सुखी और खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं तो करें केवल यह एक उपाय
Astrology Articles I Posted on 25-10-2017 ,09:54:17 I by: Amrit Varsha
धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार सतयुग में तप, त्रेता युग में ज्ञान, द्वापर युग में यज्ञ और कलियुग में एकमात्र दान ही मनुष्य के कल्याण का सहज मार्ग है। उचित पर सुपात्र को निःस्वार्थ भाव से दान करने से इस जीवन में परम आनंद व सुख का अनुभूति तो होती ही है, मृत्यु के बाद परलोक में भी श्रेयस एवं शांति की प्राप्ति होती है।
दान वचन पालन का एक ऐसा अप्रतिम शुभ कार्य है जिसमें डाटा याचक को अपना सर्वस्व तक न्यौछावर कर सकता है।
दानेन प्राप्यते स्वर्गः श्रीदनीनेव लभ्यते।
दानेन शत्रून् जयति व्याधिरदानेन नश्यति।
ज्योतिष शास्त्र में भी ग्रह एवं नक्षत्रों के निमित्त दान करना शुभ माना गया है। जब जन्म कुंडली, वर्ष कुंडली ग्रहगोचर आदि में ग्रह खराब स्थिति में होने के कारण जातक के जीवन में कष्ट, बाधा, रोग, कलह, ऋणग्रस्तता, वाद-विवाद आदि समस्याएँ आ रहीं हों तो अरिष्ट निवारण के लिए ग्रहों से सम्बंधित वस्तुओं का दान किया जाता है। दान के तीन प्रकार बताये गए हैं। निःस्वार्थ भाव से बिना किसी लोभ-लालच के किया गया दान सात्विक, फल प्राप्ति की आशा से किया गया दान राजस तथा श्रद्धा भाव के बिना कुपात्र को किया गया दान तामस प्रकृति का होता है। तीनों प्रकार के दान में सात्विक दान सर्वश्रेष्ठ होता है।
इस समय और स्थान पर करें दान
वैसे तो दान कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है, परंतु धार्मिक एवं तीर्थस्थल, मंदिर, गौशाला, गुरुद्वारा, पूजा या धर्मस्थल आदि पर दान देना विशेष शुभ माना गया है। क्योंकि इन स्थानों पर मन एवं ह्रदय के इष्टदेव में रम जाने से अहंभाव नहीं आता हा जो कि दान की सार्थकता के लिए आवश्यक है। दान के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। जब भी ह्रदय में दान की भावना जागृत हो, तत्काल उसे पूरा करना चाहिए। परिवार में किसी नए सदस्य का जन्म होने, जन्म दिवस या विवाह समारोह होने, पूर्णिमा, संक्रांति, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, त्रयोदशी संस्कार अथवा श्राद्ध कर्म के समय किया गया दान अक्षय फल प्रदान करने वाला होता है। मृत्यु का आभास होने पर भी किया दान इहलोक के साथ परलोक के लिए भी कल्याणकारी माना गया है।
दान दें लेकिन केवल पात्र व्यक्ति
को दान हमेशा सुपात्र को ही दिया जाना चाहिए। कुपात्र एवं अयोग्य व्यक्ति को अशुभ फल देने वाला होता है। विद्वान, वेदपाठी, धर्मनिष्ठ, सत्यनिष्ठ और सांसारिक विरक्त व्यक्ति क पूर्ण श्रद्धा के साथ साथ करने से दान का प्रभाव और फल कई गुना अधिक सार्थक हो जाता है। किसी जरूरतमंद, भूख-प्यास से व्याकुल याचक को उसकी ज़रुरत के अनुसार कोई उपयोगी वास्तु, वस्त्र, खाद्यान, भोजन आदि का दान भी शुभ माना गया है। नवग्रहों उस ग्रह से संबंधित वार क करना अधिक शुभ है। दान रविवार का, चंद्र का सोमवार को, मंगल मंगलवार को, बुध का बुधवार को, गुरु का, शुक्र का शुक्रवार को तथा शनि ग्रह शनिवार को ही करना चाहिए।
ग्रहों के अनुसार दान
नवग्रहों के अशुभ प्रभाव को शुभ करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में अशुभ ग्रहों से संबंधित वस्तुओं का दान किया जा सकता है। वस्तुओं का दान करते समय कुछ धन भी श्रद्धापूर्वक देना चाहिए। सूर्य ग्रह के लिए लाल-पीला वस्त्र, गेहूं, तांबा, माणिक्य, मसूर की दाल, लाल पुष्प या फल, लाल चंदन, स्वर्ण आदि का दान किया जा सकता है।
चंद्र के लिए श्वेत वस्त्र, दूध, दही, शंख, मोती, चांदी, चीनी, चावल, मंगल के लिए स्वर्ण, गुड़, सिंदूरी वस्त्र, मूंगा, लाल मिठाई लाल मसूर, लाल गेहूं, तांबा, रक्त चंदन, बुध के लिए स्वर्ण, पन्ना, कांसा, हरा वस्त्र, हरा फल, हरी मूंग, और गुरु ग्रह के लिए पीले वस्त्र, चने की दाल, हल्दी, पुखराज या सुनैला, धान, गौघृत, धार्मिक पुस्तक, स्वर्ण, शहद आदि का दान किया जा सकता है
इसी तरह शुक्र गृह का दोष निवारण करने के लिए चावल, घी, हीरा, कपूर, चीनी, मिश्री, दही, श्वेत चंदन, श्वेत वस्त्र, शनि के लिए काला वस्त्र, साबुत उरद की दाल, लोहा, काले चने, काले फल, नीलम, भैंसा, काले तिल, सरसों का तेल, काला कंबल जूते, राहु के लिए तलवार, गौमेद, लोहा, कंबल, स्वर्ण मिश्रित नाग, तांबे का बर्तन, काली सरसों, राई, शीशा केतु के लिए सात प्रकार के अनाज, काजल, स्वर्ण, चांदी या तांबे का सर्प, लहसुनिया रत्न, मिठाई, कस्तूरी, ऊनी वस्त्र आदि का दान किया जा सकता है।
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