अपनी बुरी दशा और संकटों को दूर करने के लिए करें इस देवी की आराधना
Astrology Articles I Posted on 22-03-2017 ,09:13:58 I by: Amrit Varsha
जब मनुष्य की दशा ठीक होती है तब उसके सब कार्य अनुकूल होते हैं लेकिन जब यह प्रतिकूल होती है तो ज्या दा परेशानी होती है। इसी दशा को दशा भगवती या दशा माता कहा जाता है। इस बार यह व्रत 23 मार्च, गुरूवार को है।
होली के दसवे दिन राजस्थान और गुजरात प्रांत में दशामाता व्रत पूजा का विधान है। सौभाग्यवती महिलाएं ये व्रत अपने पति कि दीर्घ आयु के लिए रखती है। प्रातः जल्दी उठकर आटे से माता पूजन के लिए विभिन्न गहने और विविध सामग्री बनायी जाती है।
पीपल वृक्ष की छाव में ये पूजा करने की रीत है। कच्चे सूत के साथ पीपल की परिक्रमा की जाती है उसके बाद पीपल को चुनरी ओढाई जाती है। पीपल छाल को “स्वर्ण” समझकर घर लाया जाता है और तिजोरी में सुरक्षित रखा जाता है। महिलाएं समूह में बैठकर व्रत से सम्बंधित कहानिया कहती और सुनती है। दशामाता पूजन के पश्चात “पथवारी” पूजी जाती है।
पथवारी पूजन घर के समृद्धि के लिए किया जाता है।
इस दिन नव-विवाहिताओं का श्रृंगार देखते ही बनता है। नव-विवाहिताओं के लिए इस दिन शादी का जोड़ा पहनना अनिवार्य माना गया है।
पूजन विधि
नौ सूत का कच्चा धागा एवं एक सूत व्रत करने वाली के आंचल से बनाकर उसमें गांठ लगाएं। दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को गंडे की पूजन करें। नौ व्रत तक तो शाम को पूजन होता है। दसवें व्रत में दोपहर के पहले ही पूजन कर लिया जाता है। जिस दिन दशा माता का व्रत हो उस दिन पूजा ना होने तक किसी मेहमान का स्वागत नही करें। अन्न न पकाएं।
एक नोंक वाले पान पर चंदन से दशा माता की मूर्ती बनाकर पान के ऊपर गंडे को दूध में डूबों को रख दें।
हल्दी, कुंकुम अक्षत से पूजन करें। घी गुड़ का भोग लगाएं। हवन के अंत में दशा माता की कथा अवश्य सुनें। कथा समाप्त होने पर पूजन सामग्री को गीली मिट्टी के पिंड में रखकर मौन होकर उसे कुंआ या तालाब जलाशय में विसर्जित कर दें।
इस प्रकार विधि-विधान पूर्वक पूजन करने से दशा माता प्रसन्न होती हैं तथा अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।
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