कुंडली में हों ऐसे योग तो, राजनीति में बनेगा शानदार करियर
Astrology Articles I Posted on 12-07-2017 ,08:42:12 I by: Amrit Varsha
नीतिकारक ग्रह राहु, सत्ता का कारक सूर्य, न्याय-प्रिय ग्रह गुरु, जनता का हितैषी शनि और नेतृत्व का कारक मंगल जब राज्य-सत्ता के कारक दशम भाव, दशम से दशम सप्तम भाव, जनता की सेवा के छठे भाव, लाभ एवं भाग्य स्थान से शुभ संबंध बनाए तो व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ बनता है। व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ बनेगा या नहीं इसका बहुत कुछ उसके जन्मकालिक ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। अन्य व्यवसायों एवं करियर की भांति ही राजनीति में प्रवेश करने वालों की कुंडली में भी ज्योतिषीय योग होते हैं।
राहु की भूमिका होती है खासराजनीति में राहु का महत्वपूर्ण स्थान है। राहु को सभी ग्रहों में नीतिकारक ग्रह का दर्जा दिया गया है। इसका प्रभाव राजनीति के घर से होना चाहिए। राहु के शुभ प्रभाव से ही नीतियों के निर्माण व उन्हें लागू करने की क्षमता व्यक्ति विशेष में आती है। राजनीति के घर (दशमभाव) से राहु का संबंध बने तो राजनेता में स्थिति के अनुसार बात करने की योग्यता आती है। सफल राजनेताओं की कुंडली में राहु का संबंध छठे, सातवें, दशमें व ग्यारहवें भाव से देखा गया है। छठे भाव को सेवा का भाव कहते हैं। व्यक्ति में सेवा भाव होने के लिए इस भाव से दशम या दशमेश का संबंध होना चाहिए। सातवां भाव दशम से दशम है इसलिए इसे विशेष रूप से देखा जाता है।
ये हैं आवश्यक योगजन्म कुंडली के दशमें घर को राजनीति का घर कहते हैं। सत्ता में भाग लेने के लिए दशमेश और दशम भाव का मजबूत स्थिति में होना आवष्यक है। दशम भाव में उच्च, मूल त्रिकोण या स्वराशिस्थ ग्रह के बैठने से व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में बल मिलता है। गुरु नवम भाव में शुभ प्रभाव में स्थित हो और दशम घर या दशमेश का संबंध सप्तम भाव से हो तो व्यक्ति राजनीति में सफलता प्राप्त करता है। सूर्य राज्य का कारक ग्रह है अत: यह दशम भाव में स्वराशि या उच्च राशि में होकर स्थित हो और राहु छठे, दशवें व ग्यारहवें भाव से संबंध बनाए तो राजनीति में सफलता की प्रबल संभावना बनती है। इस योग में वाणी के कारक (द्वितीय भाव के स्वामी) ग्रह का प्रभाव आने से व्यक्ति अच्छा वक्ता बनता है।
शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबंध बनाए और इसी दशम भाव में मंगल भी स्थित हो तो व्यक्ति समाज के लोगों के हितों के लिए राजनीति में आता है। यहां शनि जनता का हितैषी हैऔर मंगल व्यक्ति में नेतृत्व का गुण दे रहा है। दोनों का संबंध व्यक्ति को राजनेता बनने के गुण प्रदान करेगा। सूर्य और राहु के अमात्यकारक बनने से व्यक्ति रुचि होने पर राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने की संभावना रखता है और समाज में मान सम्मान तथा उच्च पद की प्राप्ति होती है। जन्मकुंडली, नवमांश तथा दशमांश तीनों कुंडलियों में समान तथा योग व्यक्ति को राजनीति में ऊंचाइयों पर ले जाते हैं।
जन्म लग्न से राजनीति के योग
मेष लग्न में प्रथम भाव में सूर्य, दशम में मंगल व शनि हो तथा दूसरे भाव में राहु हो तो जनता का हितैषी राजनेता बनेगा।
वृष लग्न- दशम भाव का राहु व्यक्ति को राजनीति में प्रवेश दिलाता है। राहु के साथ शुक्र भी हो तो राजनीति में प्रखरता आती है।
मिथुन लग्न- शनि नवम में तथा सूर्य, बुध लाभ भाव में हो तो व्यक्ति प्रसिद्धि पाता है। राहु सप्तम में तथा सूर्य 4, 7 या 10वें भाव में हो तो प्रखर व्यक्तित्व तथा विरोधियों में धाक जमाने वाला राजनेता बनता है।
कर्क लग्न- शनि लग्न में, दशमेश मंगल दूसरे भाव में, राहु छठे भाव में तथा सूर्य बुध पंचम या ग्यारहवें भाव में चंद्रमा से दृष्ट हो तो व्यक्ति राजनीति में यश पाता है।
सिंह लग्न- सूर्य, चंद्र, बुध व गुरु धन भाव में हों, मंगल छठे भाव में, राहु बारहवें भाव में तथा शनि ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति को राजनीति विरासत मे मिलती है। यह योग व्यक्ति को लम्बे समय तक शासन में रखता है, इस दौरान उसे लोकप्रियता व वैभव प्राप्त होता है।
कन्या लग्न- दशम भाव में बुध का संबंध सूर्य से हो, राहु, गुरु, शनि लग्न में हो तो व्यक्ति राजनीति में रूचि लेगा।
तुला लग्न- चंद्र, शनि चतुर्थ भाव में हो तो व्यक्ति वाकपटु होता हैं। सूर्य सप्तम में, गुरू आठवें, शनि नवें तथा मंगल बुध ग्यारहवें भाव में हो तो राजनीति में अपार सफलता पाता है तथा प्रमुख सलाहकार बनता है।
वृष्चिक लग्न-लग्नेश मंगल बारहवें भाव में गुरू से दृष्ट हो, शनि लाभ भाव में हो, चंद्र राहु चौथे भाव में हो, शुक्र सप्तम में तथा सूर्य ग्यारहवें घर के स्वामी के साथ शुभ भाव में हो तो व्यक्ति प्रखर नेता बनता है।
धनु लग्न- चतुर्थ भाव में सूर्य, बुध, शुक्र हों तथा दशम भाव में कर्क का मंगल हो तो तकनीकी सोच के साथ राजनीति करता है।
मकर लग्न- राहु चौथे भाव में हो तथा नीचगत बुध उच्चगत शुक्र के साथ तीसरे भाव में हो तो नीचभंग राजयोग से व्यक्ति राजनीति में दक्ष तथा चतुर होता है।
कुंभ लग्न- लग्न में सूर्य शुक्र हों तथा दशम में राहु हो तो राहु तथा गुरू की दशा में राजनीति में सफलता मिलती है। गुरू की दशा में प्रबल सफलता मिलती है।
मीन लग्न-चंद्र, शनि लग्न में, मंगल ग्यारहवें तथा शुक्र छठे भाव में हो तो शुक्र की दशा में राजनीतिक लाभ तथा श्रेष्ठ धन लाभ होता है। ये योग उदाहरणस्वरूप हैं। इस प्रकार के अन्य योग भी संभव हैं।
पंडित महेश शर्मा
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