शिवजी ने क्यों लिया अर्धनारीश्वर अवतार!

भगवान शिव आदि व अनंत है। इनकी पूजा करने से तीनों लोकों का सुख प्राप्त होता है। भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए कई अवतार लिए। भगवान शिव के इन अवतारों में कई संदेश भी छिपे हैं। उन्हीं में से कुछ अवतारों की कथा तथा उनमें छुपे संदेश की जानकारी दी जा रही है।

भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है। यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है। स्त्री और पुरुष एक दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। यही बात हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के अवतार अर्धनारीश्वर के रूप में दर्शायी गई है। शिव का यह स्वरूप इस बात की ओर इंगित करता है कि समाज में जो जगह एक पुरुष की होती है वही महिला की होनी चाहिए।
लेकिन भगवान ने यह अर्धनारीश्वर अवतार क्यों लिया। इस बात का विस्तार से उल्लेख शिवमहापुराण में मिलता है।
सृष्टि के प्रारम्भ में जब ब्रह्मा जी द्वारा रचि गयी मानसिक सृष्टि विस्तार न हो सकी तब ब्रह्मा जी को बहुत दु:ख हुआ। उसी समय आकाशवाणी हुई – ब्रह्मा अब मैथुनी (प्रजनन) सृष्टि करो।’ आकाशवाणी सुनकर ब्रह्मा जी ने मैथुनी सृष्टि करने का निर्णय किया परन्तु उस समय तक नारियों की उत्पत्ति न होने के कारण वे अपने निर्णय में सफल नहीं हो सके। तब ब्रम्हा जी ने सोचा की परमेश्वर की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती। अत: वे परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगे। बहुत दिनों तक ब्रह्माजी अपने हृदय में प्रेमपूर्वक परमेश्वर शिव का ध्यान करते रहे। उनके तीव्र तप से प्रसन्न होकर- परमेश्वर शिव ने उन्हें अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिया। देवादिदेव भगवान शिव के उस स्वरुप को देखकर ब्रह्मा जी अभिभूत हो उठे और उन्होंने दंड की भांति भूमि पर लेटकर उस अलोकिक विग्रह को प्रणाम किया।

परमेश्वर शिव ने कहा- ब्रह्मा मुझे तुम्हारा मनोरथ ज्ञात हो गया है। तुमने प्रजाओं की वृद्धि के लिए जो तप किया है, उससे मैं परम प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा। ऐसा कहकर शिवजी ने अपने शरीर के आधे भाग से उमा देवी को अलग कर दिया। तदांतर परमेश्वर शिव के अर्धांग से अलग हुई उन पराशक्ति को साक्षात प्रणाम करके ब्रह्मा जी कहने लगे- शिवे! सृष्टि के प्रारम्भ में आपके पति देवाधिदेव शम्भू ने मेरी रचना की थी। भगवती! उन्ही के आदेश से मैंने देवता आदि समस्त प्रजाओं की मानसिक सृष्टि की।
ब्रह्माजी की प्रार्थना स्वीकार कर देवी शिवा ने उन्हें स्त्री-सर्ग-शक्ति प्रदान की और अपनी ललाट के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक शक्ति की सृष्टिï की जिसने दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। शक्ति का यह अवतार आंशिक कहा गया है। शक्ति पुन: शिव के शरीर में प्रविष्ट हो गई। उसी समय से मैथुनी सृष्टि का प्रारंभ हुआ। तभी से बराबर प्रजा की वृद्धि होने लगी।

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