जनेऊ पहनने के होते हैं नियम, पहने तो जरूर रखें इनका ध्यान
Astrology Articles I Posted on 12-10-2017 ,14:12:19 I by: vijay
जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। यह सूत से बना
पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे
पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर
रहे। जनेऊ पहनने के होते हैं नियम, पहने तो जरूर रखें इनको ध्यान रखना
चाहिए-
तीन सूत्र क्यों : जनेऊ में मुख्यऊरूप से तीन धागे
होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह
सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक
है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया
जाता है।
नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं।
इस तरह कुल तारों की संख्याऋ नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो
कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।
पांच गांठ : यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो
ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच
ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।
वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का
पालन करना। प्रत्येक आर्य (हिन्दू) जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके
नियमों का पालन करे।
ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के
बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है।
द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म।
जनेऊ के नियम अपनाएं
यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा
लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि
यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प
का ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए।
यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए,
तो बदल देना चाहिए। खंडित यज्ञोपवीत शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और
गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।
जन्म-मरण के सूतक के बाद इसे बदल देने की परम्परा है। महिलाओं को हर मास
मासिक धर्म के बाद जनेऊ को बदल देना चाहिए ।
यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए
उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो
प्रायश्चित करें ।
मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। इसके लिए
भिन्न व्यवस्था रखें। बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी
उनका यज्ञोपवीत करना चाहिए।
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं
कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के
समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने
से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
कान
पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता
है।
माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा
है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर
तक स्थित है।
जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित
रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।
जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है।
कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर
रहने लगता है।
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