अपनाकर हम अच्छा जीवन जी सकते हैं-

रात को सोते समय सर के पास एक लोटे में दूध भरकर रखें। सुबह ये दूध बबूल की जड़ में चढ़ा दें। इससे बुरी नज़र की वजह से हो रही धन हानि रूकती है, धन लाभ होता हैं।

रोज़ गणेशजी की पूजा करते समय दूर्वा जरूर चढ़ाएं। साथ ही, श्री गणेशाय नमः का जप कम से कम 108 बार करें। इस उपाय से हानि रूकती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है।

गुरुवार को शिवलिंग पर हल्दी की गांठ चढ़ाएं। इस उपाय से भाग्य की बाधाएं दूर होती है और धन लाभ होता है।

अगर आप शाम के समय तुलसी के पास दीपक जलाते है जिससे घर में सुख-समृद्धि आत है, लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि शाम को तुलसी को न छूना चाहिए न इसकी पत्ती तोड़नी चाहिए और न ही तुलसी पर जल चढाना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार शाम के समय घर की साफ-सफाई नही करनी चाहिए न ही घर का कूड़ा शाम को बाहर फेकना चाहिए, ऐसा करने से आपके घर की सकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाएगी जिससे आपके घर में दरिद्रता का वास हो जाएगा। इसलिए शाम होने से पहले घर को साफ कर लेना चाहिए।
सोमवार को शिवलिंग पर कच्चा दूध चढाने से कुंडली दोष दूर होते हैं जिससे धन हानि रुक जाती है शुक्रवार को महालक्ष्मी की पूजा करते समय ॐ श्री नमः मन्त्र का 108 बार जाप करें| ऐसा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और दरिद्रता दूर हो जाती है |

सुबह शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर चावल चढ़ाएं। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती। रात के समय शिव मंदिर जाएं और दीप दान करें। ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं होता।

पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके किया गया मंत्र जाप धन, वैभव व ऐश्वर्य की कामना को पूरी करता है। रूद्राक्ष की माला लेकर अपनी इच्छा अनुसार शिव मंत्र का जाप करें : -
मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।
श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहारिणे।
सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥


धन-हानि हो रही हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।


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