मंगलवार शाम 7.05 से शुरू होगी शरद पूर्णिमा, इस तरह करें पूजा

ज्योतिष में आश्विन पूर्णिमा को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में ज्यादा जाना जाता है। इस बार यह पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 को शाम 7 बजकर 5 मिनट 43 सेकंड से प्रारम्भ होकर 20 अक्टूबर को रात्रि 8 बजकर 28 मिनट और 57 सेकंड तक रहेगी। धर्मशास्त्रों में आश्विन पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा को माँ लक्ष्मी के जन्म दिन के तौर पर मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर धरती पर विचरण करने आती हैं। ऐसे में इस दिन की गई मां लक्ष्मी की पूजा से भक्तों का भाग्य खुलता है और और घर में धनवर्षा होती है। यूं तो हर घर में रोज ईश्वर की आराधना की जाती है लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा का अपना ही अलग महत्त्व है।

आइए डालते हैं एक नजर माँ लक्ष्मी या यूं कहें शरद पूर्णिमा के दिन की जाने वाली पूजा पर...

लें व्रत करने का संकल्प
इस व्रत को करने से पहले अपने सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान आदि कार्य करें और फिर अपने ईष्टदेव के समक्ष व्रत करने का संकल्प लें।

भगवान शिव-पार्वती और कार्तिकेय की होती है पूजा
व्रत का संकल्प लेने के पश्चात् अपने ईष्ट देव की पूजा करें। इसके लिए उनके चित्र या मूर्ति को कुश के आसन पर रखकर जल से पवित्र करें और सुदंर वस्त्र पहनाकर उनका आह्वान करते हुए आचमन करें और फिर उन्हें गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित करके उनका पूजन करें और व्रत के संकल्प को दोहराएं। इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की पूजा भी की जाती है।

गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं
रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर अपने ईष्टदेव को भोग लगाएं। इसके बाद रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित हो जाने पर चंद्रदेव का पूजन करें तथा उन्हें खीर का भोग अर्पण करें। रात्रि में ही छत पर जहाँ, चंद्रमा की रोशनी पड़ रही हो वहाँ पर खीर से भरा बर्तन रख दें। बर्तन उस स्थान पर रखें जहाँ पर बिल्ली के या अन्य किसी पशु के आने-जाने का खतरा न हो। अब दूसरे दिन उस पात्र की खीर को सेवन करें और उसे प्रसाद रूप में सभी को बांटे।

पूर्णिमा व्रत की कथा सुने
इसके बाद पूर्णिमा व्रत की कथा सुनें। कथा से पूर्व एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएं। अंत में सभी देवी देवाओं की पूजा आरती करें।

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