पूजा करते समय भूलकर भी ना करें ये काम

हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा का विधान है और 33 करोड़ देवी-देवताओं वाले इस धर्म में सभी इष्ट देवों को एक विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। पूजा-पाठ करने और भगवान को प्रसन्न करने के कुछ नियम-कायदे होते है जिनका पालन करने से घर में संपन्नता बनी रहती है। पूजा में जप करते समय पूरे विधि-विधान का ध्यान रखना जरूरी होता है। पूरी क्रिया और श्रद्धा के साथ किया गया जप शुभ फल देना वाला होता है। पुराणों में जप से संबंधित कई बातें बताई गई हैं, जिनका ध्यान हर किसी को रखना ही चाहिए।
पुराणों में 5 ऐसे कामों के बारे में बताया गया जो जप करते समय भूलकर भी नहीं करने चाहिए। आइए जानते है कौन-कौनस के है ये काम-
1. छींकना--
देवी-देवताओं का जप करते समय मनुष्य को अपनी छींक या खांसी पर नियंत्रण रखना चाहिए। भगवान का ध्यान करते समय छींकने से मुंह अपवित्र हो जाता है और अपवित्र मुंह से भगवान का नाम लेना वर्जित माना जाता है। अगर भगवान का जप करते समय छींक या खांसी आ जाए तो तुरंत हाथ-मुंह धोकर, पवित्र हो जाना चाहिए और उसके बाद ही जप दोबारा शुरू करना चाहिए।

2. थूकना--
थूक के द्वारा मनुष्य अपने शरीर की गदंगी को बाहर करता है। देवी-देवताओं का ध्यान या जप करते समय ऐसी कोई भी क्रिया करना वर्जित माना गया है। मनुष्य को अपने मन के साथ-साथ शरीर को भी पूरी तरह से शुद्ध करने के बाद ही भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। यदि पूजा या ध्यान के बीच में शरीर संबंधी कोई भी क्रिया करनी पड़े तो फिर से नहाने के बाद ही देव-पूजा करनी चाहिए।

3. जंभाई (उबासी) लेना--
उबासी लेना आलस्य की निशानी होती है। जो मनुष्य सुबह उठने के बाद भी उबासी लेता रहता है या नींद की अवस्था में रहता है, उसे भगवान की पूजा-अर्चना करने की मनाही है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सुबह जल्दी उठ कर, स्नान आदि काम पूरे करके, आलस-नींद जैसे भावों को मन से दूर करके ही भगवान का ध्यान या जप करना चाहिए।

4. क्रोध--
क्रोध यानी गुस्सा करना। बेवजह या बात-बात पर गुस्सा करना सबसे बड़े अवगुणों में से एक माना जाता है। जो क्रोध का भाव अपने मन में रखता है, वह किसी भी काम में अपना मन नहीं लगा सकता। देव पूजा और साधना के लिए मन का शांत और एकाग्र होना बहुत ही जरूरी होता है। अशांत मन से किया गया जप कभी फल नहीं देता। इसलिए, हर मनुष्य को मंदिर जाने से पहले या घर पर ही भगवान की पूजा या जप करने से पहले क्रोध, हिंसा, लालच जैसे भावों को मन से निकान देना चाहिए।

5. मद (नशा)—
जो मनुष्य नशा करता है, उसे पुराणों में राक्षस के समान माना गया है। भगवान की पूजा-अर्चना करने से पहले मनुष्य को अपने मन और अपने तन दोनों की शुद्धि करना बहुत जरूरी होता है। जो मनुष्य शराब पीता या नशा करता है, उसके सभी पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं और उसे नर्क की प्राप्ति होती है। भगवान का ध्यान या जप करते समय नशे के बारे में सोचना भी महापाप माना गया है।

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