विद्यार्थियों को विशेष रूप से करनी चाहिए माँ सरस्वती की पूजा, मिलती है सफलता
Astrology Articles I Posted on 06-04-2022 ,10:38:10 I by:
पुराणों व अन्य धर्मशास्त्रों में मां सरस्वती को सतोगुण का प्रतीक माना गया है। इसी प्रकार विद्या व ज्ञान को भी सतोगुण माना गया है। मां सरस्वती सतोगुण की अधिष्ठातृ देवी हैं। चूंकि भगवती सरस्वती सतोगुणी हैं, अत: सतोगुण के प्रतीक विद्या या ज्ञान की देवी इन्हें ही माना गया है। मां सरस्वती विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई है। देवी पुराण में सरस्वती को सावित्री, गायत्री, सती, लक्ष्मी और अंबिका नाम से संबोधित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में इन्हें वाग्देवी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि, विद्याधरी, सर्वमंगला आदि नामों से अलंकृत किया गया है। यह संपूर्ण संशयों का उच्छेद करने वाली तथा बोधस्वरूपिणी हैं। इनकी उपासना से सब प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती है।
विद्वानों के अनुसार मां सरस्वती का जन्म बसंती पंचमी को हुआ था इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है और इस दिन की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन लोग विद्या विधि विधान के अनुसार विद्या के स्वामी की पूजा करते हैं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मां की विशेष कृपा के लिए मां की पूजा पूरे विधि विधान से करनी चाहिए। प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों और बच्चों के लिए माँ सरस्वती विशेष महत्व रखती है। मां सरस्वती की पूजा से घर में एक खास तरह की सकारात्मक ऊर्जा आती है। कहा जाता है कि ढाई से तीन साल के बच्चे जिन्होंने पढऩा शुरू नहीं किया है, उन्हें अपनी जीभ पर चांदी की कलम या अनार की लकड़ी की कलम लिखनी चाहिए। ऐसा करने से आपका बच्चा बुद्धिमान बनेगा और जीवन में हर तरह की सफलता हासिल करेगा।
माँ सरस्वती संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी हैं। ताल, स्वर, लय, राग रागिनी आदि का प्रादुर्भाव भी इन्हें से हुआ है। सात प्रकार के स्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है, इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती हैं। सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है। वीणावादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणावस्था है। वीणावादन शरीरयंत्र को एमदम स्थैर्य प्रदान करता है। इसमें शरीर का अंग-अंग परस्पर गुंथकर समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है। साम संगीत के सारे विधि विधान एकमात्र वीणा में सन्निहित हैं।
मार्कण्डेयपुराण में कहा गया है कि नागराज अश्वतारा और उसके भाई काम्बाल ने सरस्वती से संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। वाक् सत्वगुणी सरस्वती के रूप में प्रस्फुटित हुआ। सरस्वती के सभी अंग श्वेताभ हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्वगुणी प्रतिभा स्वरूपा हैं। इसी गुण की उपलब्धि जीवन का अभीष्ट है। कमल गतिशीलता का प्रतीक है। यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है।