करें ये प्रभावी उपाय जब शनिदेव वक्री चल रहे हो, मिलेगा तुरंत फायदा

शनिदेव 21 जून से वक्री होकर धनु राशि से वृश्चिक राशि में भ्रमण करेंगे। ऐसे में क्या- कुछ खास उपाय किए जाए ताकि शनिदेव के कोप का भाजन ना बनना पडे-


शनिदेव स्वयं महादेव के सृजन हैं, महादेव ने इन्हें कर्मफल दाता की उपाधि दी है जिसका प्रयोग कर वे अकर्मण्य व्यक्तियों को प्रताडित करते हैं, ताकि वे सन्मार्ग पर चलने के लिए उत्प्रेरित हो सकें। व्यक्ति यदि सन्मार्ग पर नहीं लौटते हैं तो महादेव ने शनि देव को दंडाधिकारी का पद देकर उन्हें दंडित करने का दायित्व सौंपा हैं, ताकि प्रकृति में शक्ति-संतुलन और न्याय कायम रह सके। इन शक्तियों का प्रयोग करते वक्त शनिदेव अन्यायी व्यक्तियों के पाप कर्मों को न तो भूलते हैं और न ही क्षमा करते हैं और उन्हें शनैः शनैः दंडित अवष्य करते हैं।
कर्मनिष्ठ और ईमानदार व्यक्तियों को शनि सुख-सुविधायें प्रदान करते हैं। कैसे होती है ग्रहों की वक्रगति: वक्री ग्रहों के संबंध में ज्योतिष प्रकाशतत्व में कहा गया है कि- ’’क्र्रूरा वक्रा महाक्रूराः सौम्या वक्रा महाषुभा।।’’ अर्थात क्रूर ग्रह वक्री होने पर अतिक्रूर फल देते हैं तथा सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति शुभफल देते हैं। जातक तत्व और सारावली के अनुसार यदि शुभग्रह वक्री हो तो मनुष्य को राज्य, धन, वैभव की प्राप्ति होती है किन्तु यदि पापग्रह वक्री हो तो धन, यश, प्रतिष्ठा की हानि होकर प्रतिकूल फल की संभावना रहती है।
जन्म समय में वक्री ग्रह जब गोचरवश वक्री होता है तो वह शुभफल प्रदान करता है, वषर्त ऐसे जातक की शुभ दशार्न्तदशा चल रही हो। फलित ज्योतिष के अनुसार जब कोई ग्रह किसी राशि में गतिशील रहते हुए अपने स्वाभाविक परिक्रमा पथ पर आगे को न बढ़कर पीछे की ओर (उलटा) गति करता है तो वह वक्री कहा जाता है। जो ग्रह अपने परिक्रमा पथ पर आगे को गति करता है तो वह मार्गी कहा जाता है।
वक्री ग्रह कुण्डली में जातक विशेष के चरित्र-निर्माण की क्रिया में सहायक होते हैं। जिस भाव और राशि में वह वक्री होते हैं उस राषि और भाव संबंधी फलादेश में काफी कुछ परिवर्तन आ जाता है। सूर्य एवं चंद्र मार्गी ग्रह हैं। ये कभी भी वक्री नहीं होते हैं। राहु व केतु वक्री ग्रह हैं। ये कभी भी मार्गी नहीं होते हैं। अन्य सभी ग्रह कभी मार्गी तो कभी वक्री होते रहते हैं। अक्सर जब कोई ग्रह अपने परिक्रमा पथ पर सूर्य के निकटतम पहुंच जाता है तब वक्री हो जाता है। किन्तु कुछ समय बाद वह फिर से मार्गी हो जाता है।

अशुभ शनि को रिझाने के उपाय

शनि की ढैया और साढे़साती से प्रभावित व्यक्तियों को मानसिक अशांति, धनाभाव, शारीरिक कष्ट, नौकरी व्यवसाय में परेशानी आदि कष्ट हो सकते हैं। जिनके ढ़ैया और साढे़साती नेष्ट फलप्रद हो उन्हें शनि के अनिष्ट फल निवारणार्थ शनि की प्रिय वस्तुओं का यथा शक्ति दान करना चाहिए। शनि मंत्र का जप और व्रत करना लाभप्रद होगा। न्याय पर चलें और कर्मनिष्ठ बनें। कुष्ठ रोगी, अपंग, बेसहारा तथा वृद्धजनों का सम्मान एवं यथा संभव उनकी मदद करें। शनि का दान किसी वृद्ध ब्राह्मण, असहाय, दीन-हीन गरीब व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा सहित करना शुभ होता है।
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