शिवपूजा के हैं कुछ नियम, रखेंगे याद तो हो जाएंगे निहाल

श्रावण सभ्यता और संस्कृति को याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है। आधुनिक सभ्यता में भाषा की शक्ति चुक गई है, शब्द अर्थ खोकर खोखले हो गए हैं, जो बचा है वह मात्र कोलाहल है। भाषा के शब्द-अर्थहीन हो जाने से उसकी विश्वसनीयता ही खत्म होने के कगार पर है। लेकिन क्या मजेदार है यह सावन का महीना जो हर बार अपने उन्हीं घमंडी घनों के साथ ऐसी सनातन गर्जन करता है जो वह सहस्राब्दियों से करता आ रहा है। आज तक न तो उसकी आवाज बदली और न ही गरजने का अंदाज। सावन से ऋषियों ने अपने अध्यात्म को जोड़ा। सनातन सावन के भीतर की गरज के बीच वे आत्मा को जानने-खोजने निकले। वे सावन के बरसने में भी ईश्वर के अंश को ढूंढ़ रहे हैं। कोई पूछे कि कब से? तो इस प्रश्न का उत्तर अनंत काल होगा। तप: पूत ऋषि कहते हैं कि यदि सूर्य, चंद्र और अग्नि तीनों अस्त हैं, भयानक अंधकार है, वाणी स्तब्ध है, कोई सहारा नहीं है तो ऐसे में पुरुष के पास एकमात्र बच निकलने का साधन, एकमात्र सुरक्षा है आत्मा। सावन में  कुछ खास नियमों के साथ पूजा की जाए तो भगवान का पूरा आशीर्वाद मिल सकता है।


चंदन,
भस्म, त्रिपुण्ड और रुद्राक्ष माला ये शिव पूजन के लिए विशेष सामग्री हैं जो पूजा के समय शरीर पर होनी चाहिए।
शिव अथवा अपने ललाट पर तिलक-त्रिपुण्डविधि विधान से लगाना चाहिए। सर्वप्रथम अंगूठे से ऊर्ध्वपुण्ड (नीचे से ऊपर की ओर) लगाने के बाद मध्यमा और अनामिका उंगली से बांयी ओर से प्रारम्भ कर दाहिनी ओर भस्म लगानी चाहिए। इसके बाद तीसरी रेखा अंगूठे से दाहिनी ओर से आरम्भ कर बायीं ओर लगावें। इस प्रकार तीन रेखाएं खिंच जाती हैं जिसे त्रिपुण्ड कहते हैं। इन रेखाओं के बीच का स्थान रिक्त रखें। इसके बाद ओम नमः शिवाय बोलते हुए ललाट, गर्दन, भुजाओं और हृदय पर भस्म लगाएं।
शिव की पूजा में दूर्वा और तुलसी मंजरी से पूजा श्रेष्ठ मानी जाती है। शंकर की पूजा में तिल का निषेध है।
शिवजी को सभी पुष्प प्रिय हैं। केवल चम्पा और केतकी के पुष्प का निषेध है। नागकेश्‍र, जवा, केवडा तथा मालती का पुष्प भी नहीं चढ़ाया जाता है।
निश्चित संख्या में जूही के फूल चढ़ाने से धन धान्य की कमी नहीं रहती है। हार सिंगार के पुष्प अर्पण करने से सुख सम्पत्ति की वृद्धि होती है। भांग एवं सफेद आक के पुष्प चढ़ाने से भोले शंकर शुभ आशीवार्द प्रदान करते हैं।
बिल्वपत्र, कमलपुष्प, कमलगटा के बीज चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। पुत्र प्राप्ति के लिए धतूरे के पुष्प अर्पण करें। राई के पुष्पों द्वारा पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है।
शंकर की पूजा में बिल्वपत्र प्रधान है, किन्तु बिल्वपत्र में चक्र और बज्र नहीं होना चाहिए। कीड़ों के द्वारा बनाया हुआ सफेद चिन्ह चक्र कहलाता है और बिल्व पत्र में डण्ठल की ओर जो थोडा सा मोटा भाग होता है वह बज्र कहा जाता है। वह भाग तोड़ देना चाहिए।
बिल्वपत्र चढ़ाते समय बिल्व पत्र का चिकना भाग मूर्ति की ओर रहे अर्थात उलटा चढ़ाएं अन्य फल पुष्प जैसे उगते हैं वैसे ही सीधे चढ़ाने चाहिए।
शिव लिंग पर आक, धतूरा, कनेर तथा नील कमल के पुष्प अर्पण करने से पुण्यफल प्राप्त होता है।
शिवलिंग पर चढे हुए फल, फूल, नैवैद्य, पत्र एंव जल ग्रहण करना निषिद्ध है। यदि शालिग्राम से उनका स्पर्श हो जाय तो वे ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। ज्योर्तिलिंग पर चढे हुए जल, पदार्थ आदि ग्रहण करने योग्य होते हैं।
शंकरजी के मंदिर में आधी परिक्रमा करें, जलहरी से निकलने वाले जल की धारा का उल्लंघन नहीं करें।
भगवान शंकर के पूजन के समय करताल नहीं बजाया जाता है।
शिव मंदिर में सफाई-झाडू करने वाले शिव भक्त की मनोकामना पूरी होती है।
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