करवा चौथ अखंड सौभाग्य का प्रतीक: चंद्र दर्शन और व्रत खोलने से पहले जरूर करें यह काम

करवा चौथ का व्रत केवल परंपरा नहीं, बल्कि स्त्रियों की शक्ति, प्रेम और संकल्प का प्रतीक है। यह व्रत हर स्त्री को अपने जीवनसाथी के लिए निस्वार्थ प्रेम और समर्पण का अनमोल अवसर देता है। व्रत कथा का पाठ और उसकी सीख हमें याद दिलाती है कि प्रेम और भक्ति के साथ किए गए प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाते। करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है।


 यह व्रत न केवल पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए रखा जाता है, बल्कि इसे अखंड सौभाग्य और वैवाहिक सुख-समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास रखकर रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत खोलती हैं। इसके साथ ही करवा चौथ की पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। ऐसा माना जाता है कि बिना कथा सुने या पढ़े इस व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता। आइए, इस महत्वपूर्ण पर्व की पौराणिक कथा और उसकी गहराई को एक नए दृष्टिकोण से समझते हैं। करवा चौथ की व्रत कथा में न केवल धार्मिकता की गहराई है, बल्कि इसमें भाई-बहन के रिश्ते की मासूमियत और पति-पत्नी के प्रेम की गहराई भी छिपी है। इस कथा के अनुसार, बहुत समय पहले इंद्रप्रस्थपुर नामक नगर में वेदशर्मा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी लीलावती और सात पुत्रों के साथ रहता था। 


उसकी एकमात्र बहन वीरावती थी, जो अपने भाइयों की दुलारी थी। वीरावती का विवाह होने के बाद उसने अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। दिनभर निर्जल व्रत रखने के कारण वीरावती की तबीयत खराब हो गई और उसके भाइयों को चिंता होने लगी। अपने बहन की तकलीफ को देखकर उन्होंने उसे व्रत तोड़ने की योजना बनाई। उन्होंने पीपल के पेड़ के पीछे अग्नि जलाकर यह दिखाया कि चंद्रमा उदय हो चुका है। वीरावती ने भाइयों की बातों में आकर व्रत तोड़ दिया। इसके तुरंत बाद उसे अशुभ संकेत मिलने लगे और उसे अपने पति की मृत्यु की खबर मिली। पति की मृत्यु की खबर सुनकर वीरावती अत्यंत दुखी हो गई और उसने देवी-देवताओं से अपने पति की जीवन रक्षा के लिए प्रार्थना की। 



उसकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर देवी इन्द्राणी ने उसे दर्शन दिए और बताया कि उसने चंद्र दर्शन किए बिना व्रत तोड़ा था, जिसके कारण यह दुर्भाग्य हुआ। देवी इन्द्राणी ने उसे हर माह की चौथ पर व्रत करने की सलाह दी। 


वीरावती ने पूरी श्रद्धा और नियम के साथ व्रत करना शुरू किया। इस तपस्या के फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया। तब से करवा चौथ का व्रत पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। करवा चौथ का व्रत न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक भी है। यह व्रत स्त्रियों के लिए एक ऐसा अवसर है जब वे निस्वार्थ भाव से अपने पति के लिए तपस्या करती हैं और वैवाहिक जीवन के सौभाग्य को स्थिर रखने का प्रयास करती हैं। आज भी इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है, और इसके पीछे की कथा हमें सिखाती है कि धैर्य, विश्वास और ईश्वर की भक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।


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