इन सरल उपाय से करें मां दुर्गा को प्रसन्न
Astrology Articles I Posted on 03-10-2016 ,12:25:13 I by:
नवरात्रि में कुछ नियमों का पालन विशेष रूप से करना चाहिए। नवरात्रि के
अनुष्ठान की शक्ति तत्व जागरण अनुष्ठान कहा जाता है और नवरात्रि ही एक ऐसा
पर्व है जिसमें महाकाली, महालक्ष्मी और मां सरस्वती की साधना संपन्न कर
अपना जीवन सार्थक किया जा सकता है। अपने पूजा स्थान में भगवती दुर्गा,
भगवती लक्ष्मी और मां सरस्वती के चित्रों की स्थापना करें और साज सज्जा
फूलों आदि से करके पूजा करें।
साधकों को चाहिए कि नौ दिन का व्रत
करें। यदि इतना न हो सके तो प्रथम, चौथे व आठवें दिन का उपवास करें।
नवरात्रि में अधिक से अधिक नवार्ण मंत्र का पाठ ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं
चामुण्डायै विच्चै’ अवश्य करना चाहिए।
नवरात्रि के दिनों में कम से
कम एक बार दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। यदि संस्कृत में
पूर्ण रूप से उच्चारण न कर सकें तो हिंदी में भी पाठ कर सकते हैं।
मां
दुर्गा को तुलसी दल व दूर्वा चढाना निषिद्ध है। पूजा में लाल रंग का आसन
प्रयोग करना उत्तम है। लाल रंग का ऊनी आसन होना चाहिए। यदि ऐसा आसन उपलब्ध
नहीं है तो एक कंबल को चार पर्त करके बिछा लें फिर उस पर लाल रंग का कोई भी
कपडा डाल दें। साधना के पश्चात् आसन को प्रणाम करके लपेट कर सुरक्षित रख
दें। पूजा के समय यदि संभव हो तो लाल वस्त्र पहनें। लाल रंग का तिलक भी
लगाएं। इससे विशेष ऊर्जा प्राप्त होगी।
प्रात:काल प्रसाद के लिए मां
भगवती को शहद मिलाकर दूध अर्पित करें। पूजा के बाद इस प्रसाद को ग्रहण
करें तो आत्मा व शरीर को बल प्राप्त होता है। यह अनुभूत उपाय है।
नवरात्रि
में नौ दिन घर में सुबह शाम मां दुर्गा के नाम की ज्योत अवश्य जलाएं।
अष्टमी के दिन यज्ञ संपन्न करना चाहिए। नवरात्रि के नवें दिन सरस्वती के
प्रतीक स्वरूप पुस्तकें वाद्य यंत्र, कलम आदि का पूजन करना चाहिए।
नवरात्रि
में वैसे तो प्रतिदिन कन्या पूजन कर सकते हैं परंतु अष्टमी व नवमी तिथियों
को सभी कन्या पूजन करते हैं। कुमारी पूजन का पहला नियम यह है कि ज्ञान
प्राप्ति के लिए ब्राह्मण कन्या, बल प्राप्ति के लिए क्षत्रिय कन्या, धन
प्राप्ति के लिए वैश्य कन्या तथा शत्रु विजय तथा रोग मुक्ति के लिए शूद्र
कन्या का पूजन करना चाहिए। यह नियम चारों वर्णों में परस्पर सद्भावना के
लिए भी उपयुक्त है।
स्वप्न में कार्य-सिद्धि व असिद्धि जानने के
लिए-दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधि के। मम सिद्धिमसिद्धिं वा
स्वपने सर्वं प्रदर्शय॥
आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए - देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परमं सुखम्। रूपं देहि, जयं देहि यशा द्विषो जहि॥