क्यों डालते हैं नदी में सिक्का, क्या है परंपरा का रहस्य
Astrology Articles I Posted on 26-06-2016 ,17:04:22 I by:
सभी धर्मों में दान मुख्य अंग माना गया है। शास्त्रों के अनुसार दान करना
पुण्य कर्म है और इससे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। दान के महत्व को
ध्यान में रखते हुए इस संबंध में कई नियम बनाए गए हैं। ताकि दान करने वाले
को अधिक से अधिक धर्म लाभ प्राप्त हो सके। भारत देश में अनेक परंपराएं ऐसी
हैं जिन्हें कुछ लोग अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ लोग उन परंपराओं पर
विश्वास करते हैं।
ऐसी ही एक परंपरा है नदी में सिक्के डालने की।
आपने अक्सर देखा होगा कि ट्रेन या बस जब किसी नदी के पास से गुजरती है तो
उसमे बैठे लोग या नदी के पास से गुजरने वाले लोग नदी को नमन करने के साथ ही
उसमें सिक्के डालते हैं। दरअसल, यह कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि एक उद्देश्य
से बनाइ गई परंपरा है।
इसका दूसरा पहलू भी है। प्राचीन काल में
तांबे के सिक्कों का प्रचलन था। चूंकि तांबा जल के शुद्धिकरण में काम आता
है। आयुर्वेद में भी कहा गया है कि तांबे के बर्तन में रखा शुद्ध जल
स्वास्थ्य के लिए अतिउत्तम होता है। इसलिए जब जलाशय या नदी में तांबे का
सिक्का डालते थे तो यह उसे शुद्ध करता था।
चूंकि सिक्के धरातल में
जाकर कई दिनों तक वहां जमा होते रहते थे। इससे उनका अंश धीरे-धीरे जल में
घुलता था। इससे शुद्धिकरण की यह प्रक्रिया जारी रहती थी। आज तांबे के
सिक्कों का प्रचलन नहीं है लेकिन सिक्का डालने की परंपरा पूर्ववत जारी है।
वर्तमान में ताम्र धातु के सिक्के चलन में नहीं हैं
ज्योतिष में भी
दोष दूर करने के लिए पानी में सिक्के और पूजन सामग्री प्रवाहित करने की
प्रथा है। साथ ही, इसके पीछे दूसरा कारण ये भी है कि नदी में सिक्के डालना
एक तरह का दान भी होता है, क्योंकि पवित्र नदियों वाले क्षेत्र में कई गरीब
बच्चे नदी से सिक्के एकत्रित करते हैं।
इसलिए नदी में सिक्के
डालने से दान का पुण्य भी मिलता है। साथ ही, ज्योतिष के अनुसार ऐसी मान्यता
है कि यदि बहते पानी में चांदी का सिक्का डाला जाए तो अशुभ चंद्र का दोष
समाप्त हो जाता है।