राहुकाल करता है मतिभ्रम, बचने के लिए देवी त्रिपुरा सुंदरी के महागौरी स्वरूप की पूजा-अर्चना करे

मुंबई. राहुकाल करता है मतिभ्रम, राहु के अशुभ प्रभाव को कम करने और शुभ प्रभाव को बढ़ाने के लिए....
* देवी त्रिपुरा सुंदरी के महागौरी स्वरूप की पूजा-अर्चना करें.
* काले हनुमान की आराधना करें.
* देवी सरस्वती की पूजा अर्चना करें.
दरअसल, राहुकाल का सीधा सा अर्थ है- राहु के प्रभाववाला समय. इस समय में शुभ कार्य इसलिए नहीं किया जाता कि राहु अपनी प्रकृति के सापेक्ष असर देता है- मतिभ्रम होता है, गुप्त विरोधी बढ़ते हैं, हर बात में राजनीतिक दखलंदाजी होती है, मानसिक तनाव होता है, पद-प्रतिष्ठा प्रभावित होती है, आदि-इत्यादि.
लेकिन, राहुकाल हर व्यक्ति के लिए खराब नहीं होता है. जिनकी जन्म कुंडली में राहु कारक है, उन्हें इसका लाभ भी मिलता है.
राहु के प्रभाव में आने वाली समयावधि में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करने से बचना चाहिये. राहुकाल के समय शुभ ग्रहों के लिये किये जाने वाले पूजन, हवन तथा यज्ञ इत्यादि भी राहु के विनाशकारी स्वभाव के कारण प्रभावित होते हैं, इसलिए यदि कोई राहुकाल के समय, पूजा, हवन तथा यज्ञ इत्यादि करता है, तो उसे मनोवान्छित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं.
इसलिए कोई भी नवीन कार्य आरम्भ करने से पूर्व राहुकाल का विचार करना जरूरी है, इससे इच्छित परिणाम प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है.
हालांकि, राहु से सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कार्य इस समय में अच्छे परिणाम देता है, इसलिए राहु की प्रसन्नता हेतु किये जाने वाले हवन, यज्ञ आदि राहुकाल में सम्पन्न किये जा सकते हैं.
राहुकाल के समय- विवाह, अनुष्ठान, गृह प्रवेश आदि तो निषेध हैं ही, साथ ही, इस काल अवधि में, शेयर, सोना, भवन-जमीन, वाहन इत्यादि खरीदने और नवीन व्यापार प्रारम्भ करने से भी बचना चाहिए.
राहुकाल में पूर्व से ही चले आ रहे कार्यों को जारी रखा जा सकता है.
राहुकाल, प्रत्येक दिवस की एक निश्चित समयावधि होती है, जो लगभग डेढ़ घण्टे तक रहती है, राहुकाल, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के मध्य, दिन के आठ खण्डों में से एक समय-खण्ड है, एक निश्चित स्थान के सापेक्ष, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के मध्य की कुल समयावधि को निकालकर, उस अवधि को आठ से विभाजित करने के पश्चात, दिन के आठ खण्डों की गणना की जाती है.
सूर्योदय तथा सूर्यास्त के स्थानीय समय में अन्तर के कारण, राहुकाल का समय व अवधि किन्हीं भी दो स्थानों के लिये समान नहीं होती है.
यहां तक कि- एक स्थान के लिये भी राहुकाल का समय और अवधि सभी दिनों के लिये समान नहीं है, क्योंकि सूर्योदय तथा सूर्यास्त का समय वर्ष पर्यन्त प्रतिदिन बदलता रहता है, इसलिए राहुकाल प्रत्येक दिन का और प्रत्येक स्थान का देखना चाहिए.
सूर्योदय के पश्चात् प्रथम खण्ड सदैव शुभ होता है, यह अवधि सदैव राहु के प्रभाव से मुक्त रहती है. सोमवार को राहुकाल दूसरे खण्ड में, शनिवार को तीसरे खण्ड में, शुक्रवार को चौथे खण्ड में, बुधवार को पांंचवें खण्ड में, गुरुवार को छठे खण्ड में, मंगलवार को सातवें तथा रविवार को आठवें खण्ड में रहता है.
देवी त्रिपुरा सुंदरी का आठवां स्वरूप महागौरी है, देवी महागौरी की पूजा-अर्चना से राहु ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है, इसलिए जिन श्रद्धालुओं की राहु की दशा-अंतर्दशा चल रही हो, उन्हें देवी महागौरी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिनका पढ़ाई में मन नहीं लगता हो उन्हें भी देवी महागौरी की उपासना करनी चाहिए, देवी महागौरी की पूजा-अर्चना से परिवार में मतिभ्रम समाप्त होता है और शैक्षिक समृद्धि आती है, यही नहीं, संतान के रूप-सौन्दर्य-वैभव प्राप्ति के लिए श्रद्धालुओं को देवी महागौरी की आराधना करनी चाहिए.
जिन श्रद्धालुओं को रहस्यमय एवं अज्ञात शत्रुओं से भय हो उन्हें देवी महागौरी की रक्षार्थ आराधना करनी चाहिए. देवी की इस मंत्र से पूजा-अर्चना करें... ॐ देवी महागौर्यै नमः!
-प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी, बॉलीवुड एस्ट्रो एडवाइजर

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