संकट तिल चौथ : महिलाएं क्यों रखती हैं व्रत, जानें- पूजन विधि और कथा
Astrology Articles I Posted on 05-01-2018 ,15:50:39 I by: vijay
तिल चौथ का व्रत माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन किया जाता है। इसे माही चौथ और संकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की आराधना करना सुख-सौभाग्य की दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है। उत्तर भारत सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ रखा जाता है। इस संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ के पर्व पर महिलाएं अपने परिवार की सुख और समृद्धि के लिए निर्जल व्रत रखेंगी और गणेश जी की पूजा करेंगी। जिससे उनके परिवार पर कभी भी किसी भी तरह से कोई परेशानी न आए।
संकट चौथ का शुभ मुहूर्त-
तिल चौथ संकट चौथ पर चंद्रोदय का समय रात्रि 8.20 मिनट पर शुभ मुहूर्त हैं इसमें चन्द्रमा को जल अर्पित किया जाता हैं उसके बाद ही व्रत खोलकर खाना खाया जाता हैं। सबसे पहले भगवान् गणेश की मूर्ति को पंचामृत से स्नान करने के बाद फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, मौली अर्पित करें और फिर तिल से बनी वस्तुओं अथवा तिल-गुड से बने लड्डुओं का भोग लगाकर भगवान गणेश की स्तुति की जाती है। सकट चौथ पर 108 बार गणेश मंत्र - ओम गणेशाय नम: का जप करें, अपने हर दु:ख को भगवान गणेश से कहे। इससे आप पर आने वाली हर एक विपदा का समाधान होगा और जो भी परेशानियां चली आ रही हैं उससे भी मुक्ति मिलेंगी।
पूजा करने की विधि...
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करते समय अपना मुंह उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ रखें। भगवान गणे की पीठ का दर्शन न करें। भगवान गणेश की पूजा में मोदक का भोग तो लगता ही है लेकिन इस दिन भगवान गणेश की पूजा में तिल के लड्डू भी चढाने चाहिए। मोदक के अलावा दुर्वा, पुष्प, रोली, फल सहित पंचामृत को भी पूजन में शामिल करें। संकट चौथ को भगवान गणपति की आरती जरूर करनी चाहिए। इसके साथ ही संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा जरूर सुननी चाहिए।
संकट चौथ पौराणिक कथा-
माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी गणेश चतुर्थी, तिलकूट चतुर्थी, संकटा चौथ, तिलकुट चौथ व्रत को लेकर एक कथा भी प्रचलित है। सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार कुम्हार ने बर्तन बना कर आंवा लगाया, पर आंवा पका ही नहीं बर्तन कच्चे रह गए। इससे कुम्हार बहुत परेशान हो गया और बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक के पास जाकर पूछा तो उसने कहा कि इस संकट से बचने के लिए किसी एक बच्चे की बलि देना पडेगा।
बलि के बाद तुम्हारे सभी संकट दूर हो जाएगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर संकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया। परन्तु सौभाग्यवश बालक की माता ने उस दिन गणेशजी की पूजा की थी। बहुत खोजने के बाद भी जब पुत्र नहीं मिला तो गणेशजी से प्रार्थना की।
सुबह कुम्हार ने देखा कि आंवा तो पक गया, परन्तु बच्चा जीवित और सुरक्षित था। डर कर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार कर लिया। राजा ने माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणेश पूजा के बारे में बताया। तब से प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकटहारिणी माना जाता है और इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करने से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
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