नागपंचमी : ऎसे चमकाए आपनी किस्मत
Astrology Articles I Posted on 04-08-2015 ,00:00:00 I by:
नाग भगवान शंकर के अंग भूषण माने गए हैं। नागपंचमी के दिन शिवजी के साथ ही नागों की पूजा करने से विशेष फल की प्राçप्त होती है। नाग-पंचमी श्रावण मास में शुक्लपक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। हिंदू धर्मग्रंथों में नाग को प्रत्येक पंचमी तिथि का देवता माना गया है, परंतु नाग-पंचमी पर नाग की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। नाग-पंचमी का पर्व धार्मिक आस्था व विश्वास के सहारे हमारी बेहतरी की कामना का प्रतीक है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस दिन नाग दर्शन का विशेष महत्व है। इस दिन सांप मारना मना है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी को धरती खोदना निषिद्ध है। इस दिन व्रत करके सांपों को खीर खिलाई व दूध पिलाया जाता है जबकि यह गलत है। कहीं-कहीं सावन माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी नागपंचमी मनाई जाती है। खास तौर पर इस दिन सफेद कमल पूजा में रखा जाता है।
नागपंचमी के दिन क्या करें-
- इस दिन नागदेव के दर्शन अवश्य करना चाहिए।
- बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए।
- नागदेव को दूध नहीं पिलाना चाहिए। उन पर दूध चढ़ा सकते हैं।
- नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
- ओम कुरूकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्प दोष दूर होता है।
नाग पूजन कैसे करें-
- अलसुबह उठकर घर की सफाई करके नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं।
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तपश्चात स्त्रान कर धुले हुए साफ एवं स्वच्छ कप़डे धारण करें।
- नाग पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएं।
- कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन पहले ही भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी (ठंडा) खाना खाया जाता है।
- इसके बाद दीवार पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवार पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति बनाते हैं।
- कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पांच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं।
- सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं।
- फिर दीवार पर बनाए गए नागदेवता की दही, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं।
- पश्चात आरती करके कथा का श्रवण किया जाना चाहिए।