किस दिन रखा जाएगा अजा एकादशी का व्रत, जानिये शुभ मुहूर्त व किससे है सम्बन्ध

सावन पूर्णिमा के साथ ही भाद्रपद माह की शुरुआत हो चुकी है। हर माह में भगवान विष्णु की पूजा के लिए दो एकादशी के व्रत होते हैं। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी अजा एकादशी कहलाती है। अजा एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा से आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और संतान को प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने सबसे पहले अजा एकादशी का व्रत रखा था। जानिए कब है अजा एकादशी और इस दिन कौनसे शुभ योग बन रहे हैं और किस मुहूर्त में किया जा सकता है भगवान विष्णु का पूजन।

इस बार भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 29 अगस्त को प्रात: 1 बजकर 19 मिनट से शुरू होने वाली है और यह तिथि 30 अगस्त, शुक्रवार को प्रात: 1 बजकर 37 मिनट तक रहने वाली है। उदया तिथि के अनुसार भाद्रपद की पहली एकादशी यानी अजा एकादशी का व्रत 29 अगस्त, गुरुवार को रखा जाएगा।

इस बार अजा एकादशी के दिन 29 अगस्त को 2 शुभ योग बन रहे हैं। सुबह से लेकर शाम 6 बजकर 18 मिनट तक सिद्धि योग है। शाम 4 बजकर 39 मिनट से अगले दिन 30 अगस्त को सुबह 5 बजकर 58 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग बनेगा। ये दोनों योग पूजा-पाठ के लिए बहुत फलदायी माने जाते हैं। व्रत के दिन सुबह से शाम 4 बजकर 39 मिनट तक आर्द्रा नक्षत्र है।

अजा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा के लिए सूर्योदय के बाद सुबह 5 बजकर 58 मिनट के बाद सर्वोतम मुहूर्त है। इस दिन रात में 1 बजकर 58 मिनट से 3 बजकर 34 मिनट तक राहुकाल है, इस समय में पूजा ना करें।

अजा एकादशी व्रत का पारण 30 अगस्त को करना होगा. व्रत पारण का समय सुबह 7 बजकर 49 मिनट से सुबह 8 बजकर 31 मिनट तक है।
पुराणों में वर्णन के अनुसार, अजा एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि अजा एकादशी व्रत की कथा सुनने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

अजा एकादशी पर जो भगवान विष्णु की पूजा और उपासना करता है उनसे अश्नमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है। इस व्रत का संबंध राजा हरिशचंद्र से है। ऐसा कहा जाता है कि राजा हरिशचंद्र ने इस व्रत को किया और उनका मरा हुआ बेटा दोबारा जीवित हो गया। यही नहीं राजा को सारा राजपाट भी वापस मिल गया। ऐसा कहा जाता है कि यह एकादशी सभी पापों को समाप्त कर मोक्ष को देने वाली है।

इस दिन सवेरे स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनकर सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। इसके बाद उस पर तांबे का लोटा यानी कलश रखें। लोटे को जल से भरें और उसपर अशोक के पत्ते या डंठल वाले पान रखें फिर उस पर नारियल रख दें। इस तरह कलश स्थापना करें। फिर कलश पर या उसके पास विष्णु भगवान की मूर्ति रखकर कलश और भगवान विष्णु की पूजा करें। दीपक लगाएं।

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