दुर्गा के इस पाठ को करने से मिलेंगी सभी सिद्धियां, बरसने लगेगा पैसा

धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि आदिशक्ति दुर्गा समस्त जगत का कल्याण करने वाली हैं। इन्हीं से मरुदगण, गन्धर्व, इन्द्र देवता, अग्नि देवता, अश्वनी कुमार का उद्भव हुआ है। श्रद्धा, बुद्धि, मेधा और कल्याण की प्रदाता दुर्गा धर्म, सत्य, सदाचार, नीति, सृजन, शान्ति, और सुख की वाहक हैं। इनकी उपासना मात्र से मनुष्यों के समस्त कष्ट एवं पाप दूर हो जाते हैं तथा जन्म कुंडली में स्थित ग्रह-नक्षत्रों के दोष और भवन के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं।


दुर्गा
सप्तशती का श्रद्धापूर्वक और विधि-विधान से पाठ करने से जीवन में शांति, सुख-समृद्धि एवं सुविचारों का उदय होता है। भविष्य पुराण के प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय खंड के अनुसार दुर्गा सप्तशती के आदि चरित्र, मध्यम चरित्र और उत्तम चरित्र के माहात्म का ध्यान पूर्वक अध्ययन एवं मनन करने से मनुष्य को वेदों के पढने का फल मिलता है, उसके पाप नष्ट होते हैं तथा इस जन्म में समस्त सुख भोग करके वह अंत में परम गति को प्राप्त होता है।

माँ भगवती की उपासना के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पूर्व भक्तों को स्नान आदि दैनिक कर्मों से निवृत्त होकर घर की पूर्व दिशा अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में देवी जी की प्रतिमा अथवा मूर्ति को एक स्वच्छ एवं ऊंचे आसन पर लाल वस्त्र बिछाकर विराजमान करना चाहिए तथा उनके समक्ष शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

दुर्गा सप्तशती के पाठ से पूर्व भगवान् श्री गणेश, भोलेनाथ, विष्णु भगवान, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी एवं महाकाली का ध्यान करना चाहिए। तत्पश्चात विधि पूर्वक कलश, पञ्च लोकपाल, दस दिकपाल, सोलह मातृका, नवग्रह आदि का पूजन करते हुए दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों का पाठ करना चाहिए।

दुर्गा सप्तशती के पाठों में शापोद्धार सहित कवच, अर्गला, कीलक एवं तीनों रहस्यों को भी पढ़ना चाहिए। पाठ पूर्ण होने के बाद नवार्ण मन्त्र का 108 बार जप करना चाहिए। इसके बाद पुनः शापोद्धार, उत्कीलन, मृत संजीवनी विद्या के मन्त्र, ऋवेदोक्त देविसुक्त, प्राधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य, मूर्ति रहस्य, सिद्धिकुंजिकास्त्रोत, क्षमा प्रार्थना, भैरवनामावली पाठ, आरती तथा मन्त्र पुष्पांजलि के साथ पाठ का समापन करना चाहिए।

जो लोग किसी कारण से दुर्गा सप्तशती का पाठ करने में असमर्थ हों वे प्रतिदिन माँ भगवती के समक्ष हवन व आरती कर सकते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि दुर्गा सप्तशती की पुस्तक अपने हाथ में या जमीन पर न रखी जाए बल्कि किसी आधार पर रखने के बाद ही दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाए।

पाठ करते समय न तो पाठ को मन ही मन में पढ़ा जाये और न ही पाठ का उच्चारण स्वर बहुत तेज हो बल्कि दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय वाचक का स्वर संतुलित एवं मध्यम रहे। पाठ करते समय मन को एकाग्रचित्त बनाये रखना भी बहुत आवश्यक है, वरना पाठ करने का कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद माँ भगवती दुर्गा की जय-जयकार भी करनी चाहिए।
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