इस बार 15 जनवरी को क्यूं मनेगी मकर संक्रांति!
Astrology Articles I Posted on 08-01-2016 ,00:00:00 I by:
हमारे देश में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, लेकिन इस साल 2016 में यह पर्व 14 जनवरी की बजाय 15 जनवरी को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो यह घटना संक्रमण या संक्राति कहलाती है। संक्राति का नामकरण उस राशि से होता है, जिस राशि में सूर्य प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
पंचांग के अनुसार वर्ष 2016 में सूर्य 14 जनवरी को आधी रात के बाद 1 बजकर 26 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगा। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति में पुण्यकाल का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में होता है, तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है। पंचांग के अनुसार वर्ष 2016 में मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। पुण्यकाल के स्थानांतरण के कारण वर्ष 2016 में मकर संक्रांति का महत्व 15 जनवरी को रहेगा। यही कारण है कि इस वर्ष यह पर्व 14 जनवरी की बजाय अगले दिन 15 जनवरी को मनाया जायेगा।
इस लिए बदल जाती है मकर संक्रांति की तिथि--
प्रश्न उठता है कि ऎसा क्यों होता है। खगोलशाÃस्त्रयों के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए 72 से 90 सालों में एक डिग्री पीछे हो जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है यानी मकर संक्रांति का समय 72 से 90 साल में एक दिन आगे खिसक जाता है। यही कारण है कि 19वीं और 20वीं सदी में कई बार मकर संक्रांति 13 और 14 जनवरी को मनाई गयी थी। दूसरी ओर, 21वीं सदी में यह पर्व अनेक बार 14 और 15 जनवरी को मनायी जाएगी। इससे पहले वर्ष 2011, 2012 और 2015 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनायी गई थी। वर्ष 2016 के बाद 2019 और 2020 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनेगी है, जबकि बीच में वर्ष 2017, 2018 और 2021 में यह संक्रांति 14 जनवरी को प़डेगी।
पर्व एक, नाम अनेक--
उल्लेखनीय है कि मकर संक्रांति को देश के भिन्न-भिन्न स्थानों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल में जहां यह केवल संक्रांति कहलाता है, वहीं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह खिचडी पर्व के रूप में लोकप्रिय है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है, जबकि अनेक स्थानों पर इसे उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है।