शीतला अष्टमी: माता को ठंडे पकवानों को भोग लगाकर महिलाओं ने की घर परिवार में सुख-शांति की कामना

जयपुर। शीतला अष्टमी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है। शीतला अष्टमी को बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। पूरे प्रदेश में आज शीलता अष्टमी पर महिलाओं शीतला माता को ठंडे पकवानों को भोग लगाकर घर परिवार में सुख-शांति की कामना की हैं। महिलाएं शीतला माता के मंदिर में शुक्रवार अल सुबह से ही मंगलगीत गाती हुई पहुंची। इसके बाद ठंडे पानी से शीतला माता को स्नान करवाया। हल्दी से माता को टीका लगाया। इसके बाद घरों में कल बनाए रोटी, राबडी, लापसी, पुए-पकौडी,मूंगथाल आदि ठंडे पकवानों का भोग लगाया। आपको बताते जाए कि शीतलाष्टमी के दिन से पीली मिट्टी से तैयार ईसर-गणगौर की पूजा अर्चना शुरू हो जाएगी ।

शीतला माता के मेले का आयोजन जयपुर जिले के चाकसू में शील की डूंगरी में होता है।

शीतला माता का वर्णन

स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं।

नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी - हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती - रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।

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