शीतला माता का व्रत और पूजन विधान
Astrology Articles I Posted on 31-03-2016 ,00:00:00 I by:
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है। ऋतु परिवर्तन के समय शीतला माता का व्रत और पूजन करने का विधान है। शीतला माता का सप्तमी एवं अष्टमी को पूजन करने से दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले रोग नहीं होते। यदि आप व्रत रखने में सक्षम न हों तो मां को बाजड़ा अर्थात गुड़ और रोट अर्पित करने से भी कर सकते हैं प्रसन्न। इसके अतिरिक्त माता की कथा श्रवण अवश्य करें तत्पश्चात आरती करें।
उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए---
इस पर्व को बसोरा (बसौडा) भी कहते हैं। ‘बसोरा’ का अर्थ है- बासी भोजन। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं, फिर दूसरे दिन प्रात:काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद घर के सब व्यक्ति बासी भोजन को खाते हैं। जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो, उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए। पौराणिक उल्लेख हिन्दू व्रतों में केवल शीतलाष्टमी का व्रत ही ऐसा है, जिसमें बासी भोजन किया जाता है। इसका विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है। शीतला माता का मंदिर वट वृक्ष के समीप ही होता है। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता है।
क्या-क्या बनता है बसौडा में---
बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात्रि में बनाकर रख लिए जाते हैं। तत्पश्चात सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं। पूजा करने के बाद घर की महिलाओं ने बसौडा का प्रसाद अपने परिवारों में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। महत्त्वपूर्ण तथ्य इस व्रत में मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि एक दिन पहले से ही बनाए जाते हैं अर्थात व्रत के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। व्रती रसोईघर की दीवार पर 5 अंगुली घी में डुबोकर छापा लगाता है।
पूजन करने का विधान है---
इस पर रोली, चावल, आदि चढ़ाकर मां के गीत गाए जाते हैं। इस दिन शीतला स्रोत तथा शीतला माता की कथा भी सुननी चाहिए। रात्रि में दीपक जलाकर एक थाली में भात, रोटी, दही, चीनी, जल, रोली, चावल, मूँग, हल्दी, मोठ, बाजरा आदि डालकर मन्दिर में चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करते हैं। इसके बाद मोठ, बाजरा का बयाना निकाल कर उस पर रुपया रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श कर उन्हें देना चाहिए। उसके पश्चात किसी वृद्धा को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए।