ऎसे करें कन्या पूजन, दूर होंगे घर के सारे दोष
Astrology Articles I Posted on 24-03-2018 ,18:26:18 I by: vijay
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है।
अष्टमी व नवमी तिथि के दिन तीन से नौ वर्ष की कन्याओं का पूजन किए जाने की
परंपरा है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं
साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है।
कन्या पूजन का विधान---
मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए नौ कन्याओं के पूजन का विधान है।
वैसे तो आम तौर पर सभी शुभ कार्यो का फल प्राप्त करने के लिए कन्या पूजन
किया जाता है, लेकिन नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। सभी लोग
जानते हैं कि नवरात्र का पर्व श्राद्ध के ठीक बाद होता है। श्राद्ध में
जहां हम अपने पितरों की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करते हैं वहीं
नवरात्र में माता को प्रसन्न करने के लिए हम उपवास-आराधना आदि करते हैं
जिससे भय, विघ्न और शत्रुओं का नाश होता है। मान्यता है कि होम, जप और दान
से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं जितनी कन्या पूजन से प्रसन्न होती हैं।
वास्तु दोष हो दूर-----
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा
होती है। मान्यता है कि यदि वास्तुदोष से ग्रसित भवन में पांच कन्याओं को
नियमित सात दिन तक भोजन कराया जाए तो उस भवन के सारे दोष मिट जाते हैं।
हर उम्र का अलग रूप-----
शक्ति के आराधकों के लिए इस दिन कन्याएं साक्षात मां दुर्गा के समान होती
हैं। इनकी आराधना करने से मां प्रसन्न होती हैं और मनोकामना पूर्ण करती
हैं। नवरात्र में दो वर्ष से दस वर्ष तक की ही कन्याओं का पूजन किया जाना
शुभ माना जाता है। शास्त्रों में दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की
त्रिमूर्त, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका,
सात वर्ष की शांभवी एवं आठ वर्ष की कन्या को सुभद्रा बताया गया है।
ये देवी के वे रूप हैं जिनकी आराधना मात्र से व्यक्ति के सारे क्लेश कट
जाते हैं और व्यक्ति परम सुखी हो सत्कामी हो जाता है। पूजी जाने वाली
कन्याओं को देवी के शक्ति स्वरूप का प्रतीक बताया गया है। नवरात्र में
माता के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा,
स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की पूजा का
विधान है। कहते हैं कि कुमारी पूजन से दुख-दरिद्र दूर होता है तथा शत्रु
का शमन होता है।
इससे धन, आयु एवं बल की वृद्धि होती है। त्रिमूर्ति की पूजा से धर्म, अर्थ
तथा काम की सिद्धि मिलती है। इसी तरह कल्याणी की पूजा करने से विद्या,
विजय एवं राजसुख की प्राप्ति होती है। चंडिका की पूजा से ऎश्वर्य एवं धन
की पूर्ति होती है। संग्राम में विजय पाने और दुख-दरिद्र को दूर करने के
लिए शांभवी तथा कठिन कार्य को सिद्ध करने के लिए दुर्गा के रूप की पूजा की
जाती है। सुभद्रा का पूजन करने से मनोकामना पूरी होती है तथा रोहिणी की
पूजा से व्यक्ति निरोग रहता है।
अष्टमी को जरूरी कन्या पूजन----
नवरात्र में अगर उम्र के हिसाब से कन्याएं मिलें तो हर दिन उनके पूजन का
विधान है अन्यथा अष्टमी के दिन कन्याओं को आसन पर बैठा कर मां भगवती के
नामों से पृथक-पृथक उनकी पूजा करनी चाहिए। कन्याओं के पूजन और उनकी आरती
उतारने के बाद उनको भोजन कराते हुए वस्त्र आदि भेंट कर उन्हें विदा करना
चाहिए। नवरात्र में किया गया पूजा-पाठ एवं आराधना कभी निष्फल नहीं होती
अपितु श्रद्धालुओं को उसका फल निश्चित रूप से मिलता है।
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