पूजा-पाठ और जप-तप करने के बाद भी शांति नहीं मिले, तो आप कर रहे हैं ये बडी गलतियां

देखा जाता है कि मन की शांति, दौलत-शोहरत के लिए हम लोग पूजा-पाठ, मंत्र, जप, यज्ञ, होम, दान, जड़ी बूटी या रत्न धारण करने जैसे उपाय करते रहेते हैं। लेकिन कई बार इतने सब उपाय करने के बावजूद मनचाहा फल प्राप्त नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में दोष नसीब या उपाय बताने वाले पंडित या ज्‍योतिषी पर मढ़ दिया जाता है। लेकिन इसके पीछे कहीं न कहीं हम और हमारे प्रयास या जानकारी का अभाव भी उत्तरदायी होते हैं। ऐसे में बताई जा रही गलतियां ना की जाए तो परिणाम जल्द ही अच्छे आने लगते हैं-


घर-परिवार या रिश्तेदारी में किसी नए सदस्य के जन्म लेने अथवा मृत्यु होने पर सूतक या पातक लग जाते हैं। इस दशा में पूजा-पाठ करना निषिद्ध होता है। इसका कारण यह है कि सूतक या पातक अपवित्रता की स्थिति मानी जाती है।

सूतक या पातक की समय अवधि पूरी होने और शुद्धिकरण होने के बाद ही धार्मिक कार्य करने चाहिए। पूजा-पाठ, मंत्र जप या अन्य धार्मिक आयोजन के दौरान शराब, मांसाहार या नशीले पदार्थों का सेवन करना, अश्लील हंसी-मजाक या अभद्र व्यवहार करना, किसी को अपमानित करना तथा मन में अपवित्र भावना बनाये रखना भी उचित नहीं है , इसके कारण की गयी साधना व्यर्थ हो जाती है। इसलिए सदैव पवित्र और शुद्ध अन्तःकरण से सात्विक जीवन जीते हुए पूजा-पाठ करना शुभ फल दायी होता है।

घर या व्यापारिक स्थल में वास्तु दोष होने अथवा गलत दिशा में पूजा स्थल होने के कारण भी की गयी पूजा पाठ या उपाय कोई लाभ नहीं देते हैं। इसलिए अगर वास्तु दोष है तो पहले उसका उपचार कराना चाहिए और पूजा स्थल को सही दिशा में शिफ्ट कर देना चाहिए।

मंदिर या पूजा स्थल पर दीपक जलाते समय भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए की दीपक में शुद्ध घी या शुद्ध तिल का तेल अथवा सरसों का तेल और कपास से बानी बाती का ही उपयोग किया जाए। दीपक मिटटी या पीतल अथवा तांबे से बनी धातु का हो। लोहे से निर्मित दीपक का प्रयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा शुभ परिणाम नहीं मिलेंगे।

विशेषज्ञ ज्योतिष की सलाह लिए बिना गलत रत्न धारण करना लाभ की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। किसी रत्न के अनुकूल न होने पर घबराहट, बेचैनी, अनिद्रा, विचित्र प्रकार के स्वप्न आने जैसी समस्याएं आने लगती हैं। वहीँ दूसरी ओर यदि विधि-विधान से पूजा और शुद्ध किये बिना सही रत्न धारण कर लिया जाये तो भी उसके शुभ परिणाम नहीं मिलते हैं। इसलिए जब भी रत्न धारण करना हो उचित सलाह के बाद पूर्ण शुद्धिकरण एवं पूजा पाठ द्वारा सिद्ध करके ही सम्बंधित नक्षत्र और दिन को धारण किया जाये।

पूजा-पाठ एवं मंत्र जप करते समय अपवित्र और अशुद्ध दशा में होना तथा सही उच्चारण के साथ मंत्रों का जप न करना भी अपेक्षित फल देने में बाधा उत्पन्न करता है।

पूजा-पाठ के लिए एकांत स्थल होने के साथ-साथ पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में मुख होना चाहिए तथा ऊन अथवा धुले हुए सूती या रेशमी वस्त्र के आसान पर बैठकर ही मंत्र जप करना चाहिए। पलंग पर, खड़े होकर या चलते-फिरते अथवा जल्दबाजी में की गयी पूजा निष्फल ही रहती है और उसका कोई लाभ जातक को नहीं मिलता है।

पूजा स्थल को नियमित रूप से साफ़ न करना अथवा वहां रखे बासी पुष्प, पुष्प माला, पत्ते, प्रसाद आदि को अगले दिन न हटाना भी अपेक्षित फल नहीं देता है। इसलिए भगवान हर दिन नयी पूजा सामग्री का ही उपयोग करना चाहिए।
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