12 तरह के होते हैं श्राद्ध कर्म, जानिए-हर एक का मतलब
Astrology Articles I Posted on 19-09-2019 ,15:39:54 I by: vijay
पितृ पक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए
श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इन दिनों में पितरों को पिण्ड दान तथा तिलांजलि
कर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए। श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों
को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। इन 16 दिनों में
कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, उपनयन संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश आदि
नहीं होंगे।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष अपने पितरों
से जुड़ा पर्व है। इसमें 16 दिनों तक पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म
करते हैं। उनको भोजन और तर्पण देते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले।
श्राद्ध से हम उन्हें सम्मान और आदर प्रकट करते हैं।
धार्मिक
मान्यताओं के अनुसार, सभी के पितर अलग होते हैं। ऐसे में उनकी श्राद्ध कर्म
भी अलग-अलग तरीके से किया जाता है। पुराण में 12 तरह के श्राद्ध बताए गए
हैं। आइए, उनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
नित्य श्राद्ध : पितृपक्ष के दिनों में रोजाना जल, अन्न, दूध से श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं।
नैमित्तिक श्राद्ध : माता-पिता की मृत्यु के दिन यह श्राद्ध किया जाता है।
काम्य श्राद्ध : यह श्राद्ध विशेष सिद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
वृद्धि श्राद्ध : सौभाग्य और सुख में कामना कामने के लिए वृद्धि श्राद्ध किया जाता है।
सपिंडन श्राद्ध : यह मृत व्यक्तियों को 12वें दिन किया जाता है। इसे महिलाएं भी कर सकती है।
शुद्धयर्थ श्राद्ध : पितृपक्ष में किया जाने वाले यह श्राद्ध परिवार की शुद्धता के लिए किया जाता है।
गोष्ठी श्राद्ध : जो श्राद्ध परिवार के सभी सदस्य मिलकर करते हैं उसे गोष्ठी श्राद्ध कहा जाता है।
पार्वण श्राद्ध : इस को पर्व की तिथि पर किया जाता है। इसलिए इसे पार्वण श्राद्ध कहा जाता है।
यात्रार्थ श्राद्ध : जो श्राद्ध यात्रा की सफलता के लिए किया जाता है उसे याश्रार्थ श्राद्ध कहा जाता है।
पुष्टयर्थ श्राद्ध : जो श्राद्ध आर्थिक उन्ननि के लिए किए जाते हो इसे पुष्टयर्थ श्राद्ध कहा जाता है।
कर्मांग श्राद्ध : किसी संस्कार के मौके पर किया जाने वाले श्राद्ध कर्मांग श्राद्ध कहलाता है।
तीर्थ श्राद्ध : किसी तीर्थ पर किये जाने वाला श्राद्ध तीर्थ श्राद्ध कहा जाता है।
अगर किसी को अपने परिजन की मृत्यु की तिथि सही-सही मालूम ना हो तो इसका श्राद्ध अमावस्या तिथि को किया जाना चाहिए।
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