ये हैं निरोगी नक्षत्र, इनमें रहोगे स्‍व्‍ास्‍थ, बीमारियां रहेंगी दूर

ज्योतिष का आयुर्वेद के साथ गहरा सम्बंध है। एक ओर जहां किसी की जन्मकुंडली से उसके स्वास्थ्य की अवस्था का ज्ञान होता है, वहीं किसी नक्षत्र विशेष में रोग की उत्पत्ति का ज्ञान होने से उसके मुक्तिकाल का संकेत पता चलता है। आयुर्वेद के छठी शताब्दी के प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टांग संग्रह में इस प्रकार का विवेचन उपलब्ध है।


अश्विनी नक्षत्र में उत्पन्न रोग छह रात बीत जाने के बाद खुद ब खुद शांत होता है।
भरणी नक्षत्र में उत्पन्न रोग पांच दिन के बाद शांत होता है।
कृतिका नक्षत्र में उत्पन्न रोग कई बार इक्कीस रात्रि तक चलता है।
अगर कोई रोग रोहिणी नक्षत्र में पैदा हो तो उसे ठीक होने में आठ या ग्यारह दिन लग जाते हैं।
मृगशिरा नक्षत्र में उत्पन्न रोग छह या नौ रात्रि में शांत होता है।
आद्रा नक्षत्र में पैदा होने वाला रोग ठीक होने में पांच या पैंतालीस दिन ले लेता है।
जो रोग पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हो उसे अपना काल पूरा करने में तरह दिन लग जाते हैं।
पुष्य और आश्लेषा नक्षत्र में पैदा होने वाला रोग सत्ताइस दिन में ठीक होता है।
मघा नक्षत्र में उत्पन्न रोग अगर बारह दिन तक कोई हानि न करे तो रोगी स्वास्थ्य लाभ करता है।
पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न रोग को स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकर नहीं बताया गया जबकि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न रोग आठवें या इक्कीसवें दिन ठीक हो जाता है।
हस्त नक्षत्र में उत्पन्न रोग सातवें दिन जबकि चित्रा नक्षत्र का रोग आठवें दिन शांत होता है।
स्वाति नक्षत्र में पैदा होने वाला रोग की काल मर्यादा तीन से दस दिन तक की बताई है।
विशाखा नक्षत्र का रोग बारह दिन तक और इसमें मृत्यु का भय रहता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मा रोग अगर पांच दिन तक बना रहे तो मृत्यु का भय बना रहता है। ऐसी अवस्था में रोगी अगर बारह दिन तक ठीक बना रहे तो वह स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।
मूल नक्षत्र में पैदा हुआ रोग दसवें या इक्कीसवें दिन ठीक होता है।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में उत्पन्न रोग नौवें दिन में लाभ प्राप्त करता है।
प्रस्‍तुति- अनूप गक्खड़

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