किसी भी काम की शुरुआत से पहले शुभ-अशुभ नक्षत्र भी देख लें

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक नक्षत्र में किए जाने वाले कार्यों का निर्देश दिया गया है। दैनिक जीवन में नक्षत्रों के आधार पर मुहूर्त निकाले जाते है। मिसाल के तौर पर विवाह, वाहन क्रय, नींव या गृह प्रवेश के अलग-अलग नक्षत्र ज्योतिष विज्ञान में दिए गए हैं।


वराह संहिता में बताए गए जलचर नक्षत्रों को देख किसान अच्छी वर्षा तक का अंदाज लगा लेते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को मील और किलोमीटर में नापने का नियम है, उसी तरह आकाशीय मंडल में चंद्र सूर्यादि ग्रहों की दूरी का मापदंड नक्षत्रों और उनके चरणों से पता चलता है। ज्योतिष में गणितज्ञों को यह बताने के लिए मार्ग सरल हो जाता है कि अमुक ग्रह अमुक समय में अमुक नक्षत्र में था।
सत्व गुण नक्षत्र : (पुनर्वसु, अश्लेषा, विशाखा, जेष्ठा, पूर्वाभाद्रपद और रेवती) नक्षत्र सत्व गुण में आते है। इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाला व्यक्ति हमेशा अच्छे कार्यों में लीन रहता है। ईश्वर भक्त और परोपकारी होता है।
रजोगुण नक्षत्र : (भरणी, कृतिका, रोहणी, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण) ये रजोगुणी नक्षत्र कहलाते हैं। ऐसे व्यक्तिों को मान-सम्मान की इच्छा अधिक रहती है। अपने कार्य में किसी का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करते।
तमोगुण नक्षत्र : (अश्विनी, मृगशिरा, आद्र्रा, पुख्य, मघा, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद) तमोगुण वाले नक्षत्र कहलाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को बुरी आदतें जल्दी घेर लेती हैं। ये लोग कानून वगैरह की परवाह नहीं करते। अपने हित साधने के लिए ये किसी भी स्तर पर आ सकते हैं।
देवगण के नक्षत्र : (अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुख्य, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, रेवती) का गण देव है। देव गण में उत्पन्न व्यक्ति शालिन, आत्मविश्वासी, लोकप्रिय, मातृ-पितृ भक्त, गुरु भक्त, देश भक्त तथा शास्त्रों का अध्ययन करने वाले होते हैं।
मानव गण के नक्षत्र : (भरणी, रोहणी, आद्र्रा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद) का गण मानव है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक दूरदर्शी, साहसी, व्यवहार कुशल, सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेने वाले यशस्वी होते हैं। पुत्रवान व धनवान होते हैं।
राक्षस गण के नक्षत्र: (कृतिका, अश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, जेष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा) का गण राक्षस है। इस गण में उत्पन्न व्यक्तियों में तामसिक प्रवृत्ति का प्रभाव होता है। क्रोधी, चालाक, कठोर भाषी होते हैं। इनमें कुछ गण सत्वगुणी भी हैं, अत: ऐसे व्यक्तियों पर राक्षस गण का प्रभाव बहुत कम मात्रा में दिखाई देता है।
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