धनतेरस की पूजन विधि और शुभ मुहूर्त

दीपावली के दो पहले धरतेरस मनाया जाता है। इस बार यह पर्व नौ नवंबर, सोमवार को है। इस पर्व पर भगवान धन्वंतरि की पूजा का विधान है। इस दिन खरीददारी करना शुभ माना जाता है। सोना-चांदी या इलेक्ट्रोनिक सामान हो या फिर बर्तन... हर कोई कुछ ना कुछ खरीदता जरूर है।

इसी दिन भगवान धन्वंतरि हुए थे प्रकट
धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा की जाती है। पुराणों में लिखी कथा के अनुसार, देवताओं व दैत्यों ने जब समुद्र मंथन किया तो उसमें से कई रत्न निकले। समुद्र मंथन के अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। उस दिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी ही थी। इसलिए तब से इस तिथि को भगवान धन्वंतरि का प्रकटोत्सव मनाए जाने का चलन प्रारंभ हुआ। पुराणों में धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना गया है।

पूजन के शुभ मुहूर्त-
शाम 06:24 से 07:08 तक
शाम 05:58 से रात 08:32 तक (प्रदोष काल)
शाम 06:24 से रात 08:24 तक (वृषभ लग्न)

पूजन विधि-
सबसे पहले नहाकर साफ वस्त्र पहनें। भगवान धन्वंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।

उसके बाद भगवान धन्वंतरि का आह्वान इस मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।


इसके बाद पूजा स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढाएं। आचमन के लिए जल छो़डें। भगवान धन्वंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढाएं। चांदी के बर्तन में खीर का भोग लगाएं। (अगर चांदी का बर्तन न हो तो अन्य किसी बर्तन में भी भोग लगा सकते हैं।) इसके बाद पुन: आचमन के लिए जल छो़डें। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढाएं। भगवान धन्वंतरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्म आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वंतरि को अर्पित करें।

रोग नाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊं रं रूद्र रोग नाशाय धनवंतर्ये फट्।।

इसके बाद भगवान धन्वंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजा के अंत में कर्पूर आरती करें।

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