शुक्रवार को करें इस यंत्र की पूजा, घर पैसों से भर जाएगा
Astrology Articles I Posted on 03-10-2017 ,09:51:20 I by: Amrit Varsha
यह एक मात्र ऐसा यंत्र है, जो समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है। श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है। यह यंत्र श्री विद्या से संबंध रखता है। साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि की श्री देने वाली विद्या को ही श्रीविद्या कहा जाता है। श्रीयंत्र को यंत्रराज भी कहा जाता है, इसे यंत्रों में सर्वोत्तम माना गया है। कलियुग में कामधेनु के समान ही है जो साधक को पूर्ण मान-सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान करता है। श्री यंत्र को कल्पवृक्ष भी कहा गया है, जिसके सान्निध्य में सारी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्री यंत्र के संदर्भ में एक कथा का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार एक बार आदि शंकराचार्यजी ने कैलाश मान सरोवर पर भगवान शंकर को कठिन तपस्या कर प्रसन्न कर दिया। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने के लिए कहा। आदि शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। भगवान शंकर ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्री यंत्र की महिमा बताई और कहा- यह श्री यंत्र मनुष्यों का सर्वथा कल्याण करेगा। श्री यंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महा त्रिपुर सुदंरी का आराधना स्थल है क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। श्री यंत्र में देवी स्वयं मूर्तिवान होकर विराजती हैं इसीलिए श्री यंत्र विश्व का कल्याण करने वाला है।
आज के यांत्रिक युग में जबकि मनुष्य अनेक प्रकार की समस्याओं से आक्रान्त है, अगर वह श्रीयंत्र की स्थापना करें तो यह यंत्र उसके लिए रामबाण सिद्व हो सकता है।
इस यंत्र को पूर्ण श्रद्वा, विश्वास से अपने व्यवसाय, दुकान, ऑफिस , फैक्टरी आदि में स्थापित करना चाहिए। इसकी प्रतिदन पूजा से श्रीलक्ष्मी प्रसन्न होती है। तथा साथक धनाढय बनता है आज जबकि वास्तु का युग है, प्रत्येक व्यक्ति वास्तु के द्वारा सुख भी प्राप्ति करना चाहता है। ऐसे में श्रीयंत्र की स्थापना और भी आवश्यक हो जाती है।
आदिकालीन विद्या का द्योतक हैं वास्तव में प्राचीनकाल में भी वास्तुकला अत्यन्त समृद्व थी।
श्रीयंत्र में सर्वप्रथम धुरी में एक बिन्दु और चारो तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते है जो शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और चार ऊपर की तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते हैं जो शक्ति का प्रदर्शन करते है और चार ऊपर की तरफ शिव ती तरफ दर्शाते है। अन्दर की तरफ झुके पांच-पांच तत्व, पांच संवेदनाएँ, पांच अवयव, तंत्र और पांच जन्म बताते है। ऊपर की ओर उठे चार जीवन, आत्मा, मेरूमज्जा व वंशानुगतता का प्रतिनिधत्व करते है। चार ऊपर और पांच बाहारी ओर के त्रिकोण का मौलिक मानवी संवदनाओं का प्रतीक है।
यह एक मूल संचित कमल है। आठ अन्दर की ओर व सोलह बाहर की ओर झुकी पंखुड़ियाँ है। ऊपर की ओर उठी अग्नि, गोलाकर, पवन,समतल पृथ्वी व नीचे मुडी जल को दर्शाती है। ईश्वरानुभव, आत्मसाक्षात्कार है। यही सम्पूर्ण जीवन का द्योतक है। यदि मनुष्य वास्तव में सुखी और सृमद्व होना चाहता है तो उसे श्रीयंत्र स्थापना अवश्य करनी चाहिये।
अनन्त ऐश्वर्य एवं लक्ष्मी प्राप्ति के मुमक्ष को चाहिए कि श्री यंत्र के सम्मुख श्री सूक्त का पाठ करो पंचमेवा देवी को भोग लगायें तो शीघ्र ही इसका चमत्कार होता है।
यंत्र का उपयोगइस यंत्र को व्यापार वृद्धि के लिए तिजोरी में रखा जाता है धान्य वृद्धि के लिए धान्य में रखा जाता है।
इस यंत्र को वेलवृक्ष की छाया में उपासना करने से लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है और अचल सम्पत्ति प्रदान करती हैं।
इस यंत्र को सम्मुख रखकर सूखे वेलपत्र घी में डुबोकर वेल की समिधा में आहूति डालने से मां भगवती शीघ्र ही प्रसन्न होती है एवं धन ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा जीवन भर लक्ष्मी के लिए दुखी नहीं होना पड़ता।
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