चक्रवर्ती संतान प्राप्ति के लिए करें शनि प्रदोष व्रत, कल करें उपवास, होगी मनोकामना जल्द होगी पूरी
Astrology Articles I Posted on 24-03-2017 ,10:06:15 I by: Amrit Varsha
इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पडने के कारण शिव और माता पार्वती के साथ ही
शनिदेव की भी कृपा प्राप्त होगी। प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है।
ज्योतिषों के अनुसार इस बार का प्रदोष व्रत पुण्यकारी है। इस व्रत को करने
से मनचाही और चक्रवर्ती संतान मिलने के योग बनने लगते हैं।
प्रदोष व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा के लिए विशेष तिथि है। इस तिथि में व्रत व पूजन का विशेष महत्व होता है और ऐसी माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस तिथि में पूजन करता है। उसको मां पार्वती व भगवान शंकर की कृपा मिलती है।
इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पडने के कारण शिव और माता पार्वती के साथ ही शनिदेव की भी कृपा प्राप्त होगी।
प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। ज्योतिषों के अनुसार इस बार का प्रदोष व्रत पुण्यकारी है। इस व्रत को करने से मनचाही और चक्रवर्ती संतान मिलने के योग बनने लगते हैं।
शनि प्रदोष में खास तौर पर भगवान को तिल का भोग अर्पित करना चाहिए साथ ही गरीबों को भी भोग खिलाना चाहिए। काले छाते व जूते का दान करना चाहिए। इससे राशि में चंद्र देव से होने वाले सभी दोषों से शनि की कृपा से मुक्ति मिलती है।
शनि प्रदोष व्रत की महिमा अपार है | यह संतान प्राप्ति हेतु संजीवनी का कार्य करता है |
सृष्टि की प्रत्येक वस्तु प्रकृति के विशेष सनातन नियमानुसार ही क्रियाशील है | प्रत्येक कर्म के साथ उसका फल जुड़ा होता है | परन्तु मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने तक ही सीमित है, फल पर मानव का कोई अधिकार नहीं है | समय आने पर कर्म का फल अवश्य प्राप्त होता है... यही प्रकृति का सनातन नियम है| ऐसा ही एक नियम है व्रत | व्रत से ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति और पवित्रता की वृद्धि होती है और अंतरात्मा शुद्ध होती है |
स्कन्द पुराण में इसका विवरण मिलता है कि किस प्रकार शांडिल्य मुनि ने इस व्रत की महिमा एक ब्राह्मण महिला से कही | वह ब्राह्मण स्त्री मुनि के पास दो बालको के साथ आई थी, एक उसका अपना पुत्र, सुचिव्रत, और एक अनाथ राजकुमार, धर्मगुप्त, जिसके पिता की युद्ध भूमि में हत्या कर दी गयी थी और शत्रु पक्ष द्वारा राज्य पर कब्ज़ा कर लिया गया था | मुनि के निर्देशानुसार उस ब्राह्मणी और दोनों बालको ने अत्यंत भक्ति और श्रद्धापूर्वक प्रदोष व्रत आरम्भ किये | जब आठवा प्रदोष था, तो सुचिव्रत को अमृत कलश की प्राप्ति हुयी और धर्मगुप्त को उसका खोया राज्य भी प्राप्त हो गया और वह तीनो सुखपूर्वक निवास करने लगे |
क्या आप परेशान हैं! तो आजमाएं ये टोटके मिलेगी सरकारी नौकरी अगर करें ये खास उपाय सौ सालों में पहली बार नवग्रह 2017 में करेंगे अपनी राशि परिवर्तन