क्या आप जानते हैं मंदिर जाने के फायदे? इनको पढकर चौंक जाएंगे आप
Astrology Articles I Posted on 30-07-2017 ,06:56:54 I by: Amrit Varsha
अक्सर घर के बुजुर्ग हमें अब सुबह मंदिर जाने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार मंदिर जाने से न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक रूप से भी सुकून मिलता है। वैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो मंदिर जाने के इतने फायदे होते हैं कि आदमी जानकर चौंक ही जाए। हम मनुष्यों को 5 इंद्रियां मिली हैं और मंदिर में किए जानेवाले प्रत्येक अनुष्ठान जैसे- घंटी बजाने, कपूर जलाने, फूल चढ़ाने, तिलक लगाने और मंदिर की प्रदक्षिणा करने का मतलब है, हमारी इन सभी इंद्रियों को सक्रिय करना। एक बार इन सभी इंद्रियों के सक्रिय हो जाने के बाद, मानव शरीर मंदिर में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ज़्यादा से ज़्यादा ग्रहण कर सकता है। ये प्रथाएं वास्तव में, हमारे शरीर में सभी 7 चिकित्सा केंद्रों को सक्रिय करती हैं। इसमें कोई हैरानगी की बात नहीं है कि कई लोगों ने धार्मिक महत्व के स्थानों जैसे मंदिर, मस्जिद या चर्च में जाने के बाद पहले से बेहतर और ठीक होने की बात कही है।
मंदिर की घंटी सीसा, तांबे, कैडमियम, जस्ता और निकल जैसी धातुओं के संयोजन से बनती हैं। घंटी बजाने पर एक सुखद नाद उत्पन्न होता है जो आपको शांत करने में मदद करती है “जब आप मंदिर की घंटी बजाते हैं तो सुनने की शक्ति सक्रिय होती है।
आप चाहे उत्तर भारत से हों या दक्षिण भारत से, हमारे देश में किसी भी मंदिर के पवित्र क्षेत्र में जूते पहनकर जाने की मनाही है। दरअसल मंदिर के अंदर के क्षेत्र में चुंबकीय और विद्युत कंपन बहुत अधिक होता है। यहां तक कि मंदिर की फर्श भी इस तरह की होती है कि वह सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित कर पाती हैं। इसीलिए फर्श पर नंगे पांव चलने से आपके शरीर के माध्यम से आप सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर पाने में मदद होगी। मंदिर में नंगे पैर चलना अपना अहंकार त्यागने का भी प्रतीक है।
प्रार्थना पूरी हो जाने के बाद, मूर्ति या मंदिर के चारों तरफ घड़ी की दिशा में घूमना पड़ता है। इसे परिक्रमा या प्रदक्षिणा कहा जाता है। प्रदक्षिणा का शाब्दिक अर्थ है ‘दाहिनी ओर’। जब तक प्रदक्षिणा की जाती है, शरीर मूर्ति और मंदिर परिसर से अच्छी कंपन को अवशोषित करता है, और इस तरह अपने अच्छे स्वास्थ्य और मन की शांति प्राप्त करने का एक कार्य होता है।
अक्सर आरती के दौरान आरती की थाली में कपूर या कैम्फर जलाया जाता है, क्योंकि यह आपकी दृष्टि को सक्रिय करती है। जब आरती की थाली हमारे सामने लाई जाती है, तो हम अपने हथेलियों को जलती हुई लौ पर रखते हैं। आरती लेने के बाद अपने हाथों से हमारे सिर या आंखों को छूते हैं, और हम उसकी ऊष्मा को अपने शरीर तक पहुंचाते हैं। ऐसा करने से, स्पर्श की हमारी भावना सक्रिय हो जाती है।
‘तीर्थम्’ या पवित्र जल, मंदिर में मूर्ति के सामने एक तांबे या चांदी के लोटे में रखा गया जड़ी-बूटियों, फूलों और शुद्ध पानी का मिश्रण है। इससे हमारी स्वाद की भावना सक्रिय होती है। तांबे जैसी धातुओं के बर्तन में पानी पीना सेहत के लिहाज से बहुत फायदेमंद होता है। पानी को 8 घंटे से अधिक समय या रातभर के लिए तांबे के बर्तनों में रखने और बाद में पीने से त्रिदोष (पित्त, वात और कफ) संतुलित करने में मदद हो सकती है। जब आप तीर्थम पीते हैं, तो जुकाम, खांसी और गले में खिचखिच जैसी समस्याएं कम हो जाती हैं।
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