कुछ खास राशियों पर होते हैं ये ग्रह मेहरबान, संवर जाता है जीवन

हर किसी की आकांक्षा अच्छे रहन सहन के साथ साथ समाज में मान सम्मान और उच्च पद एवं प्रतिष्ठा की होती है परन्तु उनके लिए कुंडली में ग्रह योग उपस्थित होना आवश्यक है, ज्योतिष के मूल ग्रंथों में कुछ महत्वपूर्ण ग्रह योग बताए गए हैं, उनमें से ये कुछ प्रमुख ग्रह योग है जो उच्च दर्जे की सफलता अर्थात मजबूत आर्थिक स्थिति, सुख सुविधाएं, उच्च पद और सम्मान में विशेष प्रतिष्ठा दिलाते हैं।


गज केसरी योग :
गुरु और चन्द्रमा अगर एक दूसरे के साथ या एक दूसरे से केंद्र स्थान अर्थात पहले, चौथे, सातवें और दसवें स्थान में हो तो गजकेसरी योग निर्मित होता है। ये योग समाज में एक विशेष प्रतिष्ठा प्रदान करता है, इस योग के साथ जन्मे व्यक्ति की ज्ञान अर्जन और अध्ययन की तरफ विशेष रूचि होती है, धार्मिक प्रवृत्ति वाले ये व्यक्ति समाज एवं धर्म के उत्थान की दिशा में वो विशेष कार्य करते है। शहर /समाज या ग्राम के प्रबुद्ध व्यक्तियों में गिने जाने ये लोग आजीविका के रूप में किसी बड़े संस्थान के मुखिया होते है।

महाराज योग: आज की परिभाषा में सुख सुविधाओं और सामाजिक प्रतिष्ठा से पूर्ण जीवन को कुंडली में स्थित राज योग का फल कहा जा सकता है, परन्तु उच्च दर्जे का पद, अति विशेष प्रतिष्ठा और सामाजिक व्यवस्था चलाने हेतु शक्तिया अधीन हो तो वो महाराज योग कहलाता है। जन्म कुंडली में लग्न पहले और पंचम भाव मजबूत स्थिति में हो और भावो के अलावा इन किसी अन्य दुर्भाव के स्वामी ना हो और एक साथ किसी केंद्र या त्रिकोण स्थान में हो ये महाराज योग निर्मित होता है, यही परिस्थिति तब भी निर्मित होती है जब आत्मकारक ग्रह (कुंडली में सर्वाधिक अंशों वाला ग्रह) और पुत्रकारक ग्रह (कुंडली में पांचवा सर्वाधिक अंशों वाला ग्रह) मजबूत स्थिति में केंद्र या त्रिकोण स्थिति में हो। इन ग्रहों का नवमांश में नीच की स्थिति में होने पर या छठे, आठवें या बारहवे के स्वामी होने की स्थिति में ये योग कमजोर होता है।

धर्मकर्माधिपति योग: इस योग को ज्योतिषीय ग्रंथो में अत्यन्त महत्वपूर्ण योग कहा गया है , इस योग के साथ जन्मा व्यक्ति धर्म और समाजसेवा के क्षेत्र में कोई बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य करते हुए किसी सामाजिक संस्था का मुखिया या किसी महत्वपूर्ण पद को प्राप्त करने के साथ विशेष ख्याति अर्जित करता है। नवम भाव जन्म कुंडली का धर्म का भाव होता है और दशम भाव कर्म स्थान कहलाता है जब इन दोनों भावो के स्वामी ग्रह एक दूसरे के स्थान परिवर्तन कर रहे हो, या किसी केंद्र और त्रिकोण स्थान में हो या मजबूत स्थिति में एक दूसरे पर दृष्टि डाल रहे हो तब उस परिस्थिति में धर्मकर्माधिपति योग निर्मित होता है।

श्रीनाथ योग : श्रीनाथ योग के साथ जन्मे लोगों पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है, इन ये लोग बहुत ही सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है, संतान सुख प्राप्त होता है और सभी मित्रो और सम्बन्धियों के चहेते होते है। इस योग के फलस्वरूप वे बहुत अच्छे वक्ता होते है और लक्ष्मी की भी उनपर विशेष कृपा होती है। सुखी और समृद्ध जीवन के लिए ये योग एक महत्वपूर्ण राजयोग है। अगर सप्तम भाव का स्वामी दशम भाव में उच्च की स्थिति में नवम भाव के स्वामी के साथ हो तब श्रीनाथ योग निर्मित होता है। योग में सम्मिलित ग्रहों के नवमांश में नीच के होने और किसी अन्य दूषित ग्रह की दृष्टि से ये योग कमजोर होता है।

कलानिधि योग : इस योग के साथ जन्मे लोग उत्साह से भरपूर ऊर्जावान, बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व और स्वभाव के, शासन द्वारा सम्मानित, समृद्ध, बहुत से वाहनों के स्वामी और सभी प्रकार की बीमारियों से दूर एक स्वस्थ शरीर के स्वामी होते है। जन्म कुंडली में गुरु द्वितीय या पंचम स्थान में शुक्र या बुध से दृष्ट होतो कलानिधि योग निर्मित होता है। एक अन्य परिस्थिति में अगर गुरु दूसरे या पांचवें घर में शुक्र या बुध की राशि में स्थित हो तो तब भी इस योग के फल प्राप्त होते है। इस योग के सही फल के लिए आवश्यक है की बुध और शुक्र भी किसी भी प्रकार के दोष से रहित हो।
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