26 जनवरी को है बसंत पंचमी, इन मंत्रों के माध्यम से करें माँ सरस्वती की पूजा
Astrology Articles I Posted on 24-01-2023 ,07:20:19 I by:
आने वाले गणतंत्र दिवस के दिन संयोग से वर्ष 2023 की बसंत पंचमी पड़ रही है। हालांकि इन दिनों देश में सर्दी का जोर कुछ ज्यादा है, वरना बसंत पंचमी पर बसंत की बयार चलने लगती है जिससे अहसास होता है कि अब सर्दियाँ खत्म हो चुकी हैं और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होने वाला है। 26 जनवरी 2023 को बसंत पंचमी मनाई जाएगी। बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा का विधान है। माँ सरस्वती को ज्ञान-विद्या की देवी माना जाता है। बसंत पंचमी को शैक्षिक संस्थानों में उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। स्कूलों में इस दिन माँ सरस्वती की मूर्ति स्थापित की जाती है और फिर विधि विधान के अनुसार इनकी पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन माँ सरस्वती की पूजा से विद्या और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है। आज हम अपने पाठकों को माँ सरस्वती की पूजा-कथा के साथ-साथ मंत्र की जानकारी दे रहे हैं।
बसंत पंचमी के दिन स्नान के बाद पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। माँ सरस्वती की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। गंगाजल से उन्हें स्नान कराएं। मां सरस्वती के समक्ष धूप-दीप, अगरबत्ती जलाएँ और उनका ध्यान करें। पूजा आसन पर बैठकर ही करें। बिना आसन की पूजा व्यर्थ मानी जाती है। माँ सरस्वती को तिलक लगाएं और उन्हें माला पहनाएं। मां सरस्वती को मिठाई और फलों का भोग लगाएं। मां सरस्वती के मंत्रों का जाप करें और अंत में आरती उतारें।
मां सरस्वती के मंत्र
संकल्प मंत्र
यथोपलब्धपूजनसामग्रीभि: माघ मासे बसंत पंचमी तिथौ भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये।
स्नान मंत्र
ऊँ त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:।
ध्यान मंत्र
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
प्रतिष्ठा मंत्र
ऊँ भूर्भुव: स्व: सरस्वती देव्यै इहागच्छ इह तिष्ठ। इस मंत्र को बोलकर अक्षत छोड़ें। इसके बाद जल लेकर ‘एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।
बीज मंत्र
ऊँ सरस्वत्ये नम:।।
माँ सरस्वती की कथा
ब्रह्मा जी ने मनुष्य योनी की रचना की थी लेकिन वह अपनी रचना से संतुष्ट नहीं थे। तब विष्णु भगवान के केने पर उन्होंने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिडक़ा, उस जल से एक सुंदर स्त्री प्रकट हुईं। उन स्त्री के 4 हाथ थे और अलौकिक तेज से वह घिरी हुई थीं। उस स्त्री के एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जैसे ही इन देवी ने वीणा बजाना शुरू किया एक अलग सी तरंग पूरी सृष्टि में फैल गई और सब कुछ बेहद खूबसूरत हो गया। मनुष्यों को वाणी मिली जिससे वह बोल पा रहे थे और बात कर पा रहे थे। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें वाणी की देवी सरस्वती कह कर पुकारा। माँ सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से जाना जाता है। चूंकि संगीत की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है इसलिए इन्हें संगीत की देवी भी माना जाता है।
जिस दिन माँ सरस्वती अवतरित हुईं उस दिन बसंत ऋतु की पंचमी तिथि थी। इसी कारण से इस दिन को माँ सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।