आने वाले कल के बारे में जानना चाहते हैं, तो जगाएं अपना आज्ञाचक्र
Astrology Articles I Posted on 21-09-2017 ,14:06:41 I by: vijay
आज्ञाचक्र के साधक सदा निरोग, सम्मोहक और त्रिकालदर्शी माने जाते हैं।
कुंडलिनी के इसी आज्ञा चक्र को योग साधनाओं द्वारा जागृत करके किसी भी
व्यक्ति का वर्तमान, भूत और भविष्य देखा जा सकता है।
जब
इस चक्र का हम ध्यान करते हैं तो हमारे शरीर में एक विशेष चुम्बकीय ऊर्जा
का निर्माण होने लगता है। इस ऊर्जा से हमारे अंतस के दुर्गुण खत्म होकर,
अपार एकाग्रता की प्राप्ति होने लगती है।
तत्त्ववेत्ताओं के अनुसार आज्ञाचक्र का मन से गहरा संबंध है। हमें अंत:
दर्शन, स्वप्न या आध्यात्मिक अनुभूतियों के दौरान जो कुछ भी दिखलाई पड़ता
है, उसका आधार यही है।
मानसिक सजगता के लिए भी यही
जिम्मेदार है। उठते, बैठते कार्य करते समय यदि व्यक्ति सजग नहीं है। तो
इसका तात्पर्य यह है कि उसका आज्ञाचक्रनिष्क्रिय दशा में है। उसकी
क्रियाशीलता के साथ-साथ आदमी की तत्परता और जागरूकता बढऩे लगती है।
आज्ञाचक्र
के जागरण के बाद शेष चक्रों के उन्नयन के लिए दो प्रकार के क्रम अपनाए
जाते हैं। एक में आज्ञाक्रम के उपरान्त विशुद्धि, अनाहत, मणिपूरित इस क्रम
में बढ़ते हुए मूलाधार तक पहुंचना पड़ता है, जबकि दूसरे में आज्ञाचक्र के
बाद मूलाधार से शुरुआत कर ऊपर की ओर बढ़ते हुए स्वाधिष्ठान, मणिपूरित,
अनाहत होकर विशुद्धि तक पहुंचते है।
दोनों में से किसी को
भी रुचि और सुविधा के अनुसार अपनाया जा सकता है। पर दोनों ही क्रमों में
आज्ञाचक्र का प्रथम जागरण अनिवार्य है, अन्यथा दूसरे चक्रों के विकास से
उत्पन्न हुई शक्ति को संभाल पाना कठिन होगा।
चेतनात्मक विकास में आज्ञाचक्र को सहस्रार से पूर्व का महत्त्वपूर्ण पड़ाव
माना गया है। उसकी महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि उसे चरम विकास का द्वार
कहते है।
योगविद्या के अनुभवियों ने आज्ञाचक्र को हिमालय
कहा है, तो सहस्रार को सुमेरु की संज्ञा दी है हिमालय गए बिना सुमेरु तक
पहुंचने की कल्पना करना निरर्थक ही नहीं, निरुद्देश्य भी है। ऐसे में चक्र
संस्थान के अंतर्गत आज्ञाचक्र को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शक्ति-केन्द्र की
उपमा देना अनुचित नहीं, उचित ही है।
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