दाईं और घुमी सूंड के गणेशजी ही क्यों होते हैं शुभ
Astrology Articles I Posted on 22-06-2016 ,17:31:58 I by:
श्रीगणेशजी भारत के अति प्राचीन देवता हैं। ऋग्वेद में गणपति शब्द आया है।
यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है। अनेक पुराणों में गणेश की विरुदावली वर्णित
है। पौराणिक हिन्दू धर्म में शिव परिवार के देवता के रूप में गणेश का
महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक शुभ कार्य से पहले गणेश की पूजा होती है।
धर्म शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश के अनेक नाम बताए गए हैं। उन्हीं में
से एक नाम है वक्रतुंड, जिसका अर्थ है भगवान गणेश का वह स्वरूप जिसमें उनकी
सूंड मुड़ी हुई होती है। श्रीगणेश के इस स्वरूप के भी कई भेद हैं।
कुछ
मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाईं को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ
में दाईं ओर। कुछ विद्वानों का मानना है कि दाईं ओर घुमी सूंड के गणेशजी
शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ
फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले
गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं। उसके अनुसार-
यदि गणेशजी की स्थापना
घर में करनी हो तो दाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाईं
ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं।
ऐसी
मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष
कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व
शुभ फल प्रदान करता है। इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु
दोषों का नाश होता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार घर के मुख्य द्वार
पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाईं ओर घुमी
हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले
गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के
पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं
या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम
विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव
एनर्जी वहीं रुक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती।
हमारे
धर्म ग्रंथों में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य कहा गया है यानी किसी भी
शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले करना चाहिए। हिंदू
धर्म में गणेशजी के अनेक स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर आकार, स्वरूप व
रंग के गणेशजी अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।