अगर आप इन सपनों का अर्थ समझ गए तो त्रिकालदृष्टा भी बन सकते हैं

सोने और जागने के मध्य की स्थिति स्वप्न कहलाती है जिसमें शरीर टी निश्चल अवस्था में रहता है परंतु शरीर के अंदर की सभी क्रियाएं एवं मस्तिष्क सक्रिय बना। स्वप्न अवस्था में हमारा मन स्वछंद होकर उन समस्त विचारों, संकल्पों, चिंतन, मोह, माया, वासना, शोक, आकांक्षा, आदि में भ्रमण करता रहता है जिन्हें हम जाग्रत अवस्था में सोचते-विचारते रहते हैं तथा वे किसी पूरी नहीं हो पाती हैं। तब निद्रा अवस्था में ये हमें स्वप्न के रूप में दिखाई देने लगते हैं वहीँ शरीर की विशेष अवस्थाओं, बीमारी, भय, दुःख, शोक, कष्ट, या अधिक भोजन करने की दशा में भी स्वप्न दिखाई देते हैं। यद्यपि सभी देखे गए स्वप्नों का फल सटीक नहीं बैठता है फिरभी इन्हें निरर्थक नहीं माना जा सकता है। स्वप्न में देखे गए दृश्यों के शुभ या अशुभ प्रभाव ग्रंथ के रूप में देखने को मिलते हैं। कुछ खास तरह के सपनों का अर्थ यदि जातक समझ जाए तो भविष्य में होने वाली घटनाओं को आसानी से जान सकता है।


स्वप्न विशेषज्ञों के अनुसार स्वप्न देखते समय हमारी आत्मा वे सभी कार्य एवं क्रियाएं करती है जिन्हें जाग्रत अवस्था में करना असंभव होता है। वास्तव में स्वप्न एक कार्य है जिसमें उसका अर्थ भी निहित होता है।
पुनर्जन्म को स्वीकार करने वालों का मानंना है कि पूर्व जन्म की बहुत सी घटनाएं नए जन्म में स्वप्न के रूप में दिखाई देती हैं। जिन्हें समझकर उनका सटीक विश्लेषण करके उनके शुभ या अशुभ होने के बारे में सकता है।
स्वप्न भी सच होते हैं स्वप्न ज्योतिष के अनुसार निद्रा अवस्था में अलग-अलग समय पर देखे गए स्वप्नों का फल भी अलग-अलग होता है। निश्चित समयावधि में उनका फल भी है। रात्रि में तीन बजे के बाद और सूर्योदय से पहले देखे स्वप्न सात दिनों में, मध्य रात्रि के स्वप्न एक मास में और रात्रि से पहले देखे गए स्वप्न लगभग एक वर्ष में शुभ या अशुभ प्रभाव देते हैं।
स्वप्न में एक ही दृश्य बार-बार दिखाई दे तो ऐसे स्वप्न के लिए ही स्वप्न फल का विचार करना चाहिए। यदि एक रात्रि में एक से अधिक बार स्वप्न दिखाई देते हों तो उनमें से अंतिम स्वप्न ही फलदायी होता है।

ऐसे स्वप्न जो शुभ फल देने हैं
उनकी चर्चा किसी बाहरी व्यक्ति से न करके किसी ज्ञानी पुरुष, विद्वान ज्योतिष, ब्राह्मण या तंत्र विशेषज्ञ से ही पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए अन्यथा ऐसा स्वप्न निष्फल हो जाता है।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी से लेकर द्वादशी तिथि तक और पूर्णिमा को तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी से लेकर नवमी एवं चतुर्दशी तिथि को देखे गए स्वप्न शुभ फल देने वाले माने गए हैं। कहते हैं कि शुभ स्वप्न देखना सौभाग्य का सूचक होता है। इसलिए रात्रि के ब्रह्म मुहूर्त में शुभ स्वप्न देखने की पश्चात जाग्रत होने पर पुनः सोने के बजाय शेष रात्रि में जागरण करते हुए अपने इष्ट देव का स्मरण एवं भजन करना चाहिए तथा प्रातः काल में स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद किसी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक करना चाहिए।

रात्रि के प्रथम पहर में देखे गए स्वप्न फलीभूत नहीं होते। इसी प्रकार भय, असंयम, चिंता, मानसिक परेशानी, रोग, नग्न अवस्था में सोने, प्यास या भूख लगी होने अथवा मल-मूत्र का वेग होने की दशा में जो भी स्वप्न देखे जाते हैं उनका फल नहीं मिलता है अर्थात ऐसे स्वप्न निष्फल होते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी और कृष्ण पक्ष की अमावस्या और त्रयोदशी तिथियों में देखे गए स्वप्न भी निष्फल होते हैं।
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