खुशियां और सम्पन्नता के लिए मनाएं ये पंच पर्व
Astrology Articles I Posted on 30-10-2016 ,09:30:20 I by: Amrit Varsha
सुख समृद्धि और प्रकाश का पर्व दीपावली कार्तिक कृप्ण पक्ष त्रयोदशी से भाई दूज तक मनाया जाने वाला पांच दिन का दीपोत्सव पर्व है। इसमें धनतेरस, नरक चर्तुदशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया (भाईदोज) आदि त्योहार मनाए जाते हैं।
धनतेरस
धनतेरस कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के दिन वैद्य धनवन्तरि समुद्र में से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, अत: इस दिन आरोग्य एवं दीर्घायु की कामना के लिए भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है। आयु की रक्षा के लिए इसी दिन वैदिक देवता यमराज का भी पूजन किया जाता है। इस दिन सायंकाल प्रदोष काल में आटे का दीपक बनाकर घर के बाहर मुख्यद्वार पर, एक पात्र में अनाज रखकर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिण की ओर मुंह करके दीपदान करना चाहिए। दीपदान करते समय यह मंत्र बोलना चाहिए- मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।। रात्रि को घर की स्त्रियां इस दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाएं और जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यमराज का पूजन करें। इस प्रकार यमराज की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है तथा परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है।
नरक चर्तुदशी, रुप चतुर्दशी एवं छोटी दीपावलीनरक चर्तुदशी को रुप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर दैत्य का संहार कर लोगों को अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। अत: यह पर्व दुष्ट लोगों से रक्षा तथा उनके संहार के उद्धेश्य से मनाया जाता है। इस दिन श्री कृष्ण की पूजा कर इसे रूप चर्तुदशी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितृश्वरों का आगवन हमारे घरों में होता है अत: उनकी आत्मा की शान्ति के लिए यमराज के निमित्त घर के बाहर तेल का चौमुख दीपक जलाया जाता है। छोटी दिवाली के इस दिन विशेष पूजा इस प्रकार करें- सर्वप्रथम एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुखा और सोलह छोटे दीए जलाएं। उसके बाद रोली, खीर, गुड़, अबीर, गुलाल और फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें। इसके बाद अपने कार्य स्थान की पूजा करें। पूजा के बाद सभी दीयों को घर के अलग-अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं। संध्या के समय यमराज के लिए भी दीपदान करें।
गोवर्धन पूजा (अन्नकूट)
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान श्री कृप्ण ने गोवर्धन की पूजा कर उसे उंगली पर उठाकर, कृषकों का कल्याण किया था। इस पर्व के दिन बलि पूजा, अन्नकूट, मार्गपाली आदि को मनाए जाने की परम्परा है। इस दिन गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गौ माता की पूजा करने से सभी पाप उतर जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मोली, रोली, चावल, फूल, दही, खीर तथा तेल का दीपक जलाकर समस्त कुटुंब-परिजनों के साथ पूजा करते हैं। पूजन के पश्चात सभी पुरुष गोवर्धन की परिक5मा करते हैं। परिक्रमा के साथ ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें, कीर्तन करें तथा भगवान का जयघोष करें।
भाई दूज
कार्तिक शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। इसमें बहिन अपने भाई की लंबी आयु व सफलता की कामना करती है। भैयादूज का दिन भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक-पूजाकर उनकी आरती करती हैं और मिठाई खिलाकर नारियल देती हैं। उसके दीर्घायु की कामना के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती हैं। इस दिन बहन अपने भाई के साथ यमुना स्नान करती हैं, ऐसी परम्परा प्रचलित है। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन मृत्यु के देवता यम की बहन यमी (सूर्य पुत्री यमुनाजी) ने अपने भाई यमराज के तिलक लगाकर भोजन कराया था तथा भगवान से प्रार्थना की थी कि उनका भाई सलामत रहे। इसलिए इसे यम द्वितीया कहते हैं।