शनिदेव होंगे 21 जून से वक्री, जानिए क्यों होते हैं वक्री और क्या होता है असर

शनिदेव 21 जून से 26 अक्टूबर तक वक्री होकर धनु राषि से वृश्चिक राशि में भ्रमण करेंगे। इस दौरान समस्त राशियां इनके शुभाशुभ प्रभाव से प्रभावित होंगी किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि जन्म के समय शनि ग्रह वक्री हो तो गोचर में वक्री होने पर उस ग्रह से संबंधित कार्य पूरे हो जाते हैं।


कब होते हैं शनि वक्री
शनि ग्रह सूर्य की परिक्रमा 29 वर्ष 5 माह 16 दिन 23 घंटा और 16 मिनट में पूर्ण करता है। स्थूल मान से शनि एक राशि पर लगभग 30 माह, एक नक्षत्र पर 400 दिन और नक्षत्र के एक चरण पर 100 दिन रहता है। यह प्रतिवर्ष लगभग 4 माह वक्री और 8 महीने मार्गी रहता है। सूर्य से 15 अंश की दूरी पर शनि ग्रह अस्त हो जाता है। अस्त होने के 38 दिन बाद उदय होता है, उदय के 135 दिन बाद मार्गी होता है और मार्गी के 105 दिन बाद पश्चिम दिशा में पुन: अस्त हो जाता है।
वक्री शनि का प्रभाव
जन्म समय में शनि वक्री हो तो गोचर में शनि के वक्री होने पर अशुभ शनि के प्रभाव से व्यक्ति को राहत मिलती है। वक्री शनि तनाव व संघर्ष से मुक्ति देता है। ऐसे समय में जातक उत्साह के साथ नई योजनाएं बनाता है और जागरुकता के साथ कार्य-व्यवसाय करता है। परन्तु जन्म कुंडली में सिंह व धनु राशि का शनि हो तो अनुकूल न होकर प्रतिकूल प्रभाव देता है।
बदलेगी शनि की साढ़ेसाती और ढ़ैया
गोचर भ्रमणवश जब शनि किसी जातक की राशि से बारहवें, प्रथम या द्वितीय स्थान में हो, तो यह शनि की साढ़ेसाती कहलाती है। वहीं चौथे या आठवें स्थान पर शनि संचार करे तब शनि की ढ़ैया कहलाती हैं। शनि के वृश्चिक राशि में वक्री होते ही तुला राशि पर शनि की साढ़ेसाती प्रारम्भ होगी जबकि वृश्चिक और धनु राशि पर साढ़ेसाती यथावत् चलती रहेगी। वहीं इस दौरान मकर राशि के जातक साढ़ेसाती के प्रभाव से मुक्त हो जाएंगे। कन्या और वृष राशि से शनि की ढैय़ा उतर कर सिंह और मेष राशि पर प्रारम्भ होगी। परन्तु ध्यान रखें जिनकी जन्म कुंडली में शनि श्रेष्ठ स्थान उच्च, स्वग्रही या मित्र राशि में हो और दशान्र्तदशा श्रेष्ठ चल रही हो तो उनके लिए शनि ढैया और साढ़ेसाती काल में अशुभ न होकर शुभ फलदायक ही रहेगा। परन्तु चन्द्र और शनि अशुभ ग्रहों से युक्त होकर अशुभ भावों में बैठे हों तो ढ़ैया और साढ़ेसाती नेष्ट फलप्रद होती है।
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