जन्मकुंडली बता सकती है कि पिछले जन्म में आप क्या थे?
Astrology Articles I Posted on 20-08-2017 ,17:14:01 I by: Amrit Varsha
पिछले जन्म में आप क्या थे? क्या वाकई आप जानना चाहते हैं? क्या आप पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते हैं? पिछला या पुनर्जन्म होता है या नहीं? यह सवाल प्रत्येक व्यक्ति के मन में होगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इन सब बातों का जवाब आपकी जन्मकुंडली में लिखा होता है, केवल उसे पहचानकर पढने की है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर आपकी कुण्डली में गुरु लग्न यानी पहले घर में बैठा है तो यह समझना चाहिए कि पूर्वजन्म में आप किसी विद्वान परिवार में जन्मे थे।
जन्मपत्री में गुरु पांचवे, सातवें या नवम घर में बैठा है तो यह संकेत है कि आप पूर्व जन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील रहे होंगे।
इसके प्रभाव से इस जन्म में भी आप पढ़ने लिखने में होशियार होंगे। समय-समय पर आपको भाग्य का सहयोग मिलेगा। धर्म में आपकी रुचि रहेगी।
जिनकी जन्म कुण्डली में राहु पहले या सातवें घर में बैठा होता है उनके विषय में ज्योतिषशास्त्र कहता है कि इनकी अस्वभाविक मृत्यु हुई होगी।
ऐसा व्यक्ति वर्तमान जीवन में चालाक होता है। इनका मन कई बार उलझनों में घिरा रहता है। वैवाहिक जीवन में आपसी तालमेल की कमी रहती है।
जिन व्यक्तियों का जन्म कर्क लग्न में हुआ है। यानी कुण्डली में पहले घर में कर्क राशि है और चन्द्रमा इस राशि में बैठा है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति पूर्वजन्म में व्यापारी रहा होगा।
वर्तमान जन्म में ऐसा व्यक्ति चंचल स्वभाव का होता है। छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव के साथ यह जीवन में सफल होते हैं।
लग्न स्थान में बुध की उपस्थिति से भी यह संकेत मिलता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यापारी के परिवार में जन्मा होगा। ऐसे व्यक्ति वर्तमान जीवन में भी व्यवसाय एवं गणित में होशियार होता है।
जिनकी जन्मपत्री में मंगल छठे, सातवें या दसवें स्थान में होता है वह पूर्वजन्म में बहुत ही क्रोधी व्यक्ति रहे होंगे। इन्होंने अपने क्रोध के कारण कई लोगों को कष्ट पहुंचाया होगा।
इस जन्म में ऐसे व्यक्तियों को रक्तचाप की शिकायत हो सकती है। वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। चोट और दुर्घटना के कारण कष्ट होता है।
योग के अनुसार चित्त को स्थिर करना आवश्यक है तभी इस चित्त में बीज रूप में संग्रहित पिछले जन्मों का ज्ञान हो सकेगा। चित्त में स्थित संस्कारों पर संयम करने से ही पूर्वन्म का ज्ञान होता है। चित्त को स्थिर करने के लिए सतत ध्यान क्रिया करना जरूरी है।
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