पंद्रहिया यंत्र की पूजा से हो जाएंगे वारे-न्यारे

यंत्रों में सबसे सरल और प्रभावी यंत्र पंद्रहिया यंत्र है तो सबसे क्लिष्ट शंकराचार्य द्वारा बताया गया श्रीयंत्र। शंकराचार्य ने सौंदर्य लहरी में श्री यंत्र को बनाने और इसकी उपासना विधियों के बारे में जानकारी दी है, वहीं पंद्रहिया यंत्र के बारे में देश के अलग-अलग कोनों में बनाने और उपयोग करने की भिन्न पद्धतियां प्रचलन में हैं। एक ही प्रकार के यंत्र से वशीकरण भी किया जा सकता है और उच्चाटन भी।

ध्यान रखने की बातें
यंत्र की साधना से पहले ध्यान रखें कि पवित्र और एकांत स्थान होना चाहिए। साधक ने स्नान कर शुद्ध और धुले हुए वस्त्र पहने हों। होली और दीपावली की रात इस काम के लिए अबूझ मुहूर्त हैं। अन्य शुभ मुहूर्त भी लिए जा सकते हैं। चांदी या सोने की कलम के अलावा चमेली, जूही, अनार, तुलसी आदि वृक्षों की डाली से बनी कलम काम में ली जा सकती है। लाल या काली स्याही का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा हिंगुल, कुंकुम या अष्टगंध भी काम में लेते हैं। जिन पत्रों पर यंत्र लिखे जाते हैं वे सोने, चांदी, तांबे, काष्ठ, तालपत्र या भोजपत्र होते हैं। अच्छी गुणवत्ता कागज भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यंत्र अपने ईष्ट के सामने बैठकर बनाना चाहिए। साधना करने के बाद यंत्र को एक कांसे की थाली में रखकर फल, फूल और नैवेद्य चढ़ाएं।
पंद्रहिया यंत्र के प्रकार
इसके कई रूप देखने को मिलते हैं। ह्रींकारमयी पंद्रहिया यंत्र को शिव तांडव यंत्र भी कहते हैं। इसी तरह एक मुस्लिम पंद्रहिया यंत्र भी होता है। सामान्य तरह के पंद्रहिया यंत्र बनाए जाने की विधि के आधार पर मुख्य रूप से चार वर्ण के होते हैं। एक अंक से शुरू होने वाला यंत्र ब्राह्मण जाति का, तीन अंक से शुरू होने वाला यंत्र क्षत्रिय जाति का, नौ अंक से शुरू होने वाला यंत्र वैश्य जाति का और सात अंक से शुरू होने वाला यंत्र शूद्र जाति का होता है। पंद्रहिया यंत्र नौ कोष्ठक का होता है। इसमें एक से लेकर नौ तक की संख्या भरी जाती है। किसी भी कोण से तीन कोष्ठकों का योग पंद्रह ही होता है। इस कारण इसे पंद्रहिया यंत्र कहते हैं। ब्राह्मण जाति वाला यंत्र सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। इसे मिथुन, तुला और कुंभ राशि वाले दिनों में लाल चंदन, हिंगुल या अष्टगंध से लिखा जाता है। क्षत्रिय जाति का यंत्र धनु और मेष के चंद्र में काली स्याही में कपूर मिलाकर लिखने का प्रावधान है। वैश्य जाति का यंत्र वृषभ राशि वाले दिनों में अष्टगंध से लिखा जाता है। शूद्र जाति वाला यंत्र वृश्चिक और मीन राशि के चंद्र वाले दिनों में काला स्याही से लिखा जाता है।
क्‍या है विधि-विधान
यंत्र साधना के लिए लापसी, पूरी, अनार की कलम, अष्टगंध स्याही, चावल, गुग्गुल, पुष्प, खोपरे के 21 टुकड़े, नागर बेल के 21 पानए 21 सुपारीए घी का दीपक और एक कोरे घड़े की जरूरत होती है। पूर्व दिशा की ओर घड़े की स्थापना करें। उसके सामने भोजपत्र बिछाएं। इसके ऊपर के भाग में दीपक और नीचे के भाग में धूपिया रखें। भोजपत्र के बाएं लापसी और पूरी को आधा-आधा रखें। इसके बाद अनार की कलम से भोजपत्र पर अष्टगंध से यंत्र लिखें। यंत्र लिखते समय ह्रीं या ओम ह्रीं श्रीं मंत्र का लगातार जाप करें।

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