वास्तु के अनुसार बनाये घर को तो जीवन में आएगी खुशियां...
Astrology Articles I Posted on 10-12-2019 ,12:43:43 I by: vijay
जीवन में सफलता पाने में शुभ ऊर्जा और सकारात्मक सोच की खासी जरूरत होती
है, जो कि हमें आसपास के माहौल और हमारे निवास से मिलती है। ऐसे में यदि नव
निर्माण वास्तु सम्मत कराया जाए तो घर का हर कोना आपको सकारात्मक ऊर्जा से
भर देता है। अपने घर को वास्तु के अनुसार कुछ यूं बनाया जा सकता है।
स्नानघर
स्नानघर,
गुसलखाना, नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) कोण और दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य
कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना सर्वोत्तम है। इसका पानी का बहाव
उत्तर-पूर्व में रखे। गुसलखाने की उत्तरी या पूर्वी दीवार पर एग्जास्ट फैन
लगाना बेहतर होता है। गीजर आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) कोण में लगाना चाहिए
क्योंकि इसका संबंध अग्नि से है। ईशान व नैऋत्य कोण में इसका स्थान कभी न
बनवाएं।
शौचालयशौचालय सदैव नैऋत्य कोण व दक्षिण दिशा के
मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य बनाना चाहिए। शौचालय में शौच
करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। शौचालय की सीट
इस प्रकार लगाएं कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम की ओर ही
हो। प्रयास करें शौचालय एवं स्नानगृह अलग-अलग बनाएं। वैसे आधुनिक काल में
दोनों को एक साथ संयुक्त रूप में बनाने का फैशन चल गया है। उत्तरी व पूर्वी
दीवार के साथ शौचालय न बनाएं।
मुख्यद्वारद्वार में
प्रवेश करते समय द्वार से निकलती चुंबकीय तरंगें बुद्धि को प्रभावित करती
हैं। इसलिए प्रयास करना चाहिए कि द्वार का मुंह उत्तर या पूर्व में ही हो।
दक्षिण और पश्चिम में द्वार नहीं होना चाहिए।
आंगनभवन का
प्रारूप इस प्रकार बनाना चाहिए कि आंगन मध्य में हो या जगह कम हो तो भवन
में खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखें जिससे सूर्य का
प्रकाश व ताप भवन में अधिकाधिक प्रवेश करें। ऐसा करने पर भवन में रहने वाले
स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं। पुराने समय में बड़ी-बड़ी हवेलियों में विशाल
चौक या आंगन को देखकर इसके महत्व का पता चलता है।
सोपान या सीढ़ी
भवन में सीढि़यां वास्तु नियमों के
अनुरूप बनानी चाहिए। सीढि़यों का द्वार पूर्व या दक्षिण दिशा में होना
शुभफलप्रद होता है। सीढि़यां भवन के पाश्र्व में दक्षिणी व पश्चिमी भाग में
दाएं ओर हो, तो उत्तम है। यदि सीढि़यां घुमावदार बनानी हो, तो उनका घुमाव
सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर और उत्तर से
पूर्व की ओर होना चाहिए। कहने का मतलब यह है कि चढ़ते समय सीढि़यां हमेशा
बाएं से दाएं ओर मुड़नी चाहिए। सीढि़यां हमेशा विषम संख्या में बनानी
चाहिए। सीढि़यों की संख्या ऐसी हो कि उसे 3 से भाग दें तो 2 शेष रहे। जैसे
5, 11, 17, 23, 29 आदि की संख्या। सीढि़यों के नीचे एवं ऊपर द्वार रखने
चाहिए। यदि किसी पुराने घर में सीढि़यां उत्तर-पूर्व दिशा में बनी हो, तो
उसके दोष को समाप्त करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक कमरा बनाना
चाहिए। वास्तु में सोपान का अहम रोल होता है।
बालकनीहवा,
सूर्य प्रकाश और भवन के सौंदर्य के लिए आवासीय भवनों में बालकनी का खासा
स्थान है। बालकनी भी एक प्रकार से भवन में खुले स्थान के रूप में मानी जाती
है। बालकनी से सूरज कीक किरणें और प्राकृतिक हवा मिलती है। वास्तु
सिद्धांतों के अनुसार बालकनी बनाई जा सकती है। यदि पूर्वोन्मुख भूखंड है,
तो बालकनी उत्तर-पूर्व में उत्तर की ओर बनानी चाहिए। बालकनी उत्तर-पश्चिम
में उत्तर की ओर बनानी चाहिए। यदि उत्तरोन्मुख भूखंड है, तो बालकनी
उत्तर-पूर्व में उत्तर की ओर बनानी चाहिए। यदि दक्षिणोन्मुख भूखंड है, तो
बालकनी दक्षिण-पूर्व में दक्षिण दिशा में बनाएं। बालकनी का स्थान भूखंड के
मुख पर निर्भर है। लेकिन प्रयास यह होना चाहिए कि प्रात: कालीन सूर्य एवं
प्राकृतिक हवा का प्रवेश भवन में होता रहे। ऐसा होने से मकान कई दोषों से
मुक्त हो जाता है।
गैराजवाहन (कार, गाड़ी) खड़ा करने के
लिए गैराज की आवश्यकता होती है। फ्लैट, बंगला या बड़े घर ( जिसके पास जगह
अधिक है) में गैराज दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए। यह
बात ध्यान में रखें कि गैराज में उत्तर और पूर्व की दीवार पर वजन कम होना
चाहिए। यदि भूखंड पूर्वोन्मुखी है, तो दक्षिण-पूर्व दिशा में पूर्व की ओर,
यदि भूखंड उत्तरोन्मुख है, तो उत्तर-पश्चिम दिशा में उत्तर की ओर, यदि
भूखंड पश्चिमोन्मुख है, तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में पश्चिम की ओर, यदि भूखंड
दक्षिणोन्मुख हो, तो दक्षिण-पश्चिम दिशा में पश्चिम की ओर गैराज बनाना
चाहिए।
स्वागत कक्ष या बैठक
आज के दौर में भवन में
स्वागतकक्ष का महत्व सबसे ज्यादा है। प्राचीनकाल में इसे बैठक के नाम से
जाना जाता था। स्वागतकक्ष या बैठक में मसनद व तकिए या फर्नीचर दक्षिण और
पश्चिम दिशाओं की ओर रखना चाहिए। स्वागतकक्ष या बैठक जहां तक संभव हो उत्तर
और पूर्व की ओर खुली जगह अधिक रखनी चाहिए। स्वागतकक्ष भवन में वायव्य और
ईशान और पूर्व दिशा के मध्य में बनाना चाहिए।
अध्ययन कक्षअध्ययन
कक्ष हमेशा ईशान कोण में ही पूजागृह के साथ पूर्व दिशा में होना चाहिए।
प्रकाश की ऊर्जा ही घर में सकारात्मकता लाती है, लिहाजा पूरब दिशा में
स्टडी रूम काफी प्रभावी माना जाता है। वायव्य और पश्चिम दिशा के मध्य या
वायव्य व उत्तर के मध्य बना सकते हैं। ईशान कोण पूजागृह के पास सर्वोत्तम
है।
खिड़कियां
भवन में मुख्य गेट के सामने खिड़कियां
ज्यादा प्रभावी होती हैं। कहते हैं इससे चुंबकीय चक्र पूर्ण होता है औरघर
में सुख-शांति निवास करती है। पश्चिमी, पूर्वी और उत्तरी दीवारों पर भी
खिड़कियों का निर्माण शुभ होता है। भवन में खिड़कियों का मुख्य लक्ष्य भवन
में शुद्ध वायु के निरंतर प्रवाह के लिए होता है। यहां सबसे ज्यादा ध्यान
देने वाली बात यह है कि भवन में कभी भी खिड़कियों की संख्या विषम न रखें।
सम खिड़कियां शुभ होती हैं।
भोजनालय या भोजनकक्षभोजनकक्ष
ड्राइंगरूम का ही एक भाग बन गया है या अलग भी बनाया जाता है। डायनिंग टेबल
ड्राईंगरूम के दक्षिण-पूर्व में रखनी चाहिए अथवा भोजन कक्ष में भी
दक्षिण-पूर्व में रखनी चाहिए।
मीटर बोर्ड, विद्युतकक्षअग्नि
या विद्युत-शक्ति, मीटरबोर्ड, मेन स्विच, विद्युतकक्ष आदि भवन में
दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा में लगाने चाहिए। अग्नि कोण इसके लिए सदैव
उत्तम रहता है।
पूजागृह पूजनभजन, कीर्तन, अध्ययन-अध्यापन
सदैव ईशान कोण में होना चाहिए। पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्व में
होना चाहिए। ईश्वर की मूर्ति का मुख पश्चिम व दक्षिण की ओर होना चाहिए।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, सूर्य, कार्तिकेय का मुख पूर्व या पश्चिम की
ओर होना चाहिए। गणेश, कुबेर, दुर्गा, भैरव, षोडश मातृका का मुख नैऋत्य कोण
की ओर होना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए पूजागृह में उत्तर-दिशा में बैठकर
उत्तर की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए और धन प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा
में पूर्व की ओर मुख करके पूजा करना उत्तम है।
जल प्रवाहभवन
निर्माण में जल के प्रवाह का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। भवन का समस्त जल
प्रवाह पूर्व, वायव्य, उत्तर और ईशान कोण में रखना शुभ होता है। भवन का जल
ईशान (उत्तर-पूर्व) या वायव्य (उत्तर-पश्चिम) कोण से घर से बाहर निकालना
चाहिए। वास्तु के अनुसार दिशाओं का जरूर ध्यान रखें। दिशाएं दशा बदलने का
माद्दा रखती हैं।
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