नवरात्र को नवदिन या शिवरात्रि को शिवदिन क्यों नहीं कहते हैं? नवरात्र का वैज्ञानिक पहलू जानकर चौंक जाएंगे आप
Astrology Articles I Posted on 21-09-2017 ,12:28:14 I by: Amrit Varsha
ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है इसी वजह से हमारे यंहा महत्वपूर्ण पर्वों यथा दीपावली, होली, शिवरात्रि और नवरात्र आदि रात में ही मनाये जाते हैं| मन में सवाल उठता है कि हम शिवरात्रि या नवरात्रि को शिवदिन या नवदिन क्यों नहीं कहते हैं?
ऋषि-मुनियों ने रात्रि के महत्व को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भी समझने और समझाने का प्रयत्न किया था। सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य यही है कि रात्रि में प्रकृति के अधिकांश अवरोध खत्म हो जाते हैं। हम जानते हैं कि अगर दिन में किसी को आवाज दी जाये तो वह आवाज बहुत दूर तक नहीं पहुचं पाती है किंतु यदि रात्रि में आवाज दी जाए तो वही आवाज बहुत दूर तक पहुचं जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल-शोरगुल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। इसी वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुये रात्रि में उच्च अवधारणा के साथ किये गये संकल्प अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं जिससे कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना की पूर्ति अवश्यंभावी होती है।
आपने पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करते समय एक साल में चार संधियां होती हैं जिनमें से मार्च व सितंबर (अथवा चैत्र-अश्विन मास) में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय हमारे शरीर पर रोगाणुओं के आक्रमण की संभावना सर्वाधिक होती है । ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के साथ साथ तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम नवरात्र है।
इन दिनों में हमारी प्रमुख इन्द्रियों में अनुशासन और स्वच्छ्ता स्थापित करने के प्रतीक रूप में अपने शरीर तंत्र को पूरे वर्ष के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील बनाये रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नवरात्रा नौ दिन तक मनाया जाता है। हालांकि शरीर को सुचारू रखने के लिए हम हमारे शरीर की सफाई या शुद्धि तो प्रतिदिन करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की बाहरी सफाई के साथ आंतरिक अंगो की सफाई करने के लिए हम प्रतिवर्ष 6 माह के अन्तराल मे नो दिनों तक संतुलित और सात्विक भोजन कर अपना ध्यान चिंतन और मनन में लगा कर स्वयं को भीतर से शक्तिशाली बनाते है।
ऐसा करने से जहाँ एक तरफ हमें उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है वहीं दूसरी तरफ मौसम के बदलाव को सहने के लिए हम अपने आपको आंतरिक रूप से भी मजूबत बनाते हैं
नवरात्र शब्द में छिपा हुआ है जीवन का हर पहलू
नवरात्र दो शब्दों से मिलकर बना है यानि नव और रात्र।
नव का अर्थ है नौ है वहीं रात्र शब्द में पुनः दो शब्द शामिल हैं: रा धन त्रि। रा का अर्थ है रात और “त्रि” का अर्थ है जीवन के तीन पहलू- शरीर, मन और आत्मा। जीवन में प्रतेयक मनुष्य को तीन तरह की विकट समस्याओं का सामना करना होता है, यथा भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक।
इन समस्याओं से जो मनुष्य को जो छुटकारा दिलवाती है वह होती है रात्रि। रात्रि या रात मनुष्यों को दुख से मुक्ति दिलाकर उनके जीवन में यश-सुख-सम्पदा लाती है। मनुष्य कैसी भी परिस्थिति में हो उसे रात में ही आराम मिलता है। रात की गोद में हम सभी अपने सारे सुख-दुख को भुला कर निद्रा की गोद मे चले जाते हैं।
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