दीपोत्सव पर्व- दीपावली 2024
Vastu Articles I Posted on 31-10-2024 ,09:13:12 I by:
दीपावली पर्व-दीपावली पर्व हिंदू धर्म का बेहद महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने का विधान है। इस दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। दीपावली पर अमावस्या तिथि होने से अपने पूर्वजों एवं कुल देवी देवताओं का पूजन करके आशीर्वाद भी लिया जाता है।
दीपावली पर्व की विशेषता और इसका महत्व-
दीपावली का सांस्कृतिक महत्व प्रकाश के पर्व से जुड़ा हुआ है। इस त्यौहार का नाम दीप यानि कि मिट्टी के दिए और अवली यानि कि उन दियों की पंक्तियों के रूप में लिया गया है। ये आंतरिक प्रकाश के प्रतीक हैं जो की अंधकार को नष्ट करते हैं। यह त्यौहार रोशनी, खुशी और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने घरों को दीपों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणेशजी का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान राम उनके भाई लक्ष्मण और उनकी पत्नी सीता जी 14 साल के बनवास के बाद वापस लौटे तो उस दिन को अयोध्या के लोगों ने खास बनाने के लिए पूरी नगरी को दीयों से जगमगा दिया और तभी से दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है। दीपावली पर जलाए जाने वाले दीयों को पूरब दिशा में रखने से परिवार को स्वास्थ्य का लाभ होता है और उत्तर दिशा में रखने से धन की प्राप्ति होती है इसलिए इन दोनों दिशाओं में दिए अवश्य जलाने चाहिए।
दीपावली पर्व कब मनाया जाएगा
इस वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर की शाम को 3:54 पर प्रारंभ हो रही है और इसकी समाप्ति अगले दिन शुक्रवार यानि कि 1 नवंबर की शाम 6:17 पर होगी इसलिए उदया तिथि के साथ ही दिनभर 1 नवंबर यानि शुक्रवार को ही अमावस्या तिथि होने के कारण इस वर्ष दीपावली का पर्व 1 नवंबर को ही मनाया जाना उपयुक्त रहेगा।
वैसे भी प्रदोष व्यापिनी कार्तिक अमावस्या के दिन ही दीपावली मनाने का विधान है और यह 1 नवंबर को ही हो पाएगा। इसके अलावा धर्म सिंधु नामक ग्रंथ में भी कहा गया है कि कार्तिक अमावस्या को प्रदोषकाल के समय लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। इसके अलावा यह भी धर्म ग्रंथो में लिखा हुआ है कि अगर दो दिन अमावस्या तिथि चल रही है तो अगले दिन की ही अमावस्या तिथि को दीपावली का पूजन करना चाहिए। इसके अलावा अमावस्या में प्रातः काल पितृ पूजा होती है। लोग पितृ स्थान पर जाकर दीपदान करते हैं, उनको भोग लगाते हैं, उनको वस्त्र अर्पित करते हैं। पितृ कार्य दीपावली के दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है और यह कार्य भी अमावस्या के दिन यानि कि 1 तारीख को ही संपन्न होगा। इसलिए भी दीपावली को 1 नवंबर यानि कि शुक्रवार को ही मनाना उचित माना जाएगा।
मां लक्ष्मी की पूजा विधि
दीपावली के दिन अमावस्या तिथि पर भगवान गणेश एवं माता लक्ष्मी के साथ ही कुबेर एवं बही, खातों की भी पूजा की जाती है। कई लोग इस दिन माता लक्ष्मी के निमित्त उपवास भी रखते हैं।
माता लक्ष्मी के पूजन हेतु स्नान आदि के बाद स्वच्छ स्थान पर गंगाजल का छिड़काव करके चौकी स्थापित करें और उस पर लाल कपड़ा बिछाए। कपड़े के बीच में गेहूं के ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश के अंदर एक सिक्का, सुपारी, फूल और अक्षत डालें। कलश पर आम या अशोक के पत्ते भी बांधना शुभ होता है। फिर उस कलश को एक छोटी थाली से ढककर उसके ऊपर चावल रख दें। कलश के बगल में की माता लक्ष्मी, गणेश जी और कुबेरजी आदि की प्रतिमा स्थापित करें। पूजन में कलश को तिलक लगाए, चौकी पर विराजमान मूर्तियों को एक थाली में रख के दूध, दही, शहद, तुलसी और गंगाजल के मिश्रण से स्नान कराने के बाद स्वच्छ जल से स्नान कराकर वापस चौकी पर विराजमान करें, हाथ में फूल और चावल लेकर माता लक्ष्मी का ध्यान करें, उसके बाद टीका आदि लगाकर सभी देवी, देवताओं को हार पहनाइए, इसके बाद खील, खिलौने, पैसे, सोने के आभूषण रखें, फिर सभी देवी, देवताओं का पूर्ण विधि, विधान से पूजन करना चाहिए। दीपावली की पूजा में प्रज्वलित किया गया दीपक रात्रि पर्यंत निर्विघ्न जलता रहना चाहिए। पूजा के उपरांत माता लक्ष्मी के मंत्रों के साथ ही श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त एवं कनकधारा स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए। ऐसा करने पर निश्चित रूप से मां लक्ष्मी की कृपा देखने को मिलेगी।
मां लक्ष्मी की पूजा लग्न
लक्ष्मी पूजन - धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल और स्थिर लग्न में करना श्रेष्ठ माना जाता है। स्थिर लग्न में वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ लगन को शामिल किया गया है। स्थिर लग्न में पूजा करने से मां लक्ष्मी का घर में स्थाई रूप से वास होता है। महा निशीथ काल में साधकों द्वारा लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। जयपुर में स्थिर लग्न में लक्ष्मी मां की पूजा करने के समय की बात करें तो 1 नवंबर को कुंभ लग्न का प्रारंभ दोपहर 1:56 से लेकर 3:25 तक रहेगा। इसमें व्यवसायिक स्थल पर की जाने वाली पूजा का विशेष महत्व होता है। वृषभ लग्न का प्रारंभ शाम 6:29 से लेकर रात्रि 8:25 तक रहेगा। इस स्थिर लग्न में घर में की जाने वाली पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। सिंह लग्न जो कि साधना और सिद्धि के लिए काफी श्रेष्ठ मानी जाती है उसका प्रारंभ रात्रि 1:02 से होगा और इसकी समाप्ति 3:18 पर होगी। इस प्रकार स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी की पूजा निश्चित रूप से शुभ फल देने वाली साबित होगी।
दीपावली पर अचूक उपाय-
● दीपावली पर तुलसी के बीजों को चांदी में की डब्बी में पूजा करके भरने के बाद उस डब्बी को तिजोरी में रखने से धन में वृद्धि होती है!
● दीपावली पर्व पर लक्ष्मी मां के सामने घी के दीपक में दो लौंग डालकर पूजा करके हलवे का भोग लगाने के बाद ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः इस मंत्र का जाप करने से महालक्ष्मी का घर में निवास होता है
● ओम श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ओम महालक्ष्मी नम
● दीपावली के दिन सुबह गन्ने की जड़ को नमस्कार करके घर लाएं और रात्रि में लक्ष्मी पूजन के साथ में उस जड़ की भी पूजा करने पर घर में लक्ष्मी का वास होने लगता है।
● दीपावली पर चांदी की डब्बी में शहद के साथ ही नागकेसर भरके उसकी पूजा करें और फिर उस डब्बी को अपनी तिजोरी या अलमारी में रखने से भी धन में वृद्धि होती है।
● दीपावली पर अपने घर के ईशान यानि कि उत्तर पूर्व के कोण में हस्त निर्मित एवं आठों दिशाओं के रत्नों से युक्त वैदिक श्रीयंत्र की स्थापना करके इसकी नित्य पूजा करने से भी जातक को अपने घर में विविध प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
● एक प्रसिद्ध उपाय के रूप में दीपावली की रात्रि में हत्था जोड़ी के सामने ॐ चामुंडा देवी धनम् देहि इस मंत्र का यथाशक्ति जाप करने पर भी निश्चित रूप से व्यापार में वृद्धि और धन लाभ की प्राप्ति होती है।
● दीपावली पर्व पर अपने घर एवं व्यवसायिक स्थल पर गोमती चक्र से बने ॐ और गोमती चक्र से बना हस्त निर्मित कछुआ एवं गोमती चक्र से बने सातिये की स्थापना करने पर भी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
● दीपावली पर्व पर प्रात काल साबुत काले उड़द और चमकीला काला वस्त्र किसी भी शनि मंदिर में दान करने से कुंडली में चले आ रहे शनि दोष में कमी आती है।
● दीपावली के दिन 11 कौड़ियां , 11 गोमती चक्र, पांच सुपारी एवं पांच काली हल्दी की गांठों को गंगाजल एवं पिसी हल्दी से छींटे लगाते हुए श्रीं श्रीं मंत्र का उच्चारण करके मां लक्ष्मी को समर्पित करें और अगले दिन इन वस्तुओं को पीले कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रख लें। निश्चित रूप से धन लाभ में वृद्धि होगी।
● दीपावली पर घर में हस्त निर्मित एवं रत्न जड़ित लक्ष्मी वीसा यंत्र, कुबेर यंत्र, कनकधारा यंत्र, नवग्रह यंत्र एवं शुक्र यंत्र के साथ ही आमंत्रित एवं जागृत नवग्रह यंत्र की स्थापना करने एवं प्रतिदिन इनके पूजन से भी निश्चित रूप से लंबे समय तक घर में लक्ष्मी का वास बना रहता है।
● दीपावली पर्व पर पूजन के बाद पूरे घर में गुग्गुलु का धुआं देने से नकारात्मक शक्तियों का असर कम होता है और मां लक्ष्मी के प्रवेश में सहायता मिलती है।
गोवर्धन पर्व की मान्यताएं और विशेषताएं
पांच दिवसीय दीपोत्सव के महापर्व में चौथे दिन गोवर्धन महाराज की पूजा, अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में इस गोवर्धन पूजा का अपना एक विशेष और अनुठा महत्व है। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना की जाए तो ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति के बहुत सारे दुख और कष्ट दूर होने लग जाते हैं। इस दिन गाय माता, गोवर्धन पर्वत, भगवान श्री कृष्ण के साथ ही माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है और भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। इस गोवर्धन पर्व को अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन गाय की पूजा करने के बाद उसके मालिक को उपहार स्वरूप अन्न, वस्त्र और दक्षिणा आदि देना शुभ माना गया है। इस दिन तुलसी जी का भी पूजन किया जाता है, इसके साथ ही पीपल वृक्ष पर और घर के ईशान कोण में भी घी का दीपक जलाने पर शुभ, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने पर अन्न और धन में बढ़ोतरी होती है। इस पर्व के माध्यम से घर, परिवार के लिए सुख, समृद्धि, अच्छी सेहत एवं लंबी आयु की कामना की जाती है। यह गोवर्धन पूजा अहंकार और आत्म केंद्रित सत्ता पर धार्मिकता की विजय की प्रतीक है। इस दिन विभिन्न क्षेत्रों के लोग अपनी, अपनी क्षेत्रीय मान्यताओं के अनुसार यह त्यौहार प्रेम और एकता से मनाते हैं। इस दिन गाय, बैल को स्नान करा कर उन्हें रंग भी लगाया जाता है और उनके गले में नई रस्सी भी डाली जाती है। इस दिन गाय-बैल को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है
गोवर्धन पर्व कब मनाया जाएगा
पांच दिन के दीपावली महापर्व में चौथे दिन गोवर्धन महाराज की पूजा अर्चना की जाती है। गोवर्धन पर्वत ब्रज में स्थित एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसे पर्वतों का राजा अर्थात् गिरिराज के रूप में जाना जाता है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि इसे भगवान श्रीकृष्ण के समय के एक मात्र स्थायी व स्थिर अवशेष का दर्जा प्राप्त है.हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है, जो हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। कहते हैं कि इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना की जाए तो सभी दुख और संताप दूर हो जाते हैं। लेकिन इस बार दिवाली की तिथि की वजह से गोवर्धन पूजा की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है।
आइए जानते हैं कब है गोवर्धन पूजा,
इस बार गोवर्धन पूजा का पावन त्योहार 2 नवंबर को मनाया जाएगा, हालांकि इसकी तिथि 1 नवंबर 2024 को शाम 6:17 को शुरू हो जाएगी और इसका समापन 2 नवंबर को रात 8:22 पर होगा। ऐसे में उदिया तिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा का त्योहार 2 नवंबर को ही मनाया जाएगा। बात गोवर्धन पर्व की करें तो गोवर्धन के दिन प्रात काल शरीर की तेल मालिश करने के बाद स्नान करने पर रोगों से मुक्ति मिलती है इस दिन घर के द्वार पर गोबर से गोवर्धन पर्वत को प्रतीक रूप में बनाया जाता है उसके बाद उसके सम्मुख श्री कृष्णा, गाय, ग्वाल-वाल, इंद्रदेव वरुण देव, अग्नि देव, और राजा बलि का भी पूजन किया जाता है
भाई दूज पर्व की मान्यताएं पर विशेषताएं
हिंदू धर्म में भाई दूज का पर्व बहुत महत्व है। यह पर्व दीपावली के 2 दिन बाद मनाया जाता है, इस पर्व के साथ पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का समापन भी होता है। भाई दूज का पर्व बहन और भाई के प्रति विश्वास और प्रेम का है। देशभर में भाई दूज को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। इस दिन को भाई बहन स्नेह का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहने भाईयों के लिए व्रत रखती हैं और विधि विधान के साथ पूजा करती हैं। रक्षाबंधन की तरह इस पर्व को भी बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन यमराज, यमुनाजी और गणेश जी के साथ ही विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। इस त्यौहार को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बहनें चावल के आटे का चौका बनाकर उस पर पाटा सजाकर अपने भाई का तिलक करती है और मिठाई खिलाकर भाई की लंबी उम्र और सुख- समृद्धि की कामना करती है। मान्यताओं के अनुसार अगर भाई दूज के त्यौहार के दिन अगर भाई बहन यमुना नदी के किनारे बैठकर एक साथ भोजन ग्रहण करें तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में स्नान करें, तो उन्हें लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है.
भाई दूज पर्व कब मनाया जाएगा
हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। कार्तिक मास द्वितीया तिथि का आरंभ 2 नवंबर को रात में 8 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगा और कार्तिक द्वितीया तिथि 3 नवंबर को रात में 10 बजकर 6 मिनट तर रहेगी। उदया तिथि में द्वितीया तिथि 3 नवंबर को होने के कारण भाई दूज का पर्व 3 तारीख को मनाया जाएगा। भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाता है, उसे कलह, बदनामी, शत्रु, भय आदि का सामना नहीं करना पड़ता., भाई दूज के दिन भाई-बहन के बीच सौमनस्य और सद्भावना का पावन प्रवाह बना रहता है. भाई दूज के दिन भाई-बहन को सुख-समृद्धि, संपत्ति और धन की प्राप्ति होती है. भाई दूज के दिन यमराज और यमुना का पूजन भी करना चाहिए.
डॉ योगेश व्यास, ज्योतिषाचार्य, (टापर),
नेट ( साहित्य एवं ज्योतिष )
पीएच.डी (फलित-ज्योतिष)
कावेरी पथ, मानसरोवर (