भूल से भी ना करें गणेजी के इस अंग का दर्शन, नहीं तो...

गणेश जी का हिन्दू-धर्म में बड़ा ऊँचा स्थान है। प्रत्येक शुभ कार्य का आरम्भ करने के पूर्व उनका स्मरण कर लेना, उनकी पूजा करना आवश्यक माना गया है। इसका कारण यह है कि गणेश जी जिस प्रकार विघ्न-विनाशक है, उसी प्रकार उनको विघ्नेश्वर भी माना गया है। गणेशजी के मुख का दर्शन करना अत्यंत मंगलमय माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं उनका एक अंग ऐसा भी है जिसके दर्शन करने से दरिद्रा आती है।



गणेश जी का स्वरूप बहुत मनोहर एवं मंगलदायक है। वह अपने चारों हाथों में पाश, अंकुश, दंत और वरमुद्रा धारण करते हैं। उनके ध्वज में मूषक का चिन्ह है। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा रक्त वस्त्रधारी हैं। अपने स्वजनों, उपासकों पर कृपा करने के लिए वह साकार हो जाते हैं।

गणपति जी के कानों में वैदिक ज्ञान, सूंड में धर्म, दाएं हाथ में वरदान, बाएं हाथ में अन्न, पेट में सुख-समृद्धि, नेत्रों में लक्ष्य, नाभि में ब्रह्मांड, चरणों में सप्तलोक और मस्तक में ब्रह्मलोक होता है। जो जातक शुद्ध तन और मन से उनके इन अंगों के दर्शन करता है उसकी विद्या, धन, संतान और स्वास्थ्य से संबंधित सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इसके अतिरिक्त जीवन में आने वाली अड़चनों और संकटों से छुटकारा मिलता है।
 
शास्त्रों के अनुसार गणपति बप्पा की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। मान्यता है की उनकी पीठ में दरिद्रता का निवास होता है, इसलिए पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। अनजाने में पीठ के दर्शन हो जाएं तो पुन: मुख के दर्शन कर लेने से यह दोष समाप्त हो जाता है।

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