जीवन में शांति पाने का केवल एकमात्र रास्ता यही है.....

ये जो जीवन है, इसका उद्देश्य है प्रभु तक जाना। परिपूर्ण आनंदित होकर जीना। उसी के वास्तव में आनन्दित हो पाने की संभावना होती है, जिसकी मंजिल परमात्मा है। जो परमात्मा तक चला जाता है, वही सच्चिदानंद में जीता है।


हमारी सारी पीड़ाओं की जड़ है हमारा पर केंद्रित होना। हम दूसरों से प्रेम मांगते हैं, दूसरों में आनंद खोजते हैं जबकि आनंद और प्रेम का सबसे बड़ा स्रोत स्वयं हमारा अंतस है। इसके पहले कि मौत हमारे द्वार पर दस्तक दे, हमें वह सम्पत्ति अर्जित कर लेनी चाहिए जो हमारे साथ जा सके। वह संपत्ति है-शांति, आनंद, प्रेम और भक्ति। मगर इसकी झलक उसे ही मिल पाती है, जो प्रभु की शरण में चला जाता है। अगर हम परमात्मा से नहीं जुड़े हैं, तो हम कितना भी सोना इकट्ठा कर लें सब मिट्टी जैसा है और अगर हमने गोविंद को जान लिया, तो मिट्टी भी सोना है। हम भी सोना बन सकते हैं, बशर्ते अपने भीतर झांकना सीख लें।
ये जो जीवन है, इसका उद्देश्य है प्रभु तक जाना। परिपूर्ण आनंदित होकर जीना। उसी के वास्तव में आनन्दित हो पाने की संभावना होती है, जिसकी मंजिल परमात्मा है। जो परमात्मा तक चला जाता है, वही सच्चिदानंद में जीता है। मगर अशर्फियों को कंकड़-पत्थर समझकर फेंकना और कूड़े-करकट के प्रति आसक्त रहना हमारा स्वभाव हो गया है। हम ऐसी संगति खोजते हैं, जो हमारी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सहयोगी बने, जो हमारी कामनाओं को भड़काए। यह तो आनन्दित होने का मार्ग नहीं है। जिसे आनन्द चाहिए, उसे गुरु का सहारा लेना ही होगा। हम सदा द्वंद में जीते हैं। द्वंद्व इसलिए है कि हमें जाना कहां है, यही पता नहीं। सच्चाई यही है कि जो इसके प्रति चेत गया, वह सच्चिदानंद का अधिकारी है। वह प्रभु के द्वार पर हंसता हुआ जाता है।
मां ओशो प्रिया

Home I About Us I Contact I Privacy Policy I Terms & Condition I Disclaimer I Site Map
Copyright © 2024 I Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved I Our Team