कमजोर चंद्र हो तो करें शिवोपासना, अच्छे दिन आने लगेंगे
Astrology Articles I Posted on 13-07-2017 ,08:49:05 I by: Amrit Varsha
सनातन धर्म में श्रावण का महीना अत्यंत पवित्र माना जाता है। श्रावण मास को मासोत्तम मास भी कहा जाता है। इस मास की पूर्णमासी के दिन श्रवण नक्षत्र का योग होने के कारण इस मास का नाम श्रावण मास या सावन पड़ा। ऐसा माना जाता है कि देवताओं व दानवों के बीच समुद्र मंथन भी श्रावण मास में ही हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए श्रावण मास में निराहार रहकर कठोर तप किया था, इसीलिए भगवान शंकर को श्रावण मास अत्यंत प्रिय है।
शिवोपासना से चंद्र सधे
श्रावण का एक अर्थ है सुनना। अत: इस मास में कुत्सित विचारों को त्याग कर भगवान की कथा, प्रवचन, भजन, सत्संग व धर्मोपदेश सुनने चाहिए। इस मास की सारी तिथियां व्रत व पुण्य कार्यों के लिए होती हैं। श्रावण मास में वातावरण में जल तत्व की अधिकता रहती है। चंद्रमा जल तत्व का अधिपति ग्रह है। भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर सुशोभित कर रखा है। चंद्रमा से विशेष स्नेह होने के कारण भगवान शिव को चंद्रशेखर के नाम से भी जाना जाता है।
पुरुषसूक्त के अनुसार चंद्रमा मनसो जातश्चयो: सूर्यों अजायत अर्थात चंद्रमा मन का कारक है और मन के नियंत्रण और नियमण में चंद्रमा का अहम योगदान है। पूजा अराधना में मन का भटकाव एक बड़ी बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। उसे नियंत्रित करना सहज नहीं होता। भगवान शंकर ने चंद्रमा को मस्तक में दृढ़कर रखा है, इसीलिए सावन मास में भगवान शंकर की आराधना करने पर मन में ईश्वर के प्रति एकाग्रता का भाव जागृत होता है। चंद्रमा सोमवार के अधिपति है, इसीलिए शिव को सोमवार अति प्रिय है। श्रावण में सोमवार के दिन पूजा-आराधना का विशेष महत्व है।
करें शिव की आराधना
मानव शरीर में चंद्रमा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है तथा शरीर के अंदर रक्त संचार, मूत्र, पाचक रस, आंख, दृष्टि, मन की भावनाएं, आकांक्षाओं को नियंत्रित करता हैं। चंद्रमा के प्रभाव से व्यक्ति भावुक, चंचल तथा अत्यधिक संवेदनशील होता है। भगवान शंकर का सतो गुण, तमो गुण व रजो गुण पर अधिकार है। चंद्रमा से पीडि़त व्यक्ति को सावन मास में मन, प्रेम व लगन से प्रत्येक सोमवार लघुरूद्र, महारूद्र अथवा अतिरूद्र पाठ करके शिवजी का व्रत करना चाहिए।
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